प्रियंका शर्मा ,बिलासपुर : दोस्तों शादी एक ऐसा त्यौहार है जिसमें न सिर्फ शादी वाले घर बल्कि दोनों परिवारों के रिश्तेदार और गांव भी इसमें शामिल होते हैं। बहुत से रीति-रिवाजों का मेला होता है शादी। वैसे तो शादी के कईं सारे रीति-रिवाज तब से ही शुरू हो जाते हैं जब से रिश्ता पक्का किया जाता है। परंतु अगर हम शादी की मुख्य पूजा की बात करें तो हल्दी या तेल डालने से शादी के रिवाज शुरू होते हैं। हिमाचल में इसे समूहत भी कहा जाता है। इस लेख में मुख्यता हिमाचली बधू के पक्ष में जो हल्दी और समुहत होते है में उनके बाते में लिख रही हु हालकी वर पक्ष में भी सिर्फ थोडा सा ही अंतर होता है
पोस्ट मुख्यता काँगड़ा ,हमीरपुर ,बिलासपुर आदि पर आधारित है क्युकी हिमाचल के जनजातिय क्षत्रों में शादी की परम्पराए अलग है , हालकी आप में से कोई हिमाचल के अन्य हिस्सों से जुड़े रिवाजो पर लिखना चाहे तो हिमाचली रिश्ता के इस ब्लॉग बीइंग पहाड़ी में हमेशा से स्वागत है
तो लड़की की शादी के पहले दिन समुहत होते है ,इसके लिए सबसे पहले पंडित आकर लड़की से गणपति जी की पूजा कराता है और पूजा जहां हो रही होती हैवहां कणदेवा लगाते हैं। पहले पंडित सिंदूर से खुद दीवार पर कणदेवा बनाते थे, लेकिन अब बाजार में पोस्टर मिल जाते हैं। वहां गणपति जी की पूजा करने के समय घर परिवार की सभी औरतें इक्कठा होती हैं और मंगलगीत गा रही होती हैं।
पंडित लड़की को कंगना बांधता है और लड़की को काले रंग का शाॅल या पट्टू ओढा के बिठा दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे यह मान्यता है कि इससे लड़की को किसी की नजर नहीं लगती है। लड़की को सभी पूजा और रीति-रिवाजों को पूरा करने वाली जिसको भोई कहते हैं, को और घर की अन्य महिलाओं जिनको सवैहणी कहते हैं, को भी कंगणा बांधा जाता है। कंगणा बांधने के बाद घर में कपड़े धोने जैसे काम नहीं किए जाते हैं जब तक सवैहणी कुलदेवी की पूजा नहीं कर लेतीं।
तेल डालने के लिए हरी दूब को मौली बांधकर प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले कन्या तेल डालती है और फिर परिवार के सभी सदस्य एक एक करके तेल डालते हैं।
दुल्हन को तेल डालते समय का एक गाना
तेल लगाने के बाद दुलहन को हल्दी लगाई जाती है, हल्दी लगाने को हिमाचल में बुटणा या बटणा कहा जाता है। बुटणा बनाने के लिए मेहंदी, हल्दी, सरसों का तेल आदि प्रयोग किया जाता है। आजकल बाजार में बना बनाया बुटणा मिलता है। उसमें तेल और हल्दी डाली जाती है।
सभी महिलाएं लड़की को बुटणा लगाती हैं और उसे हाहर ले जाया जाता है। बाहर एक चौकी रखी होती है और उस चौकी के चारों कोनों पर बणा ( एक पौधा) की डालियां रखी होती हैं। लड़की को उस चौकी पर बिठाया जाता है और भोई चावल, फूल, दूब, कंगयारा आदि लेकर लड़की की नजर उतारती है। सवैहणी अपना पल्लू आगे करतीं हैं और लड़की उनको शक्कर या बूंदी देती है। इस सबके बाद लड़की को दही आदि सामग्रियों से नहलाया जाता है। यह प्रक्रिया दो या तीन बार की जाती है और उसके उपरांत सांद की पूजा की जाती है जब लड़की के मामा तोरन और वेद लेकर उसके घर पहुंचते हैं।
बुटणा लगाते समय गाया जाने वाला लोकगीत जो बहुत प्रचलित है:
बटने के समय का एक अन्य गाना इस प्रकार है :
दो बणजारू मैं बुटणे जो पेजे
से बणजारू ना आए
दो बणजारू मैं बुटणे जो पेजे
से बणजारू ना आए।
थोड़ा थोड़ा बुटणा मेरी संखियां देणा
होर मलो अंगे मेरे।
दो बणजारू मैं बुटणे जो पेजे
से बणजारू ना आए
अगले अंक में हिमाचल की शादी से जुडी एक और परम्परा लेकर आउंगी , अगर इस पोस्ट में कोई सुझाब या त्रुटी हो तो कमेंट कर के अवश्य बताये , और अगर मेरा यह प्रयास अच्छा लगे तो पोस्ट को शेयर जरुर करे
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