हिमाचल की धरती देवभूमि कही जाती है। यहां चप्पे-चप्पे पर विभिन्न देवी-देवता वास करते हैं। वैसे तो हिमाचल में कईं देवी-देवताओं की पूजा की जाती है पर यहाँ कुछ ऐसे भी देव हैं जो साधारण मनुष्य थे परंतु भगवान में आस्था होने के कारण प्राप्त दैवीय शक्तियों से वे देवी-देवता के रूप में आसपास के इलाकों में पूजे जाने लगे जैसे बिजङ देवता, चंद्रेश्ववर देवता, माता भंगयाणी देवी, माता बिजाई देवी।
सिरमौर जिला के चूङधार
ऐसा ही एक धाम चूङधार है जो सिरमौर जिला की राजगढ तहसील में स्थित है। चूङधार को चूर-चांदनी, चूर शिखर और चूर चोटी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 12000 फीट है। यह सिरमौर की सबसे ऊंची चोटी है। चूड़धार नाम से इस चोटी पर स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए हर साल हजारों सैलानी यहां पहुंचते हैं। खूबसूरत वादियों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा सदियों से चली आ रही है।
इसके अलावा इस चोटी के चारों ओर विशाल जंगल हैं और आबादी बहुत ही कम है। चूड़धार को श्री शिरगुल महाराज का स्थान माना जाता है। यहां शिरगुल महाराज का मंदिर भी स्थित है। शिरगुल महाराज सिरमौर व चौपाल के देवता है।
कैसे पहुंचे शिरगुल महाराज
यहाँ जाने के रास्ते हर साल मई माह से लेकर अक्तूबर तक खुले रहते हैं। चूङधार पहुंचने के लिए कईं रास्ते हैं और आप कोई भी रास्ता चुन सकते हो। मुख्य रूप से लोग नौहराधार वाला रास्ते से यहाँ पहुंचते हैं। नौहराधार से लगभग 18 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। आप जिला शिमला के सराहन से भी चूङधार पहुंच सकते हो, जहां से लगभग 9 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इसके अलावा जिला सिरमौर के तराहां से भी चूङधार पहुंचा जा सकता है जिसके लिए लगभग 12 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इतनी पैदल यात्रा करने के बाद जब आप शिरगुल महाराज की शरण में पहुंचते हैं और वहां के मनोरम दृश्य देखते हैं तो आपकी सारी थकान मिट जाएगी। चारों ओर जंगलों से ढकी पहाङियां यात्रियों का मन मोह लेती हैं।
मंदिर के साथ ही सबसे ऊंची चोटी है जिसे लिंग का टिब्बा कहते हैंऔर यहाँ से हिमालय और उससे जुड़ी पर्वत श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है। इसके साथ ही अंबाला, यमुनानगर के मैदानी इलाकों को भी देखा जा सकता है। यहां यात्रियों के ठहरने और भोजन का भी प्रबंध किया गया है। ए टी एम, अस्पताल और अन्य मूलभूत सुविधाएं नौहराधार कस्बे में ही उपलब्ध हैं।
चूड़धार पर्वत के इतिहास से जुड़ी मान्यताएं
कहते एक बार चुरु नाम का शिवभक्त यहां मंदिर आया। इसी बीच अचानक बड़े बड़े पत्थरों के बीच से एक विशालकाय सांप बाहर आ गया। यह चुरु और उसके बेटे को मारने दौड़ा। वहीं, बाप बेटे ने भागने की कोशिश की लेकिन सांप से नहीं बच पाए। फिर इन्होंने भगवान शिव से रक्षा की प्रार्थना की।भगवान भोलेनाथ ने चमत्कार से विशालकाय पत्थर का एक हिस्सा सांप पर जा गिरा जिससे वह वहीं मर गया। इसके बाद शिवभक्त यहां से घर चले गए। कहते हैं उसके बाद से ही यहां का नाम चूड़धार पड़ा। लोगों की श्रद्घा इस मंदिर के लिए बढ़ गई और यहां के लिए धार्मिक यात्राएं शुरू हो गई।
चूङिया नाम का राक्षस
इक अन्य जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि चूङधार में चूङिया नाम का राक्षस रहता था और उसने भगवान शिव की घोर तपस्या से वरदान प्राप्त किया था कि उस पर कोई और अधिकार ना जमा सके। भगवान ने उसे वरदान देते हुए कहा कि जब तक वह उस पर्वत के आसपास ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा तब उसे कोई नहीं हरा सकता था। परंतु कुछ समय पश्चात उस दानव ने वरदान के अहंकार में आकर मनुष्यों और उनके मवेशियों को मारना शुरू कर दिया। लोगों में दानव का भय हो गया और उन्होंने अपनी व्यथा श्री शिरगुल देव को सुनाई। श्री शिरगुल देव ने सराहन आकर सारी बात अपने भाई श्री बिजङ देव को सुनाई। दोनों ने चूङधार आकर चूङिया दानव से युद्ध किया। वह राक्षस जैसे ही चूङधार से भाग रहा था तो श्री बिजङ देव ने उसका रास्ता रोक दिया। चूङिया दानव ने श्री बिजङ देव पर जोर से प्रहार किया और वे मूर्छित हो गए। अपने भाई को ऐसी हालत में देखकर श्री शिरगुल देव बहुत दुखी हुए और वे भी अचेत हो गए। लोगों में शोक फैल गया लेकिन कुछ समय बाद दोनों भाई उठ खङे हुए। श्री शिरगुल देव ने एक चुटकी मिट्टी उठाई और आसमान की ओर फेंकी और आसमान को मेघराज इंद्र ने घेर लिया। उन्होंने फिर एक चुटकी मिट्टी उठाई और देवराज ने अपना वज्र निकाल लिया। वज्र के डर से चूङिया दानव भाग खङा हुआ और श्री शिरगुल देव की प्रसिद्धि आसपास के क्षेत्रों में बढने लगी। जब भी लोगों को भूत-प्रेत आदि का डर सताता था तो श्री शिरगुल देव उन्हें भयमुक्त कर देते थे। लोगों ने चूङधार को तीर्थ स्थल के रूप में मानने का आग्रह किया परंतु वहां सबसे बङी समस्या पानी की थी। श्री शिरगुल देव ने मानसरोवर से पानी लाकर चूङधार को तीर्थ स्थल बना दिया। इस प्रकार उन्होंने लोगों का कल्याण किया और परम् धाम चले गए। इसके साथ ही श्री बिजङ देव, गुङाई, बिजाई आदि भी अंतर्ध्यान हो गए और अपने-अपने स्थान ग्रहण किए।
हनुमान को संजीवनी बूटी
यह भी माना जाता है कि इसी चोटी के साथ लगते क्षेत्र में हनुमान को संजीवनी बूटी मिली थी। हर साल गर्मियों के दिनों में चूड़धार की यात्रा शुरू होती है। बरसात और सर्दियों में यहां जमकर बर्फबारी होती है जिससे यह चोटी बर्फ से ढक जाती है
By : Priyanka Sharma
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