हिमाचल में हर गांव में आपको एक अलग और आनोखी कहानी देखने को मिलेगी जिस पर वैज्ञानिक तौर पर भरोसा करना कठिन है। परंतु हम उन कहानियों में जी रहे हैं और उन मान्यताओं को निभा भी रहे हैं। आज आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रही हूँ जो कि मैं बचपन से सुनते आ रही हूँ। बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 28-29 किमी दूर औहर क्षेत्र पड़ता है। वहीं उसी क्षेत्र में एक स्थान है रूकमणी कुंड जो कि आसपास के इलाकों ही नहीं बल्कि पड़ोसी जिलों के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है। यह स्थान एक जलाशय के रूप में है जो कि पथरीली पहाड़ियों के बीच है।
रुकमणि कुण्ड :
Rukamani Kund,Bilaspur,HP
हिमाचल के काँगड़ा जिले की रुल्हा दी कूल्ह तो आप लोगो ने सुनी ही होगी ,ठीक उसी तरह रुकमणि कुण्ड कि कहानी हिमाचल के काँगड़ा जिले कि मशहूर कहानी रुल्हा दी कुहल से ही मिलती जुलती है…
पानी के किल्लत से निवटने के लिए वलि स्वरूप ज्येष्ठ बहु को जिन्दा चिनवाया :
यह बात उस समय की है जब हिमाचल में छोटे छोटे रजवाड़ों का राज हुआ करता था। एक बार औहर क्षेत्र पानी की किल्लत से जूझ रहा था और लोगों को सतलुज नदी से पानी लाना पड़ता था। सभी लोगों ने कुंआ खोदने के बहुत प्रयास किए लेकिन कहीं भी पानी नहीं निकला। इससे उस क्षेत्र के सभी लोग बहुत ही दुखी और निराश थे। एक रात बरसंड जो कि औहर से 4-5 किमी ऊपर है, वहां के राजा को रात में सपना हुआ कि अगर वह अपने ज्येष्ठ पुत्र या बहु की बली देगा तो क्षेत्र की प्रजा की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। यह सोच कर राजा परेशान हो जाता है कि वह अपने बेटे की बली कैसे दे देगा। रूकमणी उस अपने मायके तरेड़ नामक गांव गई थी और राजा उसको बुलावा भेजता है। यह बात वह राजा अपनी बहु को बताता है और वह अपने पति के बजाय अपना बलिदान देने के लिए तैयार हो जाती है।
एक दिन निश्चित होता है और पूजा के बाद उसको जिंदा दीवार में चिन दिया जाता है। जैसे ही चिनाई खत्म हुई कहा जाता है पहले दूध की धाराएं बहने लगीं और फिर पानी ही पानी हो गया। जिस स्थान पर रूकमणी को चिना गया था वहीं पर यह कुंड बना हुआ है। वहां चट्टानों पर घास ऊगी हुई है और लोगों की मान्यता है कि यह उनके बाल हैं। लोग वहां घास के साथ रिबन और चूड़ियाँ भेंट के तौर पर बांधते हैं। अभी भी तरेड़ इलाके के लोग इस पानी को न ही पीते हैं और न ही नहाते हैं। यह वो लोग अपनी बेटी के बलिदान के दुख में करते हैं।
बौद्ध कला और प्राचीन वस्तुओं के अनुसार, आठवीं सदी तक हिमाचल में स्त्रियों के बलिदान की कहानियाँ आम थीं जहां पानी पानी के लिए नाग देवता को स्त्रियों की बली दी जाती थीं। ऐसी कुछ कहानियाँ और भी हैं जैसे लाहुल घाटी में गुशाल गांव की रूपरानी, चंबा के राजा साहिल बर्मन की रानी सुनयना, सिरमौर की बिची, कांगड़ा की रूहल कुहल और जम्मू में किश्तवर की कांदी रानी। मानव बलिदान उस समय बहुत विशेष माना जाता था।
हर साल वैशाखी पर मेला :
बैसाखी पर हर साल यहाँ मेला लगता है और छिंज का आयोजन भी होता है। लोग यहाँ बैसाखी या अन्य त्यौहारों के समय नहाने आते हैं। यहाँ रूकमणी देवी की पूजा के लिए एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है। महिलाओं और पुरुषों के नहाने के लिए स्नानागार बने हुए हैं। कईं लोग इस कुंड में तैर कर भी आनंद लेते हैं। कहा जाता है यहाँ नहाने से चर्मरोगों में लाभ मिलता है। वहीं सामने ही एक गुफा है और बोला जाता है यह गुफा पहाड़ी की दूसरी ओर, गेहड़वीं से कुछ ही दूरी पर स्थित गुगाजी मंदिर तक जाती है।
कईं स्थानीय मंत्रियों ने घोषणाएं की कि इस स्थान को एक पर्टक स्थल में तबदील किया जाएगा लेकिन ये घोषणाएं सिर्फ वहीं तक रहीं। हालांकि कुंड तक पहुचने के लिए सड़क का निर्माण कर दिया गया है लेकिन अभी भी बहुत सी कमियां हैं। इस स्थान से पानी आसपास की पांच पंचायतों तक सिंचाई और पीने के लिए भी पहुंचाया गया है।
कैसे पहुंचे :
यहाँ पहुंचने के लिए कोई सीधी बस नहीं है। भगेड़ से आप औहर या कल्लर जो कि भगेड़-ऋषिकेश रोड़ पर है, उतरकर पैदल चढाई करके पहुंचा जा सकता है। या फिर औहर-गेहड़वी संपर्क सड़क पर 2 किमी आकर एक कच्ची सड़क है जहां से आप पैदल या अपनी गाड़ी से पहुंच सकते हैं।
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