हिमाचल में शादी हर समुदाय के लिए एक सामुहिक उत्सव की तरह होती है।गददी समुदाय के बिना हिमाचली संस्कृति की कल्पना अधूरी है , जितने गददी लोग मेहनती होते है उतने ही समृद्ध इनके रीती रिवाज और परम्पराए है lगद्दी समुदाय में शादी किस तरह से होती है इसके बारे में मैं एक एक कर के बताऊंगी। गद्दी समुदाय में पहले शादियां 16-25 की उम्र में हो जाती थीं लेकिन अब समय के साथ-साथ सब बदल रहा है। गद्दी समुदाय में बड़े-बुजुर्ग अपने समुदाय, जात-बिरादरी के बाहर शादी करना या लव मैरिज़ को अब भी बुरा मानते हैं। जैसे ही लड़का या लड़की की उम्र शादी के लायक होती है उनके सगे-संबंधी, आस-पड़ौसी उनके लिए योग्य साथी ढूंढने में लग जाते हैं। शादी बहुत से रीति-रिवाजों का मेल होता है। मैं एक-एक करके कुछ रिवाजों से अवगत कराऊंगी।
1. सगाई ( कुड़माई या मंगणी ):
जहां तक मैंने सुना है गद्दी लोग अपने बच्चों की जल्दी शादी करने में विश्वास रखते हैं। वे अपने पुरोहित या किसी ऐसी व्यक्ति या रिश्तेदार को भेजते हैं जो दोनों परिवारों के बीच बातचीत करा सके। इसे ” रूबारू दीणे या रूबारू लाणे” कहते हैं। कईं बार दूसरी पार्टी सीधा ही मना कर देती है और कईं बार सारी खोज-बीन और परिवार के बारे में पता करने के बाद सोच-समझ कर जवाब देते हैं। जब दोनों परिवार सहमत हो जाते हैं तो कोई अच्छा दिन कुड़माई के लिए तय किया जाता है। लड़के का पिता अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ लड़की के घर पहुंचता है और कुछ चीजें लेकर जाता है जिसे “बरतन” कहते हैं।
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(i) बरतन:
बरतन में बांस की टोकरी में लाल रंग के कपड़े से ढककर बबरू, मिठाईयाँ, एक गुड़ वाली रोटी, धनिया और टीके के लिए सिंदूर लेकर जाते हैं। आमतौर पर लड़के का पिता अपने कुछ सगे-संबंधियों के साथ लड़की के घर शाम को पहुंचता है और लड़की वाले उनका आदर सत्कार करते हैं। गुड़ की बनी रोटी को पत्थर की सिल पर रखा जाता है और एक थाली में घी, दूब और धनिया रखा जाता है। उस थाली में इन सब चीजों के साथ सवा एक रूपया( 1रूपये 25 पैसे) भी रखा जाता है। रोटी को तोड़ने से पहले लड़के और लड़की के पिता दोनों के नाम सबके सामने बताते हैं और रोटी को तोड़कर थाली में डाल दिया जाता है। थाली में रखी दूब लड़के के पिता और उनके साथियों की पगड़ी में लगाई जाती है और उन पर लाल छिड़ककर गुड़ और घी वहां उपस्थित सभी लोगों में बांटा जाता है। सभी औरतें मंगलगीत गाकर इस अवसर का आनंद लेतीं हैं। उसके बाद उनको खाना खिलाया जाता है। सभी लोग खाना खाने के बाद अपनी प्लेट में कुछ पैसे छोड़ जाते हैं और गद्दी लोग इसे “जूठ पाणा” कहते हैं। यह पैसे इक्कठे करके उस लड़की को दिए जाते हैं जिसकी सगाई हुई होती है। अगले दिन खाने के बाद लड़के वाले जब वापिस जा रहे होते हैं तो गरीब लोग और पड़ोसी लड़के के पिता को बधाई देने के लिए दूब देते हैं और वो उनको बदले में कुछ पैसे देते हैं जिसे “बंड-चुड” कहते हैं। सगाई हो जाने के बाद लड़की और लड़के के पिता के संबंध को “कुड़म” कहते हैं और मां आपस में “कुड़मणी” बन जाती है। इसीलिए इस रस्म को “कुड़माई” भी कहते हैं। कुड़माई कभी भी “भादों” महीने में नहीं की जाती है क्योंकि कोई भी शुभ काम इसमें अच्छा नहीं माना जाता है।

भाग -2 शीघ्र……..
यह लेख मेने अपने निजी अनुभब दोस्तों और रिश्तेदारों से हुई बातचीत और इन्टरनेट पे किये शोध के आधार पर लिखा है , इसमें कोई सुधार या कोई गलती हो तो कमेंटस में जरुर लिखे,आपके कमेंट्स हमे प्रोत्साहित करते है –प्रियंका शर्मा ( एडमिन हिमाचली रिश्ता डॉट कॉम )
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