हिमाचल की लड़की की शादी -सगाई से लेकर विवाह तक

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हिमाचल में कैसे होती है लड़की की शादी, रिश्ते के दिन से लेकर शादी तक पुरी रिपोर्ट

लड़की की शादी माँ-बाप के लिए एक सपना, एक जिम्मेदारी होती है। लड़की की शादी करने के लिए बहुत मजबूत होना पड़ता है, चाहे वो आर्थिक रूप से हो या भावनात्मक रूप से। लड़की अपना घर, परिवार, माँ-बाप, भाई-बहन सब कुछ छोड़ कर आ जाती है। उसके हर रिश्ते का नजरिया, हर रिश्ते की अहमियत बदल जाती है जैसे ही वो मंडप में बैठती है। लड़की भी बहुत से सपने संजोए इंतजार करती है उस दिन का जब वो दुल्हन बनकर नई दुनिया में प्रवेश करेगी। हिमाचल में लड़की की शादी कैसे होती है आज आपको मैं विस्तार से बताती हूँ।

क्योंकि मैं बिलासपुर से संबंध रखती हूँ तो इसमें ज्यादातर रिवाज बिलासपुर वाले ही होंगे बाकि सभी जगह वैसे तो सब रीति-रिवाज एक समान ही हैं बस थोड़ा सा तरीका अलग हो सकता है। तो अगर कहीं कोई चूक हो जाए तो आप कमेन्टस में या हमारी मेल आईडी पर डिटेल्स में शेयर कर सकते हैं। आपके सुझाव आदरणीय हैं। –प्रियंका शर्मा , फेसबुक पेज एडमिन हिमाचली रिश्ता डॉट कॉम 

रिश्ता ढूंढना
आज के जमाने में अच्छे रिश्ते ढूंढना बहुत मुश्किल हो गया है। जो रिश्ता लेकर आते हैं हिमाचल में उसको रबारू कहते हैं। रबारू रिश्ता ले कर आता है कुंडलियां मिलाई जाती हैं। कुंडली मिलाने के बाद लड़का लड़की को आपस में मिलाया जाता है और रिश्ता पक्का कर लिया जाता है।

शगुन पाणा या एंगेजमेंट
हिमाचल में अगर आप गांवों की बात करें तो शहरों का ज्यादा असर नहीं हुआ है। हालांकि शहरों में थोड़ा माॅडर्न तरीके से पार्टी रख लेते हैं और शहरी तौर तरीके के अनुसार एंगेजमेंट की रस्म पूरी करते हैं। मैं बात कर रही हूँ अपने गांव के माहौल की। गांव में एंगेजमेंट वाले दिन पहले तो लड़की के पापा, भाई, ताया, चाचा, मामा आदि प्रमुख लोग लड़के के घर कुल के पुरोहित को लेकर जाते हैं।

लड़के के घर में सबका आदर खातिर किया जाता है और उसके गांव वालों के लिए भोज का आयोजन भी किया जाता है। दोनों परिवारों और पंडितों की आपसी सहमति के साथ शादी की तारीख तय की जाती है। लड़के को शगुन में कपड़े और अन्य सामान दिया जाता है। इसके बाद लड़की वाले वापिस घर पहुंचते हैं।

उसी दिन लड़के वाले भी लड़की के घर शगुन देने पहुंचते हैं और लड़का और उसकी बहनें या नजदीकी लड़की को शगुन देते हैं। वहीं पर रिंग सेरेमनी करिई जाती है। लड़की वाले लड़के की तरफ से आए मेहमानों की आदर खातिर करते हैं और उनको खाना खिला कर भेजते हैं।

लड़के वाले शाम को गांव की सभी औरतों को बुलाते हैं और घोड़ियां या शगुन के गीत गाए जाते हैं। लड़की वाले भी सुहाग गीत गाकर इस नए रिश्ते के जुड़ने की खुशी का इजहार करते हैं। जाते समय सबको मिठाई बांटी जाती है।

शादी की तैयारी
यूँ तो शादी की तैयारी के लिए कितना ही समय मिल जाए कम होता है। लेकिन क्योंकि एक दिन तय हो जाता है और उस दिन तक सब तैयारियां खत्म करनी होती हैं। उसके लिए सब लोग अपनी अपनी तरफ से पूरी कोशिश में लग जाते हैं। पंडित से शुभ मुहूर्त पूछा जाता है ताकि समंदा और नयूंदर देना शुरू करें। उसके अलावा बहुत सारी खरीददारी भी करनी होती है। लड़की वालों के लिए तो बहुत ज्यादा काम होता है क्योंकि उनको अपने रिश्तेदारों के साथ साथ लड़के वालों का भी ध्यान रखना होता है।

