हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं, ऋषि मुनियों और पीर-पैगंबरों की धरती है. यही वजह है कि प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहां स्थित शक्तिपीठों और मंदिरों पर लोगों की अटूट आस्था तो है ही साथ ही कई मंदिरों में लोगों के शारीरिक कष्ट और बीमारियों से निजात दिलाने के दावे भी किए जाते हैं. ऐसा ही एक दावा जाहरवीर गुगा जी महाराज के मंदिर में भी किया जाता है. पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग स्थित ग्राम पंचायत सलोह में यह मंदिर है. यहां लोग शारीरिक कष्टों की जैसे सर्पदंश, मानसिक बीमारियों, भूत-प्रेत और अन्य बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं. हिमाचल के साथ-साथ बाहरी राज्यों से भी वो लोग यहां आते हैं. सबसे हैरानी की बात ये है कि यह सिलसिला यहां 2 या तीन सालों से नहीं बल्कि 160 सालों से चलता आ रहा है.ऐसी मान्यता है कि जाहरवीर गुगाजी महाराज यहां के पुजारी पफुउ राम के साथ आए और यहां विराजमान हो गए
मंदिर का इतिहास ( History of Gugga Jaharveer,Saloh)
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गुग्गाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा, जाहर वीर व जाहर पीर, जाहरवीर के नामों से पुकारते हैं। गुग्गा जाहरवीर गुरु गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गुग्गाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी के दिन लोग श्रद्धा से उनकी छतरी पर डोरियाँ, चूड़ियाँ, श्रृंगार का सामान, कपड़े की कतरने आदि बाँध कर मंगल की कामना करते हैं.
गुग्गा जाहरवीर का मंदिर 400 साल से अधिक पुराना बताया जाता है। मंदिर कमेटी के उपाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार ने बताया कि बाबा राजस्थान से यहां आए थे। उस वक्त यहां पर उन्होंने जिन लोगों को खेल आती थी उन्हें ठीक किया। इसके बाद से यह स्थान मान्य हो गया
गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी गुरुभक्त, वीर योद्धा ओर प्रतापी राजा थे
गुरु गोरखनाथ के थे शिष्य
गुग्गा जाहरवीर गुरु गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गुग्गाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी के दिन तक गुग्गा जाहरवीर के मंडलीदार गुग्गा जाहरवीर के संकेत छतरी साथ गाँव में घर-घर जाकर लोगों के सुखमयी जीवन की कामना करते हैं. लोग श्रद्धा से उनकी छतरी पर डोरियाँ, चूड़ियाँ, श्रृंगार का सामान, कपड़े की कतरने आदि बाँध कर मंगल की कामना करते हैं.
कथा सुनने से कष्ट होते हैं दूर
गुरू गोरखनाथ के आशिर्वाद से राजा गुग्गामल महा-वीर, नागों को वश में करने वाले तथा सिद्धों के शिरोमणि हुए. उनके मन्त्र के जाप से वासुकी जैसे महानाग के विष का प्रभाव भी शांत हो गया था. कहते हैं इनकी कथा सुनने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही सर्पभय से भी मुक्ति मिलती है.
यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि लोग यहाँ अपने शारीरिक कष्टों की जैसे सर्पदंश, मानसिक बीमारियों, भूत-प्रेत और अन्य बीमारियों को दूर करने आते हैं, वो लोग इन बीमारियों से छुटकारा पाने के बाद ठीक होकर अपने – अपने घरों को खुशी-खुशी जाते हैं.
यहां बाबा के आशीर्वाद से ठीक होते हैं मानसिक रोगी
यहाँ के कई लोगों का मानना है जिन पर या तो दैवीय प्रकोप हो या कोई जादू टोने का असर हो वे यहां आकर ऐसे कष्टों से मुक्ति पा लेते हैं. यह सिलसिला रक्षाबंधन के बाद नौ दिन तक चलता है। यहां पर आने वाले लोगों को लोहे के संगल से आशीर्वाद दिलवाया जाता है।
‘रक्षाबंधन के साथ ही यहां नौ दिन तक मेले आरंभ हो जाते हैं। गुग्गा छतरी को लेकर आसपास के गांवों का दौरा किया जाता है। मंदिर में जादू-टोने या किसी अन्य रूप से बीमार लोगों को राहत मिलती है। यही कारण है कि यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग आते हैं।’
कहाँ पर है मंदिर और कैसे पहुंचे
वैसे तो गुग्गा जाहरवीर के कई सारे मंदिर है ,बिलासपुर ,हमीरपुर ,ऊना ,पंजाब और राजस्थान में इसके कई मंदिर है , लेकिन इस लेख में हम बात कर रहे है पालमपुर तहसील में आने वाले मंदिर की जो की सलोह गांव में स्थित है
यहां पहुंचने के लिए आपको मंडी पठानकोट रोड पर अरला नाम की जगह पर अंदर लिंक रोड में मुड़ना है ,पालमपुर से यह लगबघ 10 किलोमीटर है ,आप निचे दिए गए गूगल मैप से आसानी से यहाँ तक पहुंच सकते है
गुग्गा ‘वीर’ हैं या ‘पीर?’
गुग्गा को हिंदू और मुस्लिम दोनों में सम्मान मिलता है, इसलिए यह भ्रम होना लाजिमी है। दरअसल जानकारों का मानना है कि वीर और पीर मे कोई अंतर नहीं है। जिस शक्ति को हिंदू वीर के रूप में पूजते हैं, मुस्लिम उसे पीर के नाम से मानते हैं।
हिंदू धर्म के लोग गूगा (गुग्गा) को चौहान या वीर के नाम से पूजते हैं जबकि मुस्लिम गूगा जाहर पीर के नाम पर। ऐसी भी मान्यता है कि एक ग्वाले ने डंडा मारा था गूगा के शरीर का जो भाग धरती में धंस गया उसे हिंदुओं ने लखदाता के रूप में माना और जो बाहर रह गया वह मुस्लिमों के लिए जाहर पीर बन गया।
आज हालात बदल गए हों मगर एक दौर था जब पीरों की दरगाहों में हिंदू खासी संख्या मे जाते थे और उसी तरह वीरों, योगियों और सिद्ध महात्माओं के दरबार में मुस्लिम आते थे। मगर आज लोग हिंदू और मुस्लिम के चक्कर में ऐसे पड़ गए हैं कि इस साझी संस्कृति को विकृत करने पर तुले हुए हैं।
गुग्गा जाहरवीर छतरी की यात्रा
रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी के दिन तक गुग्गा जाहरवीर के मंडलीदार गुग्गा जाहरवीर के संकेत छतरी साथ गाँव में घर-घर जाकर लोगों के सुखी जीवन की कामना करते हैं। इस दौरान लोग श्रद्धा से उनकी छतरी पर डोरियाँ, चूड़ियाँ, श्रृंगार का सामान, कपड़े की कतरने आदि बाँध कर मंगल की कामना करते हैं। यह यात्राएं जन्माष्टमी तक चलती है
Leave a Reply