हिमाचल देव भूमि के साथ साथ वीरभूमि भी है I देश में वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र सबसे ज्यादा हिमाचल के ही नाम है l आज मैं आप सबको एक ऐसे चेहरे से वाकिफ कराने जा रही हूँ जिनके साहस को पूरा देश सालों साल याद रखेगा। जी हाँ मैं आपको कारगिल युद्ध के एक हीरो रायफलमैन संजय कुमार जो कि इस समय सेना में सूबेदार के पद पर हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं, की कहानी से आपको अवगत करा रही हूँ। कैसे एक गुमनाम से गांव में एक सादा जीवन जीने वाले परिवार में पैदा हुए संजय कैसे पूरे देश की शान बन गए।
जन्म और शिक्षा
संजय का जन्म 3 मार्च 1976 में प्रदेश के बिलासपुर जिला के कलोल बकैण गांव में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई लेकिन उनकी आँखों में फौज में ही जाने का सपना बसता था। संजय कुमार के चाचा फौज में थे और उन्होंने1965 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी। गाँव में दूसरे लोग भी थे, जो सभी फौज में रहे थे।
सेना में जाने से पहले थे टैक्सी ड्राईवर, भर्ती में 3 बार रिजेक्ट होने के बाद भी हिम्मत नही हारी
संजय कुमार का सपना बचपन से ही सेना में भर्ती होने का था,फौजी बहादुरी के किस्से सुनाकर गाँव के युवकों को उत्साहित करते रहते थे। उन्हीं युवकों में संजय कुमार भी थे। मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद संजय ने इधर-उधर से यह पता करना शुरू कर दिया कि उसे फौज में कैसे जगह मिल सकती है। सेना में जाने से पहले उन्होंने दिल्ली में टैक्सी ड्राईवर के तौर पर काम किया था। उनको सेना में शामिल होने से पहले तीन बार अस्वीकार किया गया था और अंत में 4जून 1996 में उनको सेना में शामिल कर लिया गया था।
कारगिल युद्ध के हीरो
4 जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान जम्मू और कश्मीर की 13वीं बटालियन के सदस्य के रूप में मौशकोह घाटी में एरिया फ्लैट टाॅप पर कब्जा करने वाली एक टीम का प्रमुख हिस्सा थे। उस क्षेत्र पर को पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा जमा रखा था। चट्टानों को पार करने के बाद, टीम पर लगभग 150 मीटर की दूरी से एक दुश्मन बंकर ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और टीम को रोक दिया गया।
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शुरूआत में संजय और उनकी टीम अपने मिशन में कामयाब नहीं हुए। लेकिन सेना ने 5 जून 1999 को सुबह होने से पहले अंतिम अटैक करने की ठानी और यह संजय के जीवन का अहम पल था जब उनको अटैक का नेतृत्व करने के लिए कहा गया। संजय ने स्थिति और उसके दुष्परिणामों को जानते हुए, इस सुनहरे अवसर को न गंवाते हुए उस एरिया फ्लैट टाॅप को जीतने की ठानी। उन्होंने आग के गोलों के बीच रेंगते हुए एक दिशा में दुश्मनों के बंकर की ओर बढना शुरू किया। तभी अचानक दो गोलियां उनके सीने और बाजू में जा लगी और वे लहुलूहान हो गए।
कारगिल युद्ध में जख्मी हो कर भी दुश्मन के छक्के छुडाते हुए कई दुश्मन सनिक मार गिराए
गोलियां लगने से खून में लथ-पथ होने बावजूद उन्होंने रूकने की बजाय दुश्मन बंकर की ओर बढना जारी रखा। उन्होंने आगे बढकर तीन दुश्मनों को मार गिराया और दुश्मनों का ही मशीन गन उठाकर दूसरे दुश्मन बंकर की ओर बढते चले गए। दुश्मन सैनिकों को उन्होंने अचंभित कर दिया और उनको मार गिराया क्योंकि वो अपनी जगह से भाग गए थे। उनके इस आश्चर्यचकित कर देने वाले साहस से प्रेरित होकर बाकी पलटन भी वहां पहुंच गई और फतेह हासिल की।
मात्र 23 बर्ष कि आयु में कारगिल हीरो बन कर हासिल किया सर्वोच्च परमवीर चक्कर
संजय उस समय महज 23 साल के थे जब उनको उनके साहस और निष्ठा के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र जो 1950 से अब तक 21 लोगों को ही सौंपा गया है, से सम्मानित किया गया । इस युद्ध में चार बहादुर सैनिकों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया रा, जिनमें दो अधिकारी थे और दो जवान। इन चार सौभाग्यशाली सेनानियों में दो तो वीरगति को प्राप्त हो गए जिनमें कैप्टन विक्रम बत्रा भी एक थे।
संजय कुमार आज भी 26 जनवरी कि परेड में हर साल हिस्सा लेते है l संजय कुमार जैसे सैंकड़ो हिमाचली युवा आज भी देश कि सेवा में सेना,बायुसेना ,नेवी ,BSF,CRPF,ITBP आदि में तैनात है l बीइंग पहाड़ी के माधयम से हम लोग आप के सामने हिमाचल के इन गोरवो को आपके सामने लाते रहेंगे I इस लेख का को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना मत भूले I
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यह लेख प्रियंका शर्मा , बिलासपुर हिमाचल प्रदेश लिखा है लेखिका स्पीक आउट हिमाचल और हिमाचली रिश्ता कि पेज एडमिन होने के साथ साथ दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है l हिमाचल कि संस्कृति कि और इनका विशेष झुकाब रहा है
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