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हिंदुस्तान में ऐसा बहुत कुछ है, जो अद्भुत है और अपने भीतर ऐसे रहस्य, ऐसा सच और ऐसी खूबसूरती समेटे हुए है. जिससे आज भी ज्यादातर लोग वाकिफ नहीं हैं. दरअसल, हिंदुस्तान सिर्फ अलग-अलग संस्कृतियों और अलग-अलग परंपराओं का देश नहीं

समुद्र तल से 9500 फीट ऊपर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के उत्तर पूर्व में स्थित एक प्राचीन गांव मलाणा ,यह गांव पार्वती घाटी में चंद्रखानी और देओटिब्बा नाम की पहाडियों से घिरा हुआ मलाणा नाले के किनारे स्थित है। इसे आप भारत का सबसे रहस्यमयी गाँव कह सकते है। यहाँ के निवासी खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते है। यहां पर भारतीय क़ानून नहीं चलते है यहाँ की अपनी संसद है जो सारे फैसले करती है। मलाणा भारत का इकलौता गांंव है जहाँ मुग़ल सम्राट अकबर की पूजा की जाती है। यहां के लोग अपने रीति-रिवाजों का बड़ी सख्ती से पालन करते हैं. इस गाँव पर बहुत सी डाक्यूमेंट्रीज, जैसे कि Malana: Globalization of a Himalayan Village, और Malana, A Lost Identity बनी हुई हैं.

यह गांव हिमाचल के जिला कुल्‍लू में स्थित मलाणा है। एक बार तो इस बात पर भरोसा नहीं होता, पर यहां के लोग अपने आपको सिकंदर के सैनिकों का ही वंशज मानते हैं। इसका इनके पास सबूत भी है।

मलाणा गांव का इतिहास बहुत पुराना है. बहुत समय पहले इस गांव में “जमलू” ऋषि रहा करते थे. उन्होंने ही इस गांव के नियम-क़ानून बनाये थे. इस गांव का लोकतंत्र दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतंत्र है. ऐसा माना जाता है कि जमलू ऋषि को आर्यों के समय से भी पहले से पूजा जाता है. जमलू ऋषि का उल्लेख पुराणों में भी आता है. मलाणा में रहने वाले निवासी आर्यों के वंशज माने जाते हैं.

मलाणा गांव की सामाजिक सरंचना यहां के ऋषि जमलू देवता के अविचलित विश्वास व् श्रद्धा पर टिकी हुई है. पूरे गांव के प्रशासन को एक ग्राम परिषद के माध्यम से ऋषि जमलू के नियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. इस ग्राम परिषद में 11 सदस्य होते हैं जिनको ऋषि जमलू के प्रतिनिधियों के रूप में जाना जाता है. इस परिषद द्वारा लिया गया फैसला अंतिम होता है और यहां पर गांव के बाहर वालों के कोई नियम लागू नहीं होते. इस गांव की राजनीतिक व्यवस्था प्राचीन “ग्रीस” की राजनीतिक व्यवस्था से मिलती है. इस वजह से मलाणा गांव को “हिमालय का एथेंस” भी कहा जाता है

जबकि अन्य परंपरा के अनुसार मलाणा गांव के लोग अपने आपको सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं. कहा जाता है कि महान शासक सिकंदर अपनी फौज के साथ खुद यहां आया था। भारत के कई क्षेत्रों पर जीत हासिल करने और राजा पोरस को हराने के बाद सिंकदर के कई वफादार सैनिक जख्मी हो गए थे।

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सिकंदर खुद भी बहुत थक गया था और वह घर वापस जाना चाहता था। ब्यास तट के बाद जब सिकंदर इस गांव में पहुंचा तो यहां का शांत वातावरण उसे बेहद पसंद आया। वह काफी दिन तक यहां ठहरा। कहा जाता है कि बाद में कुछ यौद्घा और सैनिक ऐसे थे जो वापस नहीं जा सकते थे। सिकंदर ने उन्हें यही रुकने को कह दिया।

सिकंदर के भारत छोड़ने के बाद ये लोग यहीं पर बस गए थे। इन्होंने यहां अपने परिवार बना लिए और वंश को आगे बढ़ाया। उसके बाद से ये गांव अपनी अलग पहचान बनाने लगा।

मलाणा गाँव का इतिहास जो कि प्राचीन गणराज्य व्यव्स्था पर है यहाँ की बोली रक्ष अर्थात राक्षस बोली ,बोली जाती है यह व्यवस्था आदिवासी समाज का हिस्सा है मलाणा गाँव के लोगों को अपना वास्विक इतिहास की जानकारी न होने के कारण अपनी पहचान से अलग है

मलाणा के निवासी एक रहस्यमयी भाषा बोलते हैं जो Kanashi / Raksh (रक्ष) के नाम से जानी जाती है. कुछ लोग इसे राक्षस बोली मानते हैं. मलाणा की भाषा, संस्कृत और कई तिब्बती बोलियों का एक मिश्रण लगती है लेकिन यह आस पास बोली जाने वाली किसी भाषा या बोली से मेल नहीं खाती.

