हिमाचल प्रदेश का प्रशिद्ध चामुण्डा देवी ,चण्ड-मुण्ड राक्षसों का हुआ था संहार

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हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है.यहाँ पर आकर श्रद्धालु अपनी भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों मे अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने से भक्त यहाँ आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

Chamunda Devi Pindi Darshan
Chamunda Devi Pindi Darshan

यह मंदिर माँ चामुंडा देवी का समर्पित है जोकि भगवती काली का ही एक रूप है। चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नन्दिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चामुंडा देवी मंदिर में ‘शिव और शक्ति’ का वास है। चामुंडा देवी के मंदिर के पास भगवान शिव विराजमान है जो कि नन्दिकेश्वर के नाम से जाने जाते है। चामुंडा देवी जी का मंदिर बाणगंगा (बानेर) नदी के किनारे पर स्थित है। चामंुडा देवी का मंदिर बहुत ही अपनी एक धार्मिक महत्वता है तथा यह मंदिर लगभग 16वीं सदी का है। नव राात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।

स्थान

पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर, कांगडा से 24 किलोमीटर व धर्मशाला से 15 किलोमीटर की दूरी पर, कांगडा जिले, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर माँ चामुंडा देवी का समर्पित है जोकि भगवती काली का ही एक रूप है।

पौराणिक कथा

Chamunda Devi Jheel
चामुण्डा देवी के प्रांगण में झील का नजारा

दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं |

एक अन्य  पौराणिक कथा के अनुसार चामुंडा देवी को देवी प्रमुख के रुप में व रुद्र के नाम से प्रतिस्थापित किया गया था जब भगवान शिव और जालंधर राक्षस के बीच युद्ध हो रहा था, इसी स्थान को ‘रुद्र चामुंडा’ कहा जाता है तथा इस मंदिर ‘रुद्र चामुंडा’ के नाम से भी जाना जाता है।

इतिहास

ऐसा माना जाता है कि लगभग 400 सालों पहले राजा और ब्राह्मण पुजारी ने मंदिर को एक उचति स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए देवी माँ से अनुमति मांगी। देवी माँ ने इसकी सहमति देने के लिए पुजारी को सपनें में दर्शन दिऐ औरएक निश्चित स्थान पर खुदाई करने निर्देश दिया था। खुदाई के स्थान पर एक प्राचीन चामुंडा देवी मूर्ति पाई गई थी, चामुंडा देवी मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित किया गया और उसकी रूप में उसकी पूजा की जाने लगी।
राजा ने मूर्ति को बाहर लाने के लिए पुरुषों को कहा, परन्तु सभी पुरुष उसी मूर्ति हिलाने व बाहर लाने सक्षम नहीं थे। फिर देवी माँ ने पुजारी को सपनें में दर्शन दिये और देवी माँ ने कहाँ कि सभी पुरुष मूर्ति का साधारण पत्थर समझ कर उठाने की कोशिश कर रहे है। देवी माँ ने पुजारी से कहां कि वह सबुह जल्दी उठें व स्नान करें तथा पवित्र कपडे पहनें और एक सम्मानजनक तरीके से बाहर लाने के निर्देश दिए, और कहाँ कि वह सभी पुरुष मिल कर जो नहीं कर सकें वह अकेला आसानी से तभी कर पायेगा। पुजारी ने सभी लोगों का बताया कि यह सब देवी माँ की शक्ति थी।

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कैसे पहुँचें:

रेल मार्ग – पंजाब स्थित पठानकोट से पर्यटक हिमाचल प्रदेश के लिए चलने वाली छोटी रेलगाड़ी के द्वारा पहाड़ी सौन्दर्य और संकीर्ण रास्तों का लुफ्त उठाते हुए मराण्डा तक पहुंच सकते हैं, जो कि पालमपुर के पास स्थित है। यहां से चामुंडा देवी मंदिर कि दूरी 30 कि.मी. है।

वायु मार्ग – चामुंडा देवी मंदिर का नजदीकी हवाईअड्डा गगल में है, जो कि यहां से 28 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के बाद में यात्री बस या कार से चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंच सकते है। यहाँ से टैक्सी आदि की भी अच्छी सुविधा है। समय-समय पर हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की बसें यहाँ से जाती रहती हैं।

सड़क मार्ग – सड़क मार्ग से जाने वाले पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की बस सेवा है, जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर उतारती हैं। चामुंडा देवी धर्मशाला से 15 कि.मी. और ज्वालामुखी से 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से यात्री अपने निजी वाहनों या किराए के वाहनों से मंदिर तक जा सकते हैं।

Note :This article has been composed from various internet sources,any amendment/ changes/modifications/suggestions are warmly welcomed in comments

Tags: Chamunda Mandir,Chamunda Devi History,Chamunda Devi Kangra Hiamchal Pradesh

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