विविधताओं से भरे भारत में विवाह परंपराओं में भी उतनी ही विविधता दिखती है। कुछ लोकाचार और शास्त्रोक्त पद्धतियां मिलकर विवाह संस्कार को पूर्ण बनाती हैं
अनेक ऐसी परंपराएँ, रस्में, रीति-रिवाज हैं, जिनके बिना विवाह अधूरे समझे जाते हैं और यही बात है कि पुराने जमाने से चली आईं ये परंपराएँ आज भी लोगों के बीच में पूर्ण रूप से निभाई जा रही हैं। चाहे बात बारात की अगवानी के समय दुल्हन द्वारा दूल्हेराजा के चेहरे पर चावल फेंकने की हो या फिर सासू माँ द्वारा अपनी प्यारी बहू की मुँहदिखाई की। हर परंपरा, हर रस्म का अपना अंदाज होता है, अपना महत्व होता है। इन परंपराओं के बदले में मिलता है प्यार और लोगों का सत्कार। इसलिए आज भी लोग विवाह समारोह में इन्हें पूर्ण रूप से निभाना पसंद करते हैं।
आधुनिक भारत के लाखों परिवार की जीवन शैली में बदलाव आया है। अति संपन्न ही नहीं न्यूनतम साधन सुविधाओं वाले परिवार भी नए जमाने के साथ जन्मोत्सव से लेकर विवाह तक के लिए भारतीय संस्कृति और परंपरा को निभा रहे हैं। अब भाग-दौड़ के जमाने में विवाह समारोह ही ऐसे आयोजन बचे हैं जिनमें पूरा परिवार जुटता है और मुलाकात होती है। शादियों में रीति-रिवाजों के विस्तार का समय भले ही न बचा हो लेकिन नई पीढ़ी चाहती है कि शादी पारंपरिक रूप से हो। कुछ नेग परंपरा निभाने के लिए कर लिए जाते हैं तो कुछ के लिए पूरी तरह वक्त निकाला जाता है। शहरी तबके से लेकर आदिवासी समाज तक शादी में विविधताएं दिखाई पड़ती हैं। इसी प्रकार कुछ लोग आज के जमाने में भी जन्मपत्री मिलाकर ही शादी तय करते हैं। कुछ पद्धतियां लोकाचार हैं जैसे, जयमाल, वरमाला, फेरे, घुड़चढ़ी, बारात ऐसे रिवाज हैं जो तकरीबन सभी जगह होने लगी हैं और कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो अपने समाज की परंपरा को संजोए रखने की कोशिश है। हर समाज की अपनी रीतियां हैं। पारंपरिक रीतियों में आर्य समाज और गायत्री पद्धति से विवाह का चलन भी बढ़ा है।
आर्य समाजी या वैदिक विवाह पद्धति सर्वस्वीकार्य विवाह पद्धति है। इसकी वजह यह है कि यह विवाह पूर्ण रूप से वैदिक पद्धति से होता है। हिंदू धर्म के अलग-अलग समाजों में घंटों चलने वाले विवाह कर्मकांड की जगह आर्यसमाजी पद्धति से होने वाला विवाह आधे घंटे में संपन्न हो जाता है। इस पद्धति में वर-वधू के बीच आपसी सामंजस्य से जुड़ी कसमों को ज्यादा महत्व तो दिया ही गया है, साथ ही नवदंपति समाज में मिठास फैलाएंगे इसकी कसम भी खिलाई जाती है।
शादी के दौरान होने वाली रस्में टीवी पर देखने में जितनी अच्छी लगती है उससे कही ज्यादा मजा इन रस्मों को असल में निभाने में आता हैं, दूल्हें के जूते छुपाने से लेकर कलीरे कवारी लड़कियों पर गिराने तक की रस्में बेहद मजेदार होती हैं, जिनकी यादें सालों साल हमारे ज़हन में बनी रहती है। आइए बात करते है ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी रस्मों के बारे में:-
कलीरे
चूडे के साथ अम्ब्रेला-शेप्ड हैंगिंग्स पहनाए जाते है जिसे कलीरे कहा जाता है। दुल्हन की बहनें और दोस्त इसे बांधते हैं । बहनें,रिश्तेदार और दोस्त कलीरे बांध कर दुल्हन को आर्शीवाद देती है कि वह जिंदगी में हमेशा खुश रहें। मार्किट में कलीरे कई तरह के मिलते है। लड़की चूडा और कलीरे पहनकर कुवांरी लड़कियों के सिर पर छनकाती है।
सबसे पहