आषाढ़ मास में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि (Gupta Navratri) के नाम से जाना जाता है. आषाढ़ नवरात्रि जून-जुलाई के समय में आती हैं. इस दौरान मां दुर्गा की 9 दिनों तक पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है. पौष, चैत्र, आषाढ,अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है.
गुप्त नवरात्रि कथा (Gupt Navratri katha)
कथा के अनुसार एक समय ऋषि श्रृंगी भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे. अचानक भीड़ से एक स्त्री निकलकर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती. धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती. यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती.
मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, उनकी भक्ति-साधना से अपने और परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं. ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए. ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है, लेकिन इसके अतिरिक्त 2 नवरात्रि और भी होते हैं जिन्हें ‘गुप्त नवरात्रि’ कहा जाता है.
उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रों में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है. इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है. यदि इन गुप्त नवरात्रि में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा-साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं.
ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती. उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्रि की पूजा की. मां उस पर प्रसन्न हुईं और उस स्त्री के जीवन में परिवर्तन आने लगा. उसके घर में सुख-शांति आ गई. पति, जो गलत रास्ते पर था, सही मार्ग पर आ गया. गुप्त नवरात्रि की माता की आराधना करने से उनका जीवन पुन: खिल उठा.
नवरात्रि के पहले दिन मां की सवारी–
नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा अलग-अलग सवारी पर विराजमान होती हैं। मोदिनी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां दुर्गा के वाहन से भी सुख-समृद्धि का पता लगाया जा सकता है। साल 2021 के चैत्र नवरात्रि की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मां दुर्गा अश्व (घोड़ा) पर सवार होंगी।
प्रत्यक्ष और गुप्त नवरात्र में अंतर
चार नवरात्र में से दो को प्रत्यक्ष नवरात्र कहा गया है क्योंकि इनमें गृहस्थ जीवन वाले साधना पूजन करते हैं। लेकिन जो दो गुप्त नवरात्र होते हैं, उनमें आमतौर पर साधक सन्यासी, सिद्धि प्राप्त करने वाले, तांत्रिक-मांत्रिक देवी की उपासना करते हैं। हालांकि चारों नवरात्र देवी सिद्धि प्रदान करने वाली होती हैं। लेकिन गुप्त नवरात्र के दिनों में देवी की दस महाविधाएं की पूजा की जाती है, जिनका तंत्र शक्तियों और सिद्धियों में विशेष महत्व है। जबकि प्रत्यक्ष नवरात्र में सांसारिक जीवन से जुड़ी हुई चीजों को प्रदान करने वाली देवी के 9 रूपों की पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्र में अगर आमजन चाहें तो किसी विशेष इच्छा की पूर्ति या सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्र में साधना करके मनोरथ की पूर्ण कर सकते हैं।
मां दुर्गा की दस महाविघाएं
गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की दस महाविघाएं की पूजा व साधना की जाती है। इनमें मां कालिके, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी देवी, माता चित्रमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, माता बग्लामुखी, मां कलमा देवी, मां धूम्रवती और मां मांतगी हैं।
गुप्त नवरात्र पर शुभ संयोग
चारों नवरात्रि के दौरान ऋतु परिवर्तन भी होता है और साधना व पूजा-पाठ के लिए ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति बनती है। जिससे इनकी पूजा करने का फल भी कई गुना मिलता है। इस बार गुप्त नवरात्रि की शुरुआत सूर्य के राशि परिवर्तन और गुरु और शुक्र तारा के उदय के साथ हो रही है। इसी नवरात्र की पंचमी तिथि को देवी सरस्वती का प्राकट्योत्सव बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाएगा। माघ मास की नवरात्रि 12 फरवरी से शुरू हो गई है और 21 फरवरी को पूर्ण होंगी। इस तरह यह पर्व 10 दिन का मनाया जाएगा क्योंकि हर दिन मां दुर्गा की महाविघाएं की पूजा की जाएगी।
गुप्त नवरात्र का महत्व
चारों नवरात्र हर साल तीन-तीन महीने की दूरी पर आती हैं। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र, गुप्त आषाढ़, प्रत्यक्ष आश्विन और गुप्त पौष माघ में मां दुर्गा की उपासना करके इच्छित फल की प्राप्ति की जाती है। प्रत्यक्ष नवरात्र में मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है और गुप्त नवरात्र में 10 महाविघा की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों का महत्व, प्रभाव और पूजा विधि बातने वाले ऋषियों में श्रृंगी ऋषि का नाम सबसे पहले लिया जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, एकबार एक महिला श्रृंगी ऋषि के पास आई और अपने कष्टों के बारे में बताया। महिला ने हाथ जोड़कर ऋषि से कहा कि मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हुए हैं और इस कारण कोई धार्मिक कार्य, व्रत या अनुष्ठान नहीं कर पा रही। ऐसे में क्या करूं कि मां शक्ति की कृपा मुझे प्राप्त हो और मुझे मेरे कष्टों से मुक्ति मिले। तब ऋषि ने महिला के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना करने के लिए कहा था। ऋषिवर ने गुप्त नवरात्र में साधना की विधि बताते हुए कहा कि इससे तुम्हारा सन्मार्ग की तरफ बढ़ेगा और तुम्हारा पारिवारिक जीवन खुशियों से भर जाएगा।
कब की जाती है कलश स्थापना–
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन 13 अप्रैल को कलश स्थापना की जाएगी। नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना शुभ फलकारी माना गया है। नवरात्रि के दौरान मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
क्यों करते हैं कलश स्थापना–
पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए।
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