छेई या समंदा ( Chheyi or Samda,Fuel for Himachali Dham )
शादी में खाना पकाने के लिए लकड़ियों का इंतजाम किया जाता है। उसके लिए पंडित से मुहुर्त निकवाकर सब गांव वालों को बुलाया जाता है। सब पुरुष लचड़ी काटते हैं और औरतें खाने-पीने का प्रबंध करती हैं। इसके साथ ही शुभ गीत गाए जाते हैं और सामुहिक भोज का इंतजाम भी किया जाता है।

छेयी या समधा के बारे में आप अधिक यहाँ पर क्लिक कर के पढ़ स्कते है 

नयूंदर ( Neyundra or Invitation )
हमारे हिमाचल में शादी में पहला निमंत्रण कुलदेवता और मामा को दिया जाता है। निमंत्रण देने के लिए गेहूं के आटे में गुड़ और यीस्ट मिलाकर पूड़ी की तरह रोटियां बनाई जाती हैं। इनको बिलासपुर, हमीरपुर की तरफ बबरू अंर कांगड़ा में मिठड़ू कहते हैं। वैसे तो ये बबरू हाथ से या फिर सांचों से बनाए जाते हैं, पर कुछ लोग पूड़ी की मशीन में भी बनाते हैं और तेल में फ्राई किया जाता है। मुहूर्त निकालकर बहन अपने भाई के घर बबरू, कलावा आदि शुभ सामान लेकर जाती है और अपने मायके में सबको आमंत्रित करती है। उसके बाद ही और नाते रिश्तेदारों को न्यौता दिया जाता है। जब कोई न्यौता देने आता है तो वह बबरू या मिठाई और कार्ड देता है और उनको टीका और रूमाल या सुहागी के साथ विदा किया जाता है।

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उपहार और खरीददारी
शादी करके जब लड़की अपने ससुराल जाती है तो ससुराल वाले और उनके गांव वाले सबसे पहले यही देखते हैं कि लड़की क्या क्या लेकर आई है। लड़की वाले पूरी कोशिश करते हैं कि लड़के वालों को अच्छे-अच्छे उपहार दिए जाएं। रोज लड़की के घर में रात में बैठकर घर की महिलाएं कपड़े और सुहागियां पैक कर रहीं होती हैं। लड़की जब अपने ससुराल जाती है और सबसे पहली मुलाकात करती है तो लड़के के ताया-ताई, चाचा-चाची, मामा-मामी, दादा-दादी, नाना-नानी,मौसा-मौसी, फूफा-बुआ, बहन-बहनोई आदि सभी रिश्तेदारों के लिए कपड़े आदि देती है जिसको हिमाचल में बगे या बगोटू कहते हैं। उसके अलावा बहुत अच्छे संपन्न परिवार वाले सोने-चांदी के गहने भी भेंट करते हैं।
इसके लड़की के जो करीबी रिश्तेदार होते हैं उनके लिए कपड़े और उपहार तैयार किए जाते हैं।

इस बीच दान-दहेज की भी खरीदारी की जाती है। वैसे दहेज़ पहले जमाने में इसलिए भी दिया जाता था क्योंकि लड़की नई गृहस्थी बसाने जा रही होती है तो उसको ये सब चीजों की जरूरत पड़ेगी। यह सोचकर ही दहेज़ दिया जाता था लेकिन कुछ लोगों ने इसे अभिशाप बना दिया। अभी वैसे मैंने बहुत सी शादियां देखी हैं जिनमें दहेज़ के नाम पर कुछ भी लेन-देन नहीं हुआ। बहुत से लोग तो गरीब घर की बच्चियों की शादी में भी मदद करते देखे हैं।

शादी की रस्में ( The Rituals of Himachali Wedding) :

 

हल्दी की रस्म ( Haldi Ritual) :
शादी की रस्में तो उसी दिन से शुरू हो जाती हैं जब से रिश्ता पक्का होता है। शादी से पहले लड़की को किसी पवित्र स्थान जैसे हरिद्वार या स्थानीय तीर्थों पर नहलाया जाता है। शादी में सबसे पहले तेल-उबटन की रस्म होती है। जहां तक मैंने देखा शादी में तीन बार तेल डाला जाता है जिसमें लड़की की चाची-ताईयां, बुआ,बहनें सब शामिल होती हैं। जो तेल की सारी रस्में और नहलाती है उसको भोई कहते हैं।

