हिमाचल सुंदरता का खजाना है या यूँ कहें भगवान ने धरती पर स्वर्ग को ही उतार दिया है और ऐसे में यहाँ की झीलें उस सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं। झीलें इस स्वर्ग से जुड़ने का एक जरिया बन जातीं हैं। हिमाचल में बहुत सी झीलें हैं जिनके बारे में मैं आपको बताऊँगी। एक लेख में सभी झीलों के बारे में बता पाना मुश्किल है तो मैं आज मंडी जिला की झीलों के बारे में बता रही हूँ।
हिमाचल की झीले भाग – 1
आज इस श्रृखला में पहली झील है कमरूनाग
कमरूनाग झील,मंडी
हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले से लगभग 60 किलोमीटर दूर आता है रोहांडा, यहीं से पैदल यात्रा शुरु होती है कामरूनाग के लिए और जिसके लिए कठिन पहाड़ चढकर घने जंगल से लगभग 8 किमी होकर चढना पड़ता है। मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरुनाग झील के नाम से जाना जाता है। 14 और 15 जून या हिन्दी महीनों के अनुसार आषाढ मास के साजे वाले दिन को लगने वाले मेले में हर साल भक्तों की काफी भीड़ जुटती है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त झील में सोने-चांदी के गहनें तथा पैसे डालते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा के आधार पर यह माना जाता है कि इस झील के गर्त में अरबों का खजाना दबा पड़ा है।
ये ऐसी झील है, जिसके बारे में कहा जाता है की उसमें अरबों रुपए का खज़ाना दफन है। यह है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में स्थित कमरुनाग झील। हिमाचल प्रदेश के मण्डी से लगभग 60 किलोमीटर दूर आता है रोहांडा। यहीं से पैदल यात्रा शुरू होती कमरूनाग झील की। कठिन पहाड़ चढ़कर घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। इस तरह लगभग आठ किलोमीटर चलना पड़ता है
कौन हैं देव कमरूनाग
देव कमरूनाग को मंडी जनपद का आराध्य देव माना जाता है. कभी देव कमरूनाग पांडवों के आराध्य थे, लेकिन आज पूरे जनपद के आराध्य हैं. वर्ष में सिर्फ एक बार मंडी जिला मुख्यालय पर आने वाले देव कमरूनाग के दर्शनों के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ता है.
साल में एक बार मंडी जिला मुख्यालय आते हैं कमरूनागदेव कमरूनाग वर्ष में सिर्फ एक बार शिवरात्रि महोत्सव के दौरान ही मंडी आते हैं और उनका यह प्रवास सिर्फ 7 दिनों का ही होता है. देव कमरूनाग को मंडी जनपद का आराध्य देव माना जाता है, इसलिए इन्हें बड़ा देव भी कहा जाता है. देव कमरूनाग कभी किसी वाहन में नहीं जाते. ना इनका कोई देवरथ है और न ही कोई पालकी. सिर्फ एक छड़ी के रूप में इनकी प्रतिमा को लाया जाता है.100 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद देव कमरूनाग के कारदार मंडी पहुंचते हैं. इनके आगमन के बाद ही मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है. देव कमरूनाग सात दिनों तक टारना माता मंदिर में ही विराजमान रहते हैं.
नीलमणी, पुजारी, देव कमरूनाग ने बताया कि देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना जाता है. जब कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो जनपद के लोग देवता के दरबार जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं. वहीं लोग अपनी अन्य मनोकामनाएं लेकर भी देवता के दर पर पहुंचते हैं. लोगों की देव कमरूनाग के प्रति अटूट आस्था है. यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार होने वाले देव कमरूनाग के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं
महाभारत में भी है जिक्र कमरूनाग का :
कमरुनाग जी का जिक्र महाभारत में भी आता है। इन्हें बबरुभान जी के नाम से भी जाना जाता था। ये धरती के सबसे शक्तिशाली योधा थे। लेकिन कृष्ण नीति से हार गए। इन्होने कहा था कि कौरवों और पांडवों का युद्ध देखेंगे और जो सेना हारने लगेगी मैं उसका साथ दूंगा। लेकिन भगवान् कृष्ण भी डर गए कि इस तरह अगर इन्होने कौरवों का साथ दे दिया तो पाण्डव जीत नहीं पायेंगे। कृष्ण जी ने एक शर्त लगा कर इन्हे हरा दिया और बदले में इनका सिर मांग लिया। लेकिन कमरुनाग जी ने एक खवाइश जाहिर की कि वे महाभारत का युद्ध देखेंगे। इसलिए भगवान् कृष्ण ने इनके काटे हुए सिर को हिमालय के एक उंचे शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन जिस तरफ इनका सिर घूमता वह सेना जीत की ओर बढने लगती। तब भगवान कृष्ण जी ने सिर को एक पत्थर से बाँध कर इन्हे पांडवों की तरफ घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड़ कर एक झील बना दी।यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना चांदी चढाने से मन्नत पूरी होती है। लोग अपने शरीर का कोई भी गहना यहाँ चढा देते हैं। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना – चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता क्योंकि ये देवताओं का होता है। ये भी मान्यता है कि ये झील सीधे पाताल तक जाती है। इस मेंदेवताओं का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन दिनों के बाद यहाँ कोई भी पुजारी नहीं होता। यहाँ बर्फ भी पड जाती है। यहाँ से कोई भी इस खज़ाने को चुरा नही सकता है क्योंकि माना जाता है कि कमरुनाग के खामोश प्रहरी इसकी रक्षा करते हैं। एक नाग की तरह दिखने वाले पौधे इस पहाड़ के चारों ओर हैं। जिसके बारे मे कहते हैं कि ये नाग देवता अपने असली रुप में आ जाता है।
पाताल तक जाती है झील
न्यता है कि ये झील सीधे पाताल तक जाती है। इसमें देवताओं का खजाना छिपा है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा भक्तों को दर्शन देते हैं। झील घने जंगल में है और इन दिनों के बाद यहां कोई भी पुजारी नहीं होता। तबतक यहां बर्फ भी पड़ जाती है।
कोई इस खजाने को चुरा नही सकता :
यहां से कोई भी इस खज़ाने को चुरा नहीं सकता। क्योंकि माना जाता है कि कमरुनाग के खामोश प्रहरी इसकी रक्षा करते हैं। एक नाग की तरह दिखने बाला पेड़ इस पहाड़ के चारों ओर है। जिसके बारे मे कहते हैं कि ये नाग देवता तब अपने असली रूप में आ जाते हैं, जब कोई झील से जेवरात व रुपये-पैसे निकालने की कोशिश करता है।
अगले लेख में हिमाचल की एक अन्य झील के बारे में लिखुंगी -प्रियंका शर्मा,बिलासपुर
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