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आज यानि सावन की सक्रांति है और आज के दिन को हिमाचल के हर हिस्से में त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। मंडी, हमीरपुर, बिलासपुर, कांगड़ा आदि मैदानी इलाकों में इसे “चिङनु या चिङन” के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ लाहौल में इसे “शेगत्सम” और किन्नौर तथा जुब्बल में “दखरैण” कहा जाता है। यह त्यौहार सावन महीने की पहली प्रविष्टि यानि सक्रांति को मनाया जाता है।

पशुओं की रक्षा के साथ  जुड़ा है त्यौहार

इस पूरे महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना होती है। सावन मास की सक्रांति पर मनाया जाने वाला यह पर्व पशुओं के स्वास्थ्य और रक्षा के साथ जुड़ा हुआ है

चिडडन या चिडणु :खटमल की तरह का जीव

चिडडन या चिडणु दरअसल पशुओं में पाए जाने वाले एक परजीवी कीड़े को कहा जाता है. (हिंदी: किलनी, अंग्रेजी: Tick ; खटमल की तरह का जीव). आज के दिन पालतू पशुओं से चिडडन इकट्ठे किये जाते हैं और शाम को उनको जलाया जाता है. परम्परा के अनुसार ऐसा करने से पशुओं को साल भर कोई भी परजीवी परेशान नहीं करता

चिडडन या चिडणु :खटमल की तरह का जीव

प्राचीन समय में जब लोग अपने पशुओं को चराने जंगल ले जाते थे तथा इस दिन एक दूसरे के पशुओं को बाँधने के स्थान {घराल} के लिए कई गालियाँ / गीत गाते  थे जैसे

“असा री घराला टिकली बछि छोरुओ टिकली बछि, तुसा री घराला मिरगनी नची छोरुओ मिरगनी नची”.

पूरा दिन गालियों का यह क्रम चलता रहता था तथा दिन के समय पशुओं के खटमल {चिडण} आदि निकाल कर रख लिए जाते थे और शाम होते ही उन्हें जलाया जाता था
ताकि ये खटमल समाप्त हो जाएँ और पशुओं को तंग न करें। फिर रात भर गालियों का क्रम चलता था।

बुजुर्गों का कहना है कि आज के दिन से शुरू होकर सात हाड़ बहते थे, यानि लगातार ८-१० दिन बारिश होती थी. इस दिन तक किसान अपने धान की रोपाई का काम समाप्त कर लेते थे तथा बड़े ही उत्साह से इस त्यौहार को मनाते थे.

होडू हल खोलना

इस त्योहार के आने तक लगभग सभी लोग अपने होड़ मच धान रोपाई का काम खत्म कर देते है ओर इस दिन शाम को चिड़ण को जलाने के बाद सब अपने होडू हल को खोल कर सम्भाल कर रख देते है।।

कईं पहाङी स्थानों पर इस त्यौहार से कुछ दिन पहले पांच-सात अनाजों के दाने एक टोकरी में अपने कुलदेवता के पास बीज दिए जाते हैं और उनके पौधे देवता को चढ़ाए जाते हैं और दरवाज़े के ऊपर रखे जाते हैं।
बुजुर्गों का कहना है कि आज के दिन {सात हाड़ बगते
थे} बहुत बारिश होती थी। किसान अपने धान की रोपाई का काम समाप्त कर लेते थे
तथा बड़े ही उत्साह से इस त्यौहार को मनाते थे।
आज भी कई लोगों के घरों में इस दौरान चिलङू, बबरू, भल्ले, ऐंकलू आदि पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें बड़े ही चाव के साथ गाँव में लोग मिलजुल कर तथा बाँट कर स्वाद के साथ खाते हैं।

चिडणु के गीत:

1. असारिया घराला टिकली बछि छोहरुओ टिकली बछि, छोहरुआ री घराला मिरगनी नची छोहरुओ मिरगनी नची.
2. म्हारिया जुहीया छीज ए छीज छोहरुओ छीज ए छीज, छोहरुआ री मुइरी इज ए इज छोरुओ इज ए इज.
3. म्हारिया जुहीया काही ए काही छोहरुओ काही ए काही, छोहरुआ री मुइरी ताई ए ताई छोहरुओ ताई ए ताई.
4. म्हारिया जुहीया किलनी कदाल छोहरुओ किलनी कदाल, छोहरुआ री घराला इलणी काव छोहरुओ इलणी काव.
5. म्हारे डंगरे चरी चुगी आये छोहरुओ चरी चुगी आये, छोहरुआ रे डंगरे मरी मुक्की आये छोहरुओ मरी मुक्की आये.6. होड़ा वे होड़ा, पारले ग्रावां रा छोरु मेरा घोड़ा

तुसां सारेयां जो चिड़नूयां री ढ़ेर सारी बधाईयां! शुभकामनाये

 

-प्रियंका शर्मा

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