Jyanti Mata Mandir
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महाभारतकालीन पांडव टीले पर स्थित प्राचीन श्री जयंती माता शक्तिपीठ का महत्व शिव पुराण में वर्णित है। आस्था के इस केंद्र पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन-पूजन कर मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर यहां भंडारा और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।

Jyanti mata Photo

 पुराना कांगड़ा के समीप पहाड़ की चोटी पर बने माता जयंती के मंदिर के ठीक नीचे तीन नदियों का संगम स्थल है। मांझी, मनूनी और बनेर नदी के इस संगम स्थल से ठीक ऊपर पहाड़ी पर विराजमान मां जयंती के मंदिर में  पंचभीष्म मेले शुरू हो गए। इन मेलों के दौरान पांच दीये मां के दरबार में पांच दिन तक अखंड जलेंगे। इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्‍ते लगाकर दीपक जलाया जाता है। हजारों श्रद्धालु मां के मंदिर में शीश नवाते हैं।

Jyanti mandir Gate

मंदिर के पुजारी एवं मठ पुरोहित पंडित शंकर लाल शुक्ला और प्राचीन जयंती माता शक्ति पीठ सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष सुदेश कुमार ने बताया कि सती माता का एक अंग हस्तिनापुर में गिरा था।

इसी स्थान को जयंती माता शक्तिपीठ कहा गया। इसका आभास लोगों को तब हुआ, जब सती ने किसी भक्त को सपने में आकर अपना स्थान बताया। खोजने पर मिट्टी में माता की पिंडी निकली,

जो आज भी इस मंदिर में है। बाद में यहां जयंती माता की दिव्य प्रतिमा स्थापित कराई गई।मान्यता है कि हस्तिनापुर में पांडव और कौरवों का भव्य महल था। बाद में यह उलट-पुलट हो गया था। 

इस स्थान को उल्टा खेड़ा के नाम से जाना जाता है। यहीं पर जयंती माता मंदिर स्थापित है। जयंती माता को कौरवों और पांडवों की कुलदेवी मानकर पूजा-अर्चना की जाती है। महाभारत के युद्ध से पूर्व जयंती माता की पूजा करने पर दोनों को कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए थे।

 

#Jyanti mandir full view

जयंती मां से जुड़ी कई कथाएं हैं,

इनमें से एक कथा यह भी बताई जाती है कि एक राजकुमारी मां की भक्त थी। जब राजकुमारी की शादी हुई और उसकी डोली उठने लगी तो कहार उसे उठा नहीं पाए। इसके बाद राजकुमारी ने कहा कि मां ने उसे स्वप्न दिया था

jayanti_mata_

कि वह उसे अपने साथ ले जाए। इसके बाद एक पिंडी को मां की पिंडी के साथ स्पर्श करके राजकुमारी अपने साथ ले गई और उसे अपने सुसराल में स्थापित किया। आज यह स्थान चंडीगढ़ में हैं, जहां जयंती माजरी गांव में मां जयंती का मंदिर बना हुआ, जोकि लोगों की आस्था का प्रतीक है।

पांडवों की स्मृति में जयंती मां के मंदिर में पंचभीष्म मेले भी होते हैं। पंचभीष्म मेलों के दौरान इस क्षेत्र का नजारा ही कुछ और होता है। मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं बल्कि दूर दराज के क्षेत्रों से भी हजारों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं।

#Jyanti Mandir

 

पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले उबड़-खाबड़ रास्ते के साथ सीधी चढ़ाई थी, लेकिन समय के साथ-साथ यहां पर बेहतर रास्ते का निर्माण भी करवाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है।

पुराना कांगड़ा से जयंती माता मंदिर की सीढिय़ों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, इसके बाद करीब चार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके मंदिर में पहुंचते हैं।

खट्टे का लुल्फ उठाने पहुंचते हैं लोग

जयंती माता के मंदिर में हर साल लगने वाले मेलों में खट्टे का व्यंजन बहुत लोकप्रिय है। पंचभीष्म मेले के दौरान  (गलगल) खट्टे का व्यंजन मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को खिलाया जाता है। जयंती माता मंदिर एक मात्र मंदिर है जहां मेलों के दौरान खट्टे के स्टॉल व दुकान लगी होती हैं।

खट्टे का व्यंजन

कैसे पहुंचे जयंती माता मंदिर

 

जयंती माता मंदिर कांगड़ा बस अड्डा से मात्र चार किलोमीटर, गगल स्थित कांगड़ा एयरपोर्ट से 12 किलोमीटर तथा कांगड़ा रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

-कांगड़ा बस अड्डा से पुराना कांगड़ा : चार किलोमीटर (बस सुविधा)

Kangra bus stand

-पुराना कांगड़ा ने नंदरूल मार्ग पर स्थित जयंती माता मंदिर की पैदल चढ़ाई : डेढ़ किलोमीटर।

-चढ़ाई में दौरान लगभग 100 सीढिय़ां भी चढऩी पड़ती हैं।

 

 

 

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