तेल शांति,लिंग चोला  और नथ बालू   ( Tail Shanti,Ling Chola):

अंतिम बार तेल सांद के समय होता है। उस समय मामा-मामी अपने गांव वालों के साथ तोरन और वेद लेकर आते हैं। मामा लड़की को नहलाते हैं और अपनी बहन और उनके रिश्तेदारों को कपड़े और सुहागी भेंट करते हैं। लड़की के मामा पीले और लाल रंग के कपड़े लेकर आते हैं जिनको लिंग-चोला कहते हैं। उसके अलावा लड़की के मामा नथ(बेसरू) और साज-संवार का सामान लेकर आते हैं। लड़की पहला दंतु चूड़ा मामा का लाया हुआ ही पहनती है।

मिलणी और रिबन काटना ( Milani,Ribbon and Welcome of Barat):

फिर समय आता है बारात के स्वागत का। बारात जब आती है तो सबसे पहले दोनों तरफ से सम्बधियों की मिलणी होती है। हार पहनाकर स्वागत किया जाता है और उपहार भेंट किए जाते हैं। बारातियों को लिए चाय नाश्ते के बाद खाना खिलाया जाता है। जिस जगह बारात के ठहरने का इंतजाम किया जाता है उसे डेरा कहते हैं।जिस गांव में बारात आती है उस समय पूरा गांव यह नहीं सोचता कि शादी एक घर में है, पूरे गांव के लोग अपने घर के जैसे बारत में आए मेहमानों की आदर खातिर करने में जुट जाते हैं। कोई लोगों को चाय पिला रहा होता है तो कोई खाना खिला रहा होता है। कोई बैठने के लिए कुर्सी का इंतजाम कर रहा होता है तो कोई सोने वालों के लिए बिस्तर का। हिमाचल में आज भी परंपरागत तरीके से सामुदायिक जीवन जिंदा है।

खाना खाने के बाद दुल्हा सज धज कर गेट पर पहुंचता है।वहां लड़की की बहनें और सहेलियां तोरन के पास रिबन काटने का इंतजार कर रही होती हैं

रिबन काटने और थोड़ा-बहुत हंसी-मजाक के साथ जीजा से पैसे लेतीं हैं। रिबन काटने के बाद लड़की का भाई जीजा को स्नान कराता है और कपड़े पहनने को देता है। इसके बाद दुल्हे को मंडप में बैठाया जाता है। लड़की पहले से ही तैयार होकर इंतजार कर रही होती है उस समय का जब उसके सारे रिश्ते बदलने वाले होते हैं। लड़की को मंडप में बैठाया जाता है और शादी की सारी रस्में शुरू होती हैं। कन्यादान किया जाता है और सात वचनों के साथ सात फेरे पूरे किए जाते हैं।

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सिरगूंदी की रस्म /Bridal Makeup:

खाना खाने के बाद सिरगूंदी की रस्म होती है। उसके लिए जब दुल्हा अंदर जाता है तो लड़की की बहनें द्वार रोकर जीजा से पैसे लेतीं हैं। दुल्हा लड़की को साज संवार का सामान देता है और लड़की को विदाई के लिए तैयार किया जाता है। लड़की की बहनें जीजा के साथ हंसी मजाक करती हैं।

सिरगूंदी की रस्म की रश्म के समय का एक विडियो :

सात फेरे और कन्यादान :

दोनों पक्षों के मुख्य अतिथि मडप में दुल्हे डुलहन के साथ बैठते है और हिन्दू धर्म के रीती रिवाजो के अनुसार कन्यादान और सात फेरे होते है जब खारे एक्सचेंज कर लिए जाते है तो दुल्हन के माता पिता का लड़की पर हक़ नही रहता उसी समय का यह वीडियो है

 

शुभ शिक्षा (Shubh Siksha):

जैसे ही सारी रस्में पूरी होती हैं लड़की उसके बाद थोड़े ही समय के लिए मेहमान रह जाती है और जिस घर में उसने बचपन बिताया होता है, वह घर उसके लिए पराया बन जाता है। कुछ ही समय बाद जिन माँ-बाप ने उसे इतना बड़ा किया अनजान लोगों के पास भेज देंगे, यह सोच-सोचकर लड़की मन ही मन डर जाती है। दुल्हे और उसके रिश्तेदारों को गालियों के साथ खाना खिलाया जाता है और लड़की की बहन शुभशिक्षा पढकर बहन को सिखाती है कि अब हम सब तेरे लिए पराये हो गए हैं और अब ससुराल ही तेरा सबकुछ है।

शुभ शिक्षाआज लुप्त हो रही है ,देखे एक वेदिओ में शुभ शिक्षा

 विदाई (Vidai ) :

अब समय आता जिस घड़ी पर कोई भी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाता। उस समय नए रिश्ते जुड़ने की खुशी भी होती है और एक रिश्ता बिछड़ने का दुख भी होता है। जो नन्हीं सी परी घर की लाडली थी वो अब घर में मेहमान बनकर आया करेगी। लड़की और उसके करीबी सब रो रहे होते हैं। इस खुशी और गम का माहौल कुछ ऐसा होता है जब कोई समझ नहीं पाता कि खुशी को जाहिर करे या गम में गमगीन हो। इस तरह एक नए रिश्ते को दोनों ही परिवार खुशी खुशी स्वीकार कर लेते हैं।

हिमाचली विदाई की एक विडियो :

बधू प्रवेश ,फेरुआ -गेरुआ ( Badhu Parvesh- Ferua-Gerua)

कईं जगह उसके बाद लड़की के परिवार वाले व करीबी लड़की के ससुराल जाते हैं और दोनों समधिनों की मिलणी कराई जाती है। वहां खान-पान और नाच-गाने के साथ दोनों परिवार एक हो जाते हैं। लड़की शादी के बाद जब पहली बार मायके आती है उसको फेरूआं-गेरूआं कहते हैं। लड़की आकर तोरन और वेद को हिलाती है और उसके बाद हवन को बहते पानी में बहा दिया जाता है। इस तरह लड़की की शादी करना कोई आसान काम नहीं और कन्यादान जैसा महादान कुछ नहीं है। बहुत मजबूत दिलवाले होते हैं जिनकी बेटियां होती हैं और उनको विदा कर देते हैं।

बधू परवेश की एक विडियो :

शादी के सारे समारोह के बाद नई नवेली दुल्हन को गाँव के कुए,बां ( वावडी ) या नल की पूजा के लिए लेकर जाते है

 

नोट : इस लेख में लेखिका ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है की कम से कम शव्दों में ज्यादा से ज्यादा चीजे कवर हो ,क्युकी शादी के महापर्व होता है उसके लिए कितना ही लिखो कम है , और भारत में  हर 10-12 किलोमीटर बाद भाषा और रिवाजो में परिवर्तन आ जाते है, हो सकता है आपके यहाँ पर थोडा अलग सिस्टम हो , लेख में कुछ कमियां भी हो सकती है ,जो की हम उम्मीद करते है आप कमेंट में जरुर बातायेंगे , सभी विडियो यूट्यूब पर डायरेक्ट चल रही है और हम आभारी है उन लोगो के जिन्होंने यह विडिओ अपलोड कर के अपनी परम्पराओं को दुनिया के सामने रखा I

हिमाचली रिश्ता की टीम का आगे भी प्रयास रहेगा की आपके पास और भी अच्छी अच्छी जानकारियां ले कर आये ,धन्यवाद


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हमारे हिमाचल के लोग अच्छा पढ़े लिखे होने के बावजूद सीधे सादे होते है और अपनी स्थानीय परम्पराओ को बहुत अच्छे से निभा रहे है , ऐसी ही एक व्यवस्था है शादी , शादी में हर कोई चाहता है कि उनके/ उनके बच्चो के लिए एक अच्छा लड़का या लड़की मिले ,साथ ही यह प्राथमिकता होती है कि अपनी ही जाति और इलाके में हो , इस कड़ी में गांवो में कुछ औरतो और बुजर्ग जिनको रुआरू कहते है वो रिश्ते करने का काम सदियों से करते आ रहे है ,लेकिन समय बदलने के साथ साथ जैसे जैसे लोग रोजगार के लिए हिमाचल से बहार आ जाते है तो वो अपने स्थानीय लोगो के टच में ज्यादा नही रहे पाते , और उन लोगो को सबसे ज्यादा रिश्ता धुंडने में दिक्कत होती है लेकिन इसका मतलब यह नही है कि स्थानीय लोगो को रिश्ता धुंडने  में दिक्कत नही होती l वास्तव में हमारे आसपास ही सेकड़ो अच्छे अच्छे रिश्ते होते है जिनको हम ढूंड नही पाते है ,इसी समस्या के हल के लिए हिमाचली रिश्ता डॉट कॉम को बनाया गया

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