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काँगड़ा जिले का काठगढ़ महादेव मंदिर  जिसमे  शिवलिंग अर्धनारीश्वर रूप में है और दो विभिन्न रूपों में बंटे शिवलिंग में ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तन के अनुसार इनके दोनों भागों के मध्य का अंतर घटता-बढ़ता रहता है

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर बहुत से प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। कांगड़ा जिले में एक बहुत ही अनोखा शिवलिंग है,यहां के काठगढ़ महादेव मंदिर में शिवलिंग अर्धनारीश्वर रूप में है। साथ ही शिव-पर्वती के रूप में बंटे यहां के शिवलिंग के दोनो भागों के बीच अपनेआप दूरियां घटती-बढ़ती रहती हैं।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में काठगढ़ महादेवका मंदिर स्थित है। पठानकोट से बरास्ता इंदौरा से 22  किलोमीटर, मीरथल पंजाब से तीन किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंचे टीले पर नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। इसके दक्षिण में ब्यास नदी बहती है। इस धार्मिक स्थल पर दो नदियों का संगम होता हैHimachali Rishta Himchal Matrimonial websiteAdvt : क्या आप अपने परिवार में किसी के लिए हिमाचली रिश्ता ढूंड रहे है आज ही फ्री रजिस्टर करे हिमाचलीरिश्ता डॉट कॉम परHimachali Rishta Himachal Matrimonial website | Register Free today and search your soulmate among the thousands of himachali grooms/brides

दो भागों में बंटा है शिवलिंग

इसे विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुअ है। मां पार्वती और भगवान शिव के दो विभिन्न रूपों में बंटे शिवलिंग में ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तन के अनुसार इनके दोनों भागों के मध्य का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में यह स्वरूप दो भागों में बंट जाता है और शीत ऋतु में फिर से एक रूप धारण कर लेता है।

सिंकंदर ने किया था निर्माण

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, काठगढ़ महादेव मंदिर का निर्माण सबसे पहले सिकंदर ने करवाया था। इस शिवलिंग से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर मंदिर बनाने के लिए यहां की भूमि को समतल करवा कर, यहां मंदिर बनवाया था।

दोनों भागों का आकार घटता बढ़ता रहता है

दो भागों में विभाजित शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर शिवलिंग के दोनों भाग मिल जाते हैं। यहां का शिवलिंग काले-भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 7-8 फीट है और पार्वती के रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 5-6 फीट है।

 

शिवरात्रि के त्योहार पर हर साल यहां तीन दिन मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के संगम के दर्शन करने के लिए यहां कई भक्त आते हैं। इसके अलावा सावन के महीने में भी यहां भक्तों की भीड़ देखी जा सकती हैं।

अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में  पोराणिक कथाये :

अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो कथा पुराणों में दी गयी है उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उसमें विकास की गति नहीं है। जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है उनकी संख्या में वृद्घि नहीं हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।

ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे शिव जी प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि मैथुन सृष्टि कैसी होगी, कृपया यह भी बताएं। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया।

इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिवा यानी शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इसके बाद अर्द्घनारीश्वर स्वरूप एक होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गया। इसके बाद मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।

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