इसमें कोई शक नहीं है हिमाचल एक वीरभूमि रही है। यहाँ बहुत से बहादुर सपूतों ने जन्म लिया है। बहुत से जाबांजों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हम चार दिन शोक मना कर भूल जाते हैं। सरकार भी एक दो जगम स्मृति चिन्ह बनाकर अपना फर्ज पूरा कर देती है। लेकिन बहुत से ऐसे जवान हैं जिनके अपने उनके लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं। जब भी किसी अपराधी की सजा की बात आती है तो सारे मानवाधिकार वाले जाग जाते हैं, जबकि हमारे कितने ही जवानों के साथ पाकिस्तानी सेना ने कैसा-कैसा व्यवहार किया है। ऐसे ही एक बहादुर वीर थे कैप्टन सौरभ कालिया। कैप्टन सौरभ कालिया भारतीय सेना में अफसर थे जिन्हें पाकिस्तानी सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान बंदी बना लिया था और उनको मार दिया था। कैप्टन कालिया और उनकी पांच लोगों की टीम जब पैट्रोलिंग पर गए थे तो उनको पाकिस्तानी सेना जिंदा पकड़ कर ले गए थे और कैद कर लिया जहां उनको प्रताड़ित किया और मार दिया था।
कैप्टन कालिया का जन्म 29 जून 1976 में अमृतसर में श्रीमती विजया और डॉ एन के कालिया के घर हुआ था। उन्होंने डी ए वी स्कूल पालमपुर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से उन्होंने बी एससी मेडिकल में ग्रेजुएशन की। अपनी शैक्षणिक करियर में सौरभ बहुत ही अच्छे थे और बहुत सी स्काॅलरशिप भी प्राप्त की। 1997 में इन्होंने भारतीय सेना को ज्वाइन किया था। कैप्टन सौरभ कालिया अगस्त 1997 में सी डी एस की परीक्षा पास करके आई ऐम ए के लिए चयनित हुए थे और 12 दिसम्बर 1998 को पास आऊट हुए थे। उनकी पहली पोस्टिंग 4th जाट रेजीमेंट में कारगिल में हुआ था। सौरभ 31 दिसम्बर 1998 को बरेली की जाट रेजीमेंटल सेंटर में रिपोर्ट करने के बाद जनवरी 1999 में वहां पहुंचे थे।
मई 1999 के शुरू के दो हफ्तों में कारगिल के काक्सर लांगपा में चेंकिग चल रही थी यह देखने के लिए कि गर्मियों में पोजीशन लेने के लिए बर्फ ठीक से पिघल गई है या नहीं।
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया पहले भारतीय सेना के अफसर थे जो कारगिल में सीमा पर पाकिस्तानी सेना के बढते अतिक्रमण को नोटिस में लाए थे। उन्होंने काक्सर क्षेत्र में घुसपैठ की जांच के लिए 13,000-14,000 फीट पर “बजरंग पोस्ट” को तैनात किया था।
15 मई 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और 4th जाट रेजीमेंट के पांच अन्य सिपाही, सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल बगारिया, भीका राम, मूला राम और नरेश सिंह काक्सर के बजरंग पोस्ट पर गश्त लगाने गए थे। एल ओ सी पर पाकिस्तानी सेना के साथ लगातार क्रास फायरिंग के बाद वो और उनके साथी वहां से भागने लगे। अंत में पाकिस्तानी रेंजर्स ने उनको भारतीय एजेंसियों के पहुंचने से पहले ही उनको जिंदा पकड़ लिया। उनकी गश्त का कोई सुराग नहीं रह गया था तभी बीच में पाकिस्तानी रेडियो स्कार्दू में यह घोषणा कर दी गई कि सौरभ कालिया और उनके साथियों को पाकिस्तान रेंजर्स ने पकड़ लिया है। जब यह बात भारतीय सेना को पता चली, उसके बाद उन्होंने पहाड़ों की चोटियों पर गोरिल्ला को तैनात कर दिया।
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनके साथी 15 मई 1999 से 7 जून 1999 तक 22 दिन दुश्मनों की कैद में रहे जहां उन्हे बहुत सी प्रताड़नाएं दी गईं थी और 9 जून 1999 को जब उनके शरीर भारत को सौंपे गए तो उनके शरीर पर पाई गई बहुत सी चोटों को देखकर पाकिस्तानियों द्वारा दी गई प्रताड़नाओं के निशान थे। पोस्ट माॅरटम रिपोर्ट में यह पाया गया कि पाकिस्तानियों ने उनको शरीर को सिगरेट से जलाया, कानों में गर्म रौड़ डालकर पर्दों में छेद किए, आंखो को फोड़ दिया था, उनकी अधिकतर हड्डियां और दांत तोड़ दिए, सिर में गंभीर चोटे की, उनके होठों, नाक, कईं अंगों और गुपतांगो को काट दिया और अंत में गोली मारकर खत्म कर दिया। क्योंकि उनके शरीर पर गोली के निशान पाए गए थे और यह भी पोस्टमाॅर्टम में बताया गया कि ये सारी चोटें मरने से पहले दी गईं थी। 9 जून 1999 को डाॅ ऐन के कालिया ने कारगिल सेक्टर में भारतीय सेना के अफसरों के साथ उनका शव हासिल किया।
