हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इनमें से सबसे अधिक महिमा माता नैना देवी की मानी जाती है. नैनादेवी मंदिर प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है.नैना देवी 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि यहीं सती की आंखें गिरी थीं
कहाँ है और कैसे पहुंचे
नैना देवी या नयना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह भी माँ शक्ति का एक सिद्ध पीठ है जो ह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है स्थित है। नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान NH-21 से जुड़ा हुआ है।
यह मंदिर दिल्ली से 350 किमी और चंडीगढ़ से 100 किमी की दुरी पर है | लुधियाना: 125 कि॰मी॰ दूर और चिन्तपूर्णी मंदिर 110 कि॰मी॰ दूर है |
सबसे पास का हवाईअद्दा चंडीगढ़ है | रैल्वे स्टेशन सबसे नजदिकी आनंदपुर साहिब है जहा से मंदिर 30 किमी की दुरी पर है | आनंदपुर साहिब से आसानी से टैक्सी बस मंदिर जाने के लिए मिल जाती है | रोड रास्ते के हिसाब से यह नेशनल हाईवे 21 पर पड़ता है |
मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के के आगे दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देती है जो शेरोवाली की मुख्य सवारी है | मंदिर के गर्भग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माँ काली , मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान श्री गणपति की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है |
नैना देवी मंदिर की कथा
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है, मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। मंदिर के गुम्बद सोने से बने हुए है | मंदिर निर्माण में सफेद मार्बल काम में लिए गये है | मुख्य गुम्बद पर नैना देवी को समर्प्रित झंडे दिखाई देते है | कुछ गुम्बदो पर शिव त्रिशूल भी लगे हुए है |
नैना देवी मंदिर की एक और कथा :
इस कथा के अनुसार एक गुज्जर लड्का जिसका नाम नैना राम था अपने गाँव में मवेशियो को चराया करता था | एक दिन उसने देखा की एक सफेद गाय के थनो से अपने आप दुध निकल कर एक पत्थर पर गिर रहा है और पत्थर द्वारा पिया जा रहा है | यह क्रिया वो अब रोज देखने लगा | एक रात्री माँ ने सपने में उसे दर्शन दिए और बताया की वो सामान्य पत्थर नहीं अपितु माँ की पिंडी है | यह बात नैना राम ने उस समय के राजा बीर चंद को बताई और राजा ने माँ नैना देवी का मंदिर निर्माण किया |
दूर दूर से आते है लोग
श्रावण अष्टमी, चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है,भक्त ‘जय माता दी’ का उद्घोष करते हुए इस उम्मीद के साथ माता के दर्शन करने आते हैं कि उनकी मनोकामनाएं पूरी हों |मंदिर में एक पीपल का पेड़ भी भक्तिभाव से पूजा जाता है. यह भी कई शताब्दी पुराना है,मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान गणेश और हनुमान की प्रतिमा है. मंदिर के गर्भगृह में तीन मुख्य मूर्तियां हैं. दाईं ओर माता काली, बीच में नैना देवी और बाईं ओर भगवान गणेश विराजमान हैं
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