धर्मशाला से करीब 20 किलोमीटर दूर और धौलीधार की तलहटी में बसे खनियारा गांव में शिव भक्तों की टोलियां उनके दर्शन के लिए पहुंच रही हैं. खनियारा गांव में भगवान महादेव का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर अघंजर महादेव के नाम से मशहूर है. इस मंदिर के बारे में कहते हैं कि इसकी स्थापना महाभारतकालीन है. दंत कथाओं के मुताबिक खनियारा गांव में महाभारत के बराह पर्व में अर्जुन ने भगवान शिव से जहां पशुपति अस्त्र प्राप्त किया था. इसके कई जीते-जागते उदाहरण आज भी इस मंदिर के परिवेश में साफ देखे जा सकते हैं.


पांडवों ने की थी इस मंदिर की स्थापना

दंत कथाओं के मुताबिक खनियारा गांव में महाभारत के बराह पर्व में अर्जुन ने भगवान शिव से जहां पशुपति अस्त्र प्राप्त किया था.

बराह पर्व के दौरान अज्ञातवास के वक्त अर्जुन ने तत्कालीन जंगल और आज के खनियारा गांव में पशुपति अस्त्र प्राप्त करने के लिए एक ओर जहां गुप्तेश्वर महादेव की स्थापना की थी. अर्जुन ने राज-पाठ भोगने के बाद वन पर्व के समय हिमालय पर्वत की यात्रा करते हुए इसी स्थान पर दोबारा गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन किए और महावीर अर्जुन के कहने पर इसी स्थान पर पांडवों ने दोबारा भगवान महादेव का अघंजर नाम से मंदिर तैयार किया.

यहां गुप्तेश्वर महादेव के भी दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु

महावीर अर्जुन के कहने पर इसी स्थान पर पांडवों ने दोबारा भगवान महादेव का अघंजर नाम से मंदिर तैयार किया.

मंदिर के पुजारियों के मुताबिक अगर आघंजर का संधि विच्छेद किया जाए तो आघन का अर्थ है पाप और अंजर का अर्थ होता है नष्ट हो जाना. सो यही वजह है कि पांडवों ने महाभारत के युद्ध में अपने गुरुओं, भाइयों और पूर्वजों का संहार किया था और यह उनपर पाप की तरह सवार था. पांडव इसी पाप से मुक्त होना चाहते थे. इस स्थान पर उस वक्त अर्जुन के कहने पर महादेव के एक और मंदिर की स्थापना की गई इसे अघंजर महादेव का नाम दिया. आज यहां जहां अघंजर महादेव के साथ यहीं के एक गुफा में गुप्तेश्वर महादेव के भी दर्शन होते हैं.

300 वर्ष पुराने शिलालेखों में मिलता है वर्णन

इस मंदिर की प्रसिद्धि के चलते यहां देशी-विदेशी श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं.

अघंजर महादेव मंदिर में जलते अखंड धूने का इतिहास बहुत पुराना है. इस धूने का इतिहास महाराजा रणजीत सिंह के साथ जुड़ी हुई किवदंतियों के शिलालेख में भी मिल जाता है. अखंड धूने के बाहर लगे तीन सौ साल पुराने शिलालेख बताते हैं कि सिखों के सरदार और महाराजा रणजीत सिंह जब अपनी रियासत कांगड़ा के जंगलों में आखेट के दौरान भटक कर यहां पहुंचे तो यहां मौजूद एक फकीर से उनका इस कदर वास्ता पड़ा कि वो सदैव के लिए उनके मुरीद हो गए.

Himachali rishta

क्या आप हिमाचली है और अपने या किसी रिश्तेदार के लिए अच्छा रिश्ता ढूंड रहे है ?आज ही गूगल प्ले स्टोर से हिमाचली रिश्ता की एप डाउनलोड करे और चुने हजारो हिमाचली प्रोफाइल में उचित जीवनसाथी हिमाचली रिश्ता डॉट कॉम पर 

Himachal Matrimonial Service Himachali rishta

Facebook Comments

Leave a Reply