15 जून 1999 को नई दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास के उप उच्चायुक्त को बुलाया गया था, और कारगिल युद्ध के दौरान युद्ध के कैदियों की यातना और हत्या के लिए जिनेवा कन्वेंशन के उल्लंघन का नोटिस दिया गया था। उस समय रहे विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज के सामने इस मुद्दे पर बात की और दोषी लोगों की पहचान और सजा की बात कही। लेकिन पाकिस्तान ने अत्याचार के आरोपों से इन्कार कर दिया। 14 दिसम्बर 2012 उको पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री रहमान मलिक ने व्यक्त किया कि हो सकता है लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की मौत खराब मौसम के कारण हुई हो। उन्होंने कहा कि यह बात स्पष्ट नहीं है कि लेफ्टिनेंट सौरभ की मौत पाकिस्तानी गोली से हुई है या खराब मौसम से। उसने लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता से मिलने की बात कही। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को लेफ्टिनेंट कालिया के पिता द्वारा दी गई याचिका के लिए दस दिन में जवाब देने का नोटिस जारी किया।
बहुत साल बीत जाने के बाद भी लेफ्टिनेंट कालिया का परिवार उनके बेटे और अन्य सैनिकों पर हुए अत्याचार के खिलाफ सरकार से न्याय के लिए लड़ रहे हैं। उनके पिता अपने बेटे के केस को यूनाईटेड नेशनस में इसे अपराध घोषित करना चाहते हैं और दोषियों को सजा की मांग कर रहे हैं। “मैं भारतीय होने पर शर्म महसूस करता हूँ। भारत में बिना रीढ के नेता हैं।” लेफ्टिनेंट सौरभ के पिता कहते हैं। उन्होंने एक ऑनलाइन सिग्नेचर कैंपेन भी चलाया था। लेफ्टिनेंट कालिया के पिता ने बहुत सी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ऑर्गेनाइजेशन से पाकिस्तान पर दोषियों को ढूंढने और सजा देने का प्रैशर डालने के लिए बात की। लेकिन सभी देशों से कोई उचित जवाब नहीं मिला।
आज भी गहरे सदमें में हैं परिवार
लेकिन, कैप्टन कालिया के साथ जो हुआ, उसे सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आंखों में आंसू आ जाते हैं। आज उनका परिवार भी गहरे सदमें में है। अपने 22 साल के बेटे कैप्टन सौरभ कालिया को देश के लिए कुर्बान करने वाले माता-पिता अपने बेटे से हुये इस अमानवीय व्यवहार पर आज भी इंसाफ हासिल करने की आस में अपनी बची हुई जिंदगी काट रहे हैं। सौरभ के परिवार ने भारत सरकार से इस मामले को पाकिस्तान सरकार के सामने और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाने की मांग की थी
ऐन के कालिया कहते हैं कि अगर यह यू एस या इजरायल की सेना के साथ हुआ होता तो पूरा दुनिया छान देते। सरकार से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है और केस अभी भी पैंडिंग ही पड़ा है। उनका कहना है कि वो और उनका परिवार अंत तक इसके लिए लड़ते रहेंगे।
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया जो कि बाद में युद्धक्षेत्र में ही प्रोमोट होकर कैप्टन बन गए थे, के सामान को जैसे फोटोग्राफ, यूनीफाॅर्म, जूते और मोमैंटो उनके पालमपुर स्थित घर ” सौरभ निकेतन” में एक अलग कमरे में रखे गए हैं जिसे “सौरभ स्मृति कक्ष” का नाम दिया गया है। हिमाचल सरकार ने उनके नाम पर पालमपुर में 35 एकड़ में “सौरभ वन विहार” के नाम से एक पार्क बनाया है। एक गली का नाम सौरभ मार्ग रखा गया है और एक सोसाइटी का नाम “सौरभ नगर” रखा गया है। पालमपुर में विवेकानंद मैडिकल रिसर्च ट्रस्ट हाॅस्पिटल उनके नाम पर बनवाया गया है। अमृतसर में उनकी मूर्ति स्थापित की गई है और इंडियन ऑयल काॅरपोरेशन ने उनके माता-पिता को एक एल पी जी एजेंसी दी गई है।
इतने साल बीत गए हैं, इतनी कोशिशों के बावजूद भी, कैप्टन सौरभ कालिया और अन्य सैनिकों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है। इतनी घटनाएं अभी भी सामने आ रहीं हैं जिनमें भारतीय सैनिकों के शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया जाता है। कब तक इस तरह की यातनाएं दी जातीं रहेंगी। कितने सौरभ कालिया जैसे वीरों को खो देंगे। उनके पिता लगातार इस कोशिश में हैं कि वो उन सभी जवानों को इंसाफ दिला सकें लेकिन सरकारें सोई पड़ी हैं। कितनी सरकारें बनी लेकिन किसी भी सरकार ने इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट तक नहीं पहुंचाया। हम सब भी तो चुप हो जाते हैं कुछ दिन जय हिन्द और जय जवान के नारे लगाकर। कुछ दिन बाद सब भूल जाते हैं। उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। सरकार को इस मामले की ओर कड़ा रूख अपनाना चाहिए क्योंकि कड़ी निंदा से कुछ नहीं होता। ऐसे में तो कोई भी माँ अपने वीर बेटे को सेना में भेजने को तैयार नहीं होगी, तब कौन रक्षा करेगा सरहदों की? हम सभी को सैनिकों के इंसाफ के लिए एकजुट होना चाहिए। यह हम सबका फर्ज है।
जय हिन्द। जय हिमाचल।
जय जवान।
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