एचपी यूनिवर्सिटी समेत बाकी सस्थाओं की ओर से किए गए ताजा शोध के बाद ये कहानी पुख्ता भी हो गई। यहां के लोगों की भाषा, उनका खानपान व शारीरिक लक्ष्ण काफी हद तक ग्रीस के लोगों से मिलता जुलता पाया गया।

अपनी विचित्र परंपराओं लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण पहचाने जाने वाले इस गांव में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इनके रुकने की व्यवस्था इस गांव में नहीं है। पर्यटक गांव के बाहर टेंट में रहते हैं। अगर इस गांव में किसी ने मकान-दुकान या यहां के किसी निवासी को छू  लिया तो यहां के लोग उस व्यक्ति से एक हजार रुपए वसूलते हैं। गांव का कानून इतना सख्त है कि बाहरी लोगों को गांव के बनाए गए एक खास रास्ते पर ही चलना पड़ता है। किसी की दीवार, खेत, पेड़ या घर को छूने तक का यहां जुर्माना या बलि देनी पड़ती है।

ऐसा नहीं हैं कि यहां के निवासी यहां आने वाले लोगों से जबरिया वसूली करते हों। मलाणा के लोगों ने यहां हर जगह नोटिस बोर्ड लगा रखे हैं। इन नोटिस बोर्ड पर साफ-साफ चेतावनी लिखी गई है। गांव के लोग बाहरी लोगों पर हर पल निगाह रखते हैं, जरा सी लापरवाही भी यहां आने वालों पर भारी पड़ जाती है।

दुनिया की सबसे पुरानी डेमोक्रेसी

माना जाता है कि मलाणा वर्ल्ड का सबसे पुराना डेमोक्रेटिक गांव है। यहां 11 मेंबर्स की काउंसिल है, जो जमलू ऋषि (पौराणिक देवता) का आदेश मानते हैं। इन मेंबर्स द्वारा लिए गए किसी भी फैसले को पूरा गांव मानता है। हालांकि, अब स्थितियां बदल रही हैं। पिछले कुछ सालों में नाखुश होकर गांव के लोग फैसलों के खिलाफ कुल्लू डिस्ट्रिक कोर्ट जा चुके हैं, जिसके बाद से काउंसिल ने विवादों पर फैसले सुनाना बंद कर दिया है।

देवता करते हैं फैसला

इस गांव की खास बात तो यह है कि भारत का हिस्सा होने के बाद भी यहां के लोगों को भारतीय कानून से कोई वास्ता नहीं है। यहां पर फैसले लेने और उसका पालन कराने की अलग परंपरा है।
किसी भी अपराध की सजा यहां के लोग खुद तय करते हैं। यदि यहां भी बात नहीं बनी तो फैसला यहां के जमलू देवता करते हैं। यहां का खान पान भी थोड़ा हटकर है।

मलाणा क्रीम

मलाणा क्रीम “भांग/चरस मार्किट” में सबसे महंगी और सबसे अच्छी चरस मानी जाती है. इसका कारण यहाँ की चरस में पाया जाने वाला उच्च-गुणवता का तेल है. स्थानीय पुलिस व प्रशासन मलाणा में भांग की खेती को हतोत्साहित करने के लिए समय समय पर अभियान चलाते हैं फिर भी काफी मात्रा में यहाँ से भांग की तस्करी बाहरी देशों में की जाती है.
देश और दुनिया भर के लोग इस मलाणा क्रीम को पाने के लिए खिंचे हुए यहां आते हैं और इसके सुरूर में ऐसा खोते हैं कि महीनों यहीं रुक जाते हैं. इन लोगों में सबसे ज्यादा संख्या इज़रायली और रशियन पर्यटकों की होती है. ये मलाणा क्रीम कितनी कीमती है, इसका अंदाज़ा सिर्फ इस बात से लगा लीजिए कि यहां आने वाले लोगों को ये मलाणा क्रीम 8 हजार रुपए प्रति तोला के रेट से मिलती है

कुछ भी छुआ तो जुर्माना

मलाणा गांव में कुछ दुकानें भी हैं। इन पर गांव के लोग तो आसानी से सामान खरीद सकते हैं, पर बाहरी लोग दुकान में न जा सकते हैं न दुकान छू सकते हैं। बाहरी ग्राहकों के दुकान के बाहर से ही खड़े होकर सामान मांगना पड़ता है। दुकानदार पहले सामान की कीमत बताते हैं। रुपए दुकान के बाहर रखवाने के बाद सामन भी बाहर रख देते हैं।

यदि कोई अपराध करता है तो सजा कानून नहीं बल्कि जामलू देवता देते हैं। देवता गुर या देवता के द्वारा चयनित सदस्य देते हैं। भारत का कोई भी कानून  नहीं चलता।

अपनी इसी खास परंपरा, रीति रिवाज और कानून के चलते इस गांव को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र सहेजने वाला गांव कहा जाता है।

लेख : अमित सिंह ,ज्वाला जी

यह लेख ज्वाला जी के अमित सिंह ने लिखा है ,आप भी चाहे तो बीइंग पहाड़ी पर हिमाचल से स्म्वंधित लेख लिख सकते है,इसके लिए आप को प्रोत्साहन राशि भी दी जायेगी ,अपनी रचनाये beingpahadi@himachalirishta.com पर ईमेल करे

 

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