भावुक कर देगी एक भाई की अपनी बहिन के लिए लिखी यह कहानी

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आज किसी दूसरे की कहानी नही सुनाउंगा आप सवकी और मेरी कहानी सुनाउंगा , मेरी वो कहानी जिसमें आप अपनी यादें ताजा कर पाओगै , एसी कहानी जिसमे आप शव्दों के यान मे बैठकर या तो अतित मे चले जाओगे या अपने भविष्य में
जव मैं छोटा था तवसे एक चिज महसूस करता आया हूं चूंकि हम दो भाई बहन थे और जिस तरह अक्सर बहन भाई मे नोक झोंक होती रहती है हम मे भी होती थी , रोज लडना तो जैसे हमारी आदत वन गयी थी , विना मार खाये मजाल हो कि कोई दिन कट जाये हालांकि मै वचपन से ही शांति सौहार्द प्रिय वालक था पर कभी कभार स्थितियां पाकिस्तान हिन्दोस्तान के वार्डर जैसी उत्पन्न हो जाती थी फिर गांधीगीरी की अहिंसा शव्द से मैं अ को हटा देता था और नरम दल का यह बालक एकदम गरम दल मे तवदिल हो जाता था l

लेकिन जब भी हमारे फादर साहव घर पर होते मैं कभी नही लडता था उस वक्त लडाई करने का मतलव खुद को शेर के मुंह मैं धकेलना जैसे , और दीदी के हौंसले एसे मौकों पर और बुलंद हो जाते थे , वो जानवूझ कर पंगे लेने लगती थी क्योकि उसको पता था कि उसकी एसे वक्त पर पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और हम अल्पमत मे ही गुजर वस्ती कर रहे होते थे , शायद आपने नोटिस किया हो मैं तो वहुत करता हूं छोटी छोटी चीजों को अपने वडे वडे चक्षुओं में गंभीरता से देखकर मैं बहुत विश्लेषण करता हूं हमारे भारतीय परिवारों मे वेटियां अपने पापा की वहुत लाडली रहती है और वेटे माओं के , कभी कभार जव भादर साहव घर पर नही होते तो फिर हम आपस मे खूव लड लेते थे और लडाई के बाद जव फैसला मां तक पहुंचता तो वो कह देती दीदी को कि तेरी ही गल्ति है और गल्ति चूंकि उसकी होती भी थी , मुझे उस वक्त वडा सुकून मिलता जब मां कहती कि दीदी की गल्ती है पर सामने से दीदी भी रोते हुये वोलने लग जाती कि मां तु भी ईसी का पक्ष लेती है मुझे पता है , वस फिर कया दोनो के कान मे मम्मी दो दो धर देती और फिर टांय टांय करते हम अपने अपने कोने पकड कर वैठ जाते , मै रोता रोता भी हंस देता था , और दीदी के नाक से वने वुलवुले को देखकर उसको भी हंसादेता था उस जमाने मे समार्टफोन नही थे वी एस एन एल का दूरसंचार था अगर स्मार्टफोन होता तो उसके वुलवुले वाली तस्वीर मैं जरुर खिंचता और अब उसकी वेटी को दिखाता , खैर वक्त के साथ मार खाते और मारते हुये हम दोनो वडे हो गये थे , मैं दिल्ली मे चला गया था , घर मे दीदी के रिश्ते की बात चल रही थी मुझसे ज्यादा कुछ पुछा नही इसलिये मै थोडा गुस्सा था , गुस्सा इसलिये कि वो मेरी भी बहन थी मुझे सिर्फ भाई की फौरमिलीटी निभाने के लिये कयों वुलाया था , पर सबके समझाने से मै शांत हो गया l

मैने दीदी के ससुराल वालों को नही देखा था ना किसी से मिला था शादी वाले दिन सीधा पहुंच गया , घर के आंगन मे लगे टैंट मुझे अच्छे लग रहे थे , अनजान कयी लोग जिन्हे मै पहली वार मिल रहा था मुझे उनसे मिलने अच्छा लग रहा था , शादी वाले घर मे वहुत व्यस्तता रहती है सब हर काम मे व्यस्त रहता है और हमारे हिमाचल मे जहां गांव मे शादी होती है वो यह वात अच्छे से जानते ही होंगे , कभी कोई सामान कम पड जाये तो भागमभाग , और कयी अन्य प्रकार के काम आपके समक्ष हरदम तैयार रहते हैं , सो हम भी उन्ही कामों मे उलझे थे , बारात आ चुकी थी उसके बाद तमाम शादी कि प्रक्रिया हो रही थी , पंडित जी घडी की तरफ देखकर लगन का वक्त निकला जा रहा करके जोर से वोल रहे थे , मै भी तव तक रिश्तेदारों के साथ उनके सोने की व्यवस्था करवा रहा था , तकरीवन दो या तीन वजे मेरी जरुरत पडी मुझे वुलाया गया , वेद (जहां दुल्हा दुल्हन अग्नि के चारों ओर फेरे लेते ) में परम्परा के हिसाव से कुछ कदम तक वहन को पकड कर ले जाना होता है , तो वहां वो सव काम करके मैं दिन से वहुत थक गया था और मै सोना चाहता था , मौका पाकर मै एक घंटे तक सो गया और तव तक वैंड बाजे वाले भाई साहव ने वडे से बाजे मे फूंक मारकर मानो मेरी निंद की रिटायरमैंट करवा दी हो , तमाम धार्मिक प्रकिया सम्पन्न हो चुकी थी , सुबह का वक्त आ गया यह वक्त होता है विदाई का , पहले जब भी किसी की बारात मे गया मै ईस पल एकदम भाग जाता था क्योकि मै किसी कि आंखों मे आंसूं नहीं देख पाता था और यह मेरी कमजोरी है , मगर मै एसी स्थिती मे था जहां मुझे खडा रहना था और वो भी उसी विदाई वाले वक्त , मेरी मां और दादी आंखों मैं आंसू टपकाये काम किये जा रही थी , उनकी आंखों से आंसू वहे जा रहे थे , ताई चाची दीदी को समझा रही थी , पहली वार उसी दिन मैने अपने शिमला वाले ताउ जी को रोते देखा और उसी दिन फादर साहव के भिगे तौलिये मे मुंह छुपाते देखा , मैं खुद को कन्ट्रोल कर रहा था , दोस्त देख लेंगे तो कया कहेंगें कि लडकियों की तरह रो रहा मैं मर्द हूं और हम नहीं रोते एसा कहकर मन ही मन मैं खुद को झूठी तसल्ली दिये जा रहा था मैं अपना मनोवल वडा रहा था , लेकिन दीदी कया अव दुवारा यहां वैसे नही रहेगी जैसे वो अक्सर रहा करती थी घर की महारानी वन कर?? , वो अब कया मेहमान के जैसे आयेगी ईन सवालों नें मेरे आंसूओं से वने बांध को मानो तोड सा दिया और गरम धारायें मेरे गालों तक बहने लग गयी , वो विदा होते भी कुछ सिर के उपर से फेंके जा रही थी चावल के ये दाने वो अपने परिवार को वरकत के रुप लौटा रही थी मेरी मौसी मुझसे कुछ वोल रही थी समझाने का प्रयास कर रही थी और मै कुछ समझने की हालात मे नही था जिसकी वहन वेटी है वो शायद अच्छे से समझ पायेगा , दीदी के ससुराल में जव मैं वहां से आने लगा तो अजिव सा कौतूहल मेरे अंदर चल रहा था मै एक वार फिर से उससे गले मिलना चाहता था उसे कहना चाहता था कि मुझे पिट लिया कर मै हंसके मार खा लूंगा लेकिन वापिस अपने घर चल , ईन सवके विच मै उसके साथ मिला उसने मुझे बाहों मे पकड लिया और रोने लग गयी ईस तरह से वो कभी मुझसे नहीं मिली थी , मैने उसे चुपकरवाते एक वडी सयानी वात कह दी हालांकि उस वक्त मै छोटा ही था पर वो वात आज भी दीदी की सासुमां मुझे हंसते हुये बताती रहती है , मैने उसका हाथ पकड़कर दीदी की सास के हाथ मे थमा दिया और कहा था कि तु खुश किस्मत है दो दो मां मिली है

मुझे आज भी याद है वस यह कहकर मै निकल गया था घर मे रिश्तेदार तकरीबन जा चुके थे घर सारा खाली था उस दिन घर मुझे डरा रहा था मुझे घर बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था ,चारों तरफ सन्नाटा दिख रहा था मैं हर कमरे मे दीदी को ढुंड रहा था , मैं दीदी को मेहमान वन कर नही देखना चाहता था वो हमारे घरकी महारानी थी और मैं उस महारानी को महारानी की तरह ही देखना चाहता था, यही कहानी सुनाते हुये मेरी आंखें गीली हो गयी हैं धुंधले से दिख रहे अक्षरों को टटोलते हुये लिख रहा हूं , शायद ईस दर्द को आप समझ सकते हैं , हालांकि आज इसलिये लिख रहा क्योकि हमारी एसी प्यारी वहन जो हमारे साथ वहुत क्रिकेट खेला करती थी कल से वो भी अंकुश के लिये केवल मेहमान हो जायेगी , फिर वो किसी तीज त्योहार पर ही आया करेगी , हमेशा मुझे घर मे नहीं मिलेगी जब भी मै अव घर जाउंगा .. उसका यह खुदका घर अव मायका वन चुका होगा और कोई पराया घर उसका अपना घर … यही जिंदगी है और यही सत्य है ..आज अंकुश खुश कम है और उदास ज्यादा , क्योकि उसकी बहन अव उसके घर की मेहमान वन जायेगी …
जोतु वहुत शुभकामनाएं बच्चा ….
मुन्नवर राणा की चार लाईन लिख रहा हूं जो वेटीयों पर लिखी है
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है         

 हमीरपुर पत्रिका कि टाइमलाइन के साभार से 


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