janmashtami
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मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया जमुना के तट पे विराजे हैं

मोर मुकुट पर कानों में कुण्डल कर में मुरलिया  साजे है

मानव जीवन सबसे सुंदर और सर्वोत्तम होता है. मानव जीवन की खुशियों का कुछ ऐसा जलवा है कि भगवान भी इस खुशी को महसूस करने समय-समय पर धरती पर आते हैं. शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी समय-समय पर मानव रूप लेकर इस धरती के सुखों को भोगा है. भगवान विष्णु का ही एक रूप कृष्ण जी का भी है जिन्हें लीलाधर और लीलाओं का देवता माना जाता है.

कृष्ण को लोग रास रसिया, लीलाधर, देवकी नंदन, गिरिधर जैसे हजारों नाम से जानते हैं. कृष्ण भगवान द्वारा बताई गई गीता को हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ और पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) कृष्ण जी के ही जन्मदिवस के रूप में प्रसिद्ध है.

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मान्यता है कि द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है.

कृष्ण जन्मकथा

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श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था. कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी. चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था. भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया.

नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी. वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा. दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया. जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया.

जन्माष्टमी में हांडी फोड़

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श्रीकृष्ण जी का जन्म मात्र एक पूजा अर्चना का विषय नहीं बल्कि एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस उत्सव में भगवान के श्रीविग्रह पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, केसर तथा जल आदि चढ़ाने के बाद लोग बडे हर्षोल्लास के साथ इन वस्तुओं का परस्पर विलेपन और सेवन करते हैं. कई स्थानों पर हांडी में दूध-दही भरकर, उसे काफी ऊंचाई पर टांगा जाता है. युवकों की टोलियां उसे फोडकर इनाम लूटने की होड़ में बहुत बढ-चढकर इस उत्सव में भाग लेती हैं. वस्तुत: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत केवल उपवास का दिवस नहीं, बल्कि यह दिन महोत्सव के साथ जुड़कर व्रतोत्सव बन जाता है.

लोगों को कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए लिया था श्री कृष्ण ने जन्म

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द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज था। कंस उनका पुत्र था। लेकिन राज्य के लालच में अपने पिता को सिंहासन से उतारकर वह स्वयं राजा बन गया और अपने पिता को कारागार में डाल दिया। देवकी कंस की चचेरी बहन थी। देवकी का विवाह वासुदेव के साथ हुआ, कंस ने अपनी बहन का विवाह पूरे धूमधाम के साथ किया और खुशी से विवाह की सभी रस्मों को निभाया। जब बहन को विदा करने का समय आया तो कंस देवकी और वासुदेव को रथ में बैठाकर स्वयं ही रथ चलाने लगा।

तभी अचानक ही आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस काल होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस तुरंत ही अपनी बहन को मारने के लिए तत्पर हो गया। लेकिन वासुदेव ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें अपनी बहन देवकी से कोई भय नहीं है, देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए वे अपनी आठवीं संतान को कंस को सौंप देंगे।

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कंस को वासुदेव की बात मान ली। लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद डाल दिया। जब भी देवकी की कोई संतान होती तो कंस उसे मार देता इस तरह से कंस ने एक-एक करके देवकी की सभी संतानों को मार दिया। और फिर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया। श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही कारागार में एक तेज प्रकाश छा गया। कारागार के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी सैनिको को गहरी नींद आ गई। वासुदेव और देवकी के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि उन्होंने ही कृष्ण रुप में जन्म लिया है।

विष्णु जी ने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें इसी समय गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दें, और उनकी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें, वासुदेव जी गोकुल में कृष्ण जी को यशोदा जी के पास रख आए वहां से कन्या को ले आये, और कन्या कंस को दे दी। वह कन्या कृष्ण की योगमाया थी। जैसे ही कंस ने कन्या को मारने के लिए उसे पटकना चाहा कन्या उसके  हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। और तभी भविष्यवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने जन्म ले लिया हैं और वह गोकुल में पहुंच चुका है। तब से कृष्ण जी को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को भेजा लेकिन बालपन में भगवान ने कई लीलाएं रची, और सभी राक्षसों का वद कर दिया। जब कंस ने कृष्ण को मथुरा में आमंत्रित किया तो वहां पर पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई। और उग्रसेन को फिर से राजा बनाया।

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