पांडवों के समय से स्थापित प्रसिद्ध माता मुरारी देवी मंदिर सुंदरनगर

प्राचीन काल में पृथ्वी पर मूर नामक एक पराक्रमी दैत्य हुआ। उस दैत्य ने देवताओं को पराजित करने के उद्देश्य से ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और उनसे वरदान मांगा कि मैं अमर हो जाऊं एवं कोई भी देवता या मानव मुझे ना मार सके। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं विधि के विधानों से बन्धा हूं, इसलिये तुम्हें अमर होने का वरदान नहीं दे सकता, परन्तु मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा वध किसी भी देवता, मानव या जानवर के द्वारा नहीं होगा बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा।

Murari Devi Temple is a great & Famous place to visit in Sunder Nagar (Mandi) in Himachal Pradesh. This Temple is in the west of Sunder Nagar on the top of a sacred hill named Murari Dhar also known as Sikandara Ri Dhar (Ancient Name). It is believed that this temple was founded by Pandvas during their “AGYATWAAS”. There are also some rocks on which some large human footprints can be seen and local people say that these foot prints are of Pandvas

घमण्डी मूर दैत्य ने सोचा कि मैं तो इतना शक्तिशाली हूं, एक साधारण एवं अबला कन्या मेरा वध कहां कर पायेगी? मैं तो अमर ही हो गया हूं। ये सोचकर उस दैत्य ने पृथ्वी लोक पर अत्याचार करने शुरू कर दिये। उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को वहाँ से निष्कासित कर दिया और स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा। समस्त सृष्टि उसके अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी। वो असुर बहुत उपद्रव मचाता था जिस से प्राणियों को बहुत कष्ट सहना पड़ता था।

सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए, तो भगवान ने कहा चिंता मत करो, मैं अवश्य आपके कष्टों का निवारण करूँगा । भगवान विष्णु और मूर दैत्य का आपस में युद्ध आरम्भ हो गया जो दीर्घकाल तक चलता रहा। युद्ध को समाप्त न होता देख कर भगवान नारायण को स्मरण हुआ की मूर का वध केवल कन्या के हाथों ही हो सकता है, ऐसा विचार करके वो हिमालय में स्थित सिकन्दरा धार (सिकन्दरा री धार) नामक पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए।

मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा तो उस ने देखा की भगवान निद्रा में हैं और हथियार से भगवान पे वार करूं, ऐसा सोचा तो भगवान के शरीर से 5 ज्ञानेद्रियों, 5 कर्मेंद्रियों, 5 शरीर कोषों और मन ऐसी 16 इन्द्रियों से एक कन्या उत्पन्न हुयी। उस कन्या ने मूर को युद्ध के लिए ललकारा। तब कन्या और मूर दैत्य का घोर युद्ध हुआ। उस देवी ने अपने शस्त्रों के प्रहार से मूर दैत्य को मार डाला। मूर दैत्य का वध करने के कारण भगवान विष्णु ने उस दिव्या कन्या को मुरारी देवी के नाम से संबोधित किया। एक अन्य मत के अनुसार भगवान विष्णु जिन्हें मुरारी भी कहा जाता है, उनसे उत्पन्न होने के कारण ये देवी माता मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं एवं उसी पहाड़ी पर दो पिण्डियों के रूप में स्थापित हो गयीं जिनमें से एक पिण्डी को शान्तकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है। माँ मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई।Himachali Rishta Himchal Matrimonial websiteHimachali Rishta Himchal Matrimonial website | Register Free today and search your soulmate among the thousands of himachali grooms/brides

द्वापर युग में जब पांडव अपना अज्ञातवास काट रहे थे, तब वो लोग इस स्थान पर आये। देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि पहाड़ की चोटी पर जाकर खुदाई करो, वहां पर तुम्हें मेरी दो पिण्डियां मिलेंगी। उस स्थान पर एक मन्दिर बना कर उन पिण्डियों की स्थापना करो। माता के आदेशनुसार पांडवों ने वहां एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया। आज भी मन्दिर से थोड़े नीचे जाकर देखें तो वहां पर पांडवों के पदचिन्ह कुछ पत्थरों पर देखे जा सकते हैं।

दिव्य शक्ति ने अपनी उपस्थिति का प्रभाव इस क्षेत्र के लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कराकर उद्धार किया है। इसी तरह लोगों की आस्था का कारवां बढ़ता गया और सन् 1992 में इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गावों के माता भक्तों ने एक कमेटी का गठन किया एवं उसके बाद अगाध श्रद्धा रखने वालों के आर्थिक सहयोग एवं कमेटी की निष्ठा, कर्मठता, सेवाभाव, इमानदारी, श्रद्धा व समर्पण के एक-एक पुष्प से यह अभूतपूर्व प्रकल्प जनसम्मुख है। विशाल गगनचुम्बी भव्य मन्दिर, सरायं, भंडारा भवन व संपत्ति रूपी धरोहर इस शक्तिपीठ की अब विरासत बन चुकी है। मन्दिर परिसर में ही सन् 2005 से अटूट भंडारे का शुभारंभ बाबा कल्याण दास (काला बाबा जी) द्वारा किया गया। मन्दिर सरायं में एक हज़ार से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था है।

माता के सभी भक्त एक बार इस मनोरम एवं शांतिमय शक्तिपीठ में पधार कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करें एवं यहां के भव्य वातावरण का आनद लें।

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