शादी एक ऐसा अवसर होता है जिसमें हर कोई बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। इस समारोह के पूरा होने तक शादी वाले घर में रिश्तेदारों और आस-पडौस के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। हिमाचल में लोग अभी भी सामुदायिक जीवन जीने में विश्वास रखते हैं और हर समारोह में एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
अभी तक आप लोगो ने हिमाचल के गद्दी समुदाय की शादी के ३ भाग पढ़े है आज चोथा भाग :
भाग-3 तक मैंने आपको बताया था कि कैसे गद्दी समुदाय में रिश्ता तय होने से लेकर ब्यौकङ रखने तक कि रश्में पूरी की जातीं हैं। शादी का दिन तय सो जाने के बाद दोनों ही घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सबसे पहले जो रश्म पूरी की जाती है वो है छेई और लेई-छेई की।
छेई : खाना बनाने, हवन और अन्य कामों में प्रयोग की जाने वाली लकङी किसी शुभ दिन पर काटी जाती है। इस दिन रिश्तेदारों और पडोसियों को आमंत्रित किया जाता है जो कि लकङी काटने में सहायता करते हैं और उसे एक चौकौर ढेर में रखी जाती हैं। भंडारित लकङी सिर्फ़ शादी में ही प्रयोग की जाती है। छेई के लिए रविवार, मंगलवार और सक्रांति के दिन शुभ माने जाते हैं। इसी दिन औरतें रूंई से डोरियां बनाते हैं जिन्हें वो बाद में रंगते हैं। महिलाएं इस अवसर पर अपनी खुशी जाहिर करने के लिए मंगल गीत गातीं हैं और सब लोगों को शादी के लिए तय किए गए दिन की जानकारी दी जाती है।
लेई-छेई : छेई के बाद लेई-छेई का आयोजन किया जाता है। छेई और लेई-छेई के समय लकङी काटते समय सब लोग अपने सिर को टोपी, पगङी या फिर कपङे से ढककर रखते हैं। जब भी लङकी के घर पर लखणोत्री लिखी जाती है उस समय अन्य महत्वपूर्ण बातों पर भी निर्णय लिया जाता है।
जैसे कि कब और किस समय लेई-छेई का आयोजन किया जाएगा? कौन सबसे पहली लकङी काटेगा और किन-किन पेङों की लकङी काटी जाएगी? पुरोहित घर के सभी सदस्यों के नामों के आधार पर उनको सभी लग्नों और मुहूर्तों के लिए नामांकित करता है। पुरोहित बताता है कि कौन से पेङों की लकङी काटी जाएगी और वो वही लकङी काटते हैं। अधिकतर आङू, खुमानी, अखरोट, आम, दाङू आदि की टहनियां काटी जाती हैं और काटी गई लकङी को बंडल बनाकर रखा जाता है। इस लकङी का प्रयोग शांद आदि अवसरों पर हवन के समय किया जाता है।
Picture source : Facebookगददी समुदाय में शादी का पिछला भाग पढने के लिए यहाँ क्लिक करे
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