आभी तक आपने पढा कैसे गद्दी समुदाय में रिश्ते तय होते हैं और उसके बाद की प्रक्रिया शुरू होती हैं। रिश्ता तय होने के बाद शादी का दिन तय होता है जिसे ब्यौकङ रखणा बोलते हैं। इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है जिसमें अभी तक तय सभी रस्मों का समय और दिन एक पन्ने पर लिखा जाता है जिसे लखणोत्री कहते हैं। लखणोत्री शादी से जुङे डाॅक्यूमेंट में से एक है जिसे शादी से बहुत समय पहले दोनों पक्षों के पुरोहित और बङे-बुजुर्गों की सहमति से लिखा जाता है। लखणोत्री आमतौर पर रविवार, मंगलवार, बुद्धवार, वीरवार, सक्रांति या फिर किसी अन्य शुभ अवसर पर लिखी जाती है। लखणोत्री लिखने की प्रक्रिया कुछ इस तरह से है।
लङके के परिवार वाले, लङकी के परिवार वालों को लखणोत्री लिखने के दिन के बारे में सूचित करते हैं। लङके वाले अपने साथ कुछ सामान लेकर कुङम यानि लङकी के घर जाते हैं, जिसमे पुरोहित भी शामिल होते हैं। लङकी के घर जाने लोगों की संख्या तीन, पांच या सात यानि विषम होती है। लखणोत्री लिखने लिए लङकी के घर लेकर जाने वाले सामान में निम्नलिखित चीज़ें जरूरी होती हैं।
i) बबरू- इस अवसर के लिए गेहूँ के आटे में गुङ डालकर उसकी छोटी-छोटी पूङियां बनाई जातीं हैं जिन्हें बबरू कहते हैं। ये बबरू सजी हुई टोकरी में डाले जाते हैं और लाल रंग के कपङे से इस टोकरी को ढक दिया जाता है।
ii) डोरियां (मौली), टीका और लङकी की तरफ की सभी महिलाओं के लिए बिंदा, डोरी, कुंगू(सिंदूर) और गुङ एक अलग से लाल कपङे में रखा जाता है।
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सब लोग शाम को लङकी के घर पहुंचते हैं और अगली सुबह नाश्ते के बाद सबकी मौजूदगी में पुरोहित जंतरियों को अच्छे से पढ़कर विभिन्न रस्मों के लिए दिन और समय तय करके एक कागज़ पर लिखा जाता है।
i) समूत, हल्दी, लेई, छेई, सेहरा-बंदी और बारात प्रस्थान का सटीक समय और दिन लिखा जाता है।
ii) परिवार के चौथे, छठे, आठवें और बारहवें सदस्य और अन्य रिशतेदारों का चंद्रमा देखा जाता है।
iii) बरतन, बारसूही अंद्रिणा, लग्न-बेदी का सटीक समय नोट किया जाता है।
सभी महत्वपूर्ण रस्मों को रिकॉर्ड करने के बाद कागज़ को फोल्ड कर दिया जाता है और उसे डोरी से बांध दिया जाता है। इसी दस्तावेज़ को लखणोत्री कहा जाता है। लखणोत्री पर फूल, चावल और कुंगू(सिंदूर) छिङका जाता है और पुरोहित मंत्र पढते हैं। उसके बाद इसे लङके पिता या अन्य जो भी लङके की तरफ से व्यक्ति आगे आता है, उसके हाथों में दे दी जाती है। इसके साथ ही सबको गुङ और दूब बांटी जाती है और सब लङके के घर चले जाते हैं।
लखणोत्री बहुत ही ध्यान से लिखी जाती है और लिखते समय सभी दिनों, समय और शुभ शगुनों को देखा जाता है। लखणोत्री को शादी तक बहुत ही सहेज कर रखा जाता है और जब एक बार लखणोत्री लङके के पिता को सौंप दी जाती है तो उसके बाद लङके की तरफ से कोई भी लङकी के घर नहीं जाता है। एक बार लखणोत्री लिख देने के बाद चाहे परिवार मे किसी की मृत्यु ही क्यों नहीं हो जाती, तब भी शादी को टाला नहीं जाता। इसीलिए शादी का समय पुरोहितों से विचार-विमर्श करके ही तय किया जाता है। साल में कुछ महीने होते हैं जब शादी करना वर्जित होता है। जेठ(ज्येष्ठ), बसाख(बैसाख), सौण(सावन), अषाणी(आषाढ़), मघैर(मार्गशीष), कत्ती(कार्तिक), माघ, फगुण(फागुण) महीनों को लखणोत्री लिखने के लिए शुभ माना जाता है। चैत(चैत्र), भादों(भाद्रपद) और पौह(पौष) महीनों को लखणोत्री लिखने के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
घर के ज्येष्ठ पुत्र यानि सबसे बङे बेटे की शादी ज्येष्ठ महीने में तय नहीं की जाती। जो भी लङका या लङकी 20वें वर्ष में लगा होता है तो उनकी शादी पौष में नहीं की जाती है। जामणु महीना यानि जिस महीने में लङकी या लङके का जन्म हुआ होता है उसमें उनकी शादी तय नहीं की जाती है। अगर घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो एक साल तक उस घर में शादी नहीं होती है। अस्त के दौरान भी शादी करना वर्जित माना जाता है।
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