यहाँ लगती है यमराज की कचहरी -जिन्दा या मोत के बाद एक बार जाना ही पढ़ता है इस मन्दिर में

देवभूमि हिमाचल के जिस कोने में आप जाते हो वहां एक प्रसिद्ध मंदिर आप को जरुर मिलेगा। कुछ मंदिर के बारे ऐसी कहानी प्रचलित है की जिन्हें सुनकर बड़ी हैरानी होती है। ऐसे ही एक मंदिर के बारे में हम आप आज बतातें है जहां आप जिंदा रहते नही आएं तो मरने के बाद आना पड़ेगा। इस मंदिर में मौत के बाद फैसला लिया जाता है की आप को स्वर्ग या नर्क मिलेगा

भरमौर स्थित चैरासी मंदिर इस मंदिर की मान्यता है की यह एक मात्र मौत के देवता का अकेला मंदिर है। इस मंदिर में माना जाता है इंसान अगर जिंदा रहते हुए नही आया तो उसे मौत के बाद उसके आत्मा को यहां आना पड़ता है। यहां आने के बाद उसके पाप और पुन्य दोनों का फैसला कर के उसे स्वर्ग और नर्क में भेजा जाता है। इस मंदिर में आने वाली आत्मा को धर्मराज के पास जाने से पहले एक और देवता के पास जाना पड़ता है जिन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मो का पूरा ब्योरा देते हैं इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को यमराज की कचहरी कहा जाता है।

चौरासी मंदिर जहां मरने के बाद सबसे पहले पहुंचती है आत्मा एक ऐसा मंदिर है जहां मरने के बाद हर किसी को जाना ही पड़ता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। यह मंदिर  दुनिया में नहीं बल्कि भारत की जमीन पर स्थित है। देश की राजधानी दिल्ली से करीब 500 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल के चम्बा जिले में भरमौर नामक स्थान में स्थित इस मंदिर के बारे में कुछ बड़ी अनोखी मान्याताएं प्रचलित हैं।

चौरसी मंदिर भरमौर शहर के केंद्र में स्थित है और लगभग 1400 साल पहले बनाए गए मंदिरों के कारण यहां पर बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। मंदिर परिसर के चारों ओर भर्मूर केंद्रों में लोगों का जीवन-चौरासी, चौरासी मंदिर की परिधि में बनाए गए 84 मंदिरों के कारण नामित है। चोरासी नंबर 84 के लिए हिंदी शब्द है। मनिमाहेद का सुंदर शिखर शैली मंदिर, परिसर का केंद्र है।

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इस मंदिर किसने और कब बनाया इस विषय में कोई ठोस प्रमाण नही हैं। लेकिन इस मंदिर के टूटे हुए सीढियों जीर्णोद्धार चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में कराया था।यह माना जाता है कि जब 84 सिद्ध कुरुक्षेत्र से आए थे, जो लोग मन्नमाशेद की यात्रा के लिए भरमौर से गुजर रहे थे, तो वे भरमौर की शांति के साथ प्यार में गिर गए और यहां पर ध्यान देने के लिए सुलभ हो गए।
चौरासी मंदिर परिसर से जुड़ा एक और किसा है ऐसा माना जाता है कि साहिल वर्मन के ब्रह्मपुरा (प्राचीन भरमौर का नाम) के प्रवेश के कुछ समय बाद, 84 योगियों ने इस जगह का दौरा किया। वे राजा की आतिथ्य से बहुत प्रसन्न थे राजा के कोई भी संतान नहीं थी , तब योगियों ने राजन को वरदान दिया की उसके यहाँ 10 पुत्रो का जनम होगा | कुछ सालो बाद राजा के घर दस बेटों और एक बेटी ने जनम लिया । बेटी का नाम चंपावती रखा गया था और चंपावती की नई राजधानी चम्बा की पसंद की वजह से स्थापित किया गया था।कहा जाता है भरमौर का 84 मंदिर उन 84 योगिया को समर्पित किया गया था, और उनके बाद चौरासी नामित किया गया था। चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं। चौरसी भरमौर के केंद्र में एक विशाल स्तर का मैदान है जहां ज्यादातर शिवलिंग के रूप में मंदिरों की आकाशगंगा मौजूद है। चौरासी मंदिर का दृश्ये देखने लायक है|

Peoples sitting in chourasi temple bharmour
Peoples sitting in chourasi temple

कहते हैं महाशिवरात्रि पर्व पर पाताल लोक में विराजमान भगवान शिव कैलाश को प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा के दौरान शिव भगवान चंबा भरमौर स्थित अति प्राचीन चौरासी मंदिर में विश्राम करते हैं।उनके इस विश्राम को साकार रूप देने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु भरमौर के चौरासी मंदिर में जुटते हैं। साल में यह पहला मौका होता है जब रात के चार पहर विशेष पूजा-अर्चना चलती है और लगातार घंटियों का शोर समूचे भरमौर में सुनाई देता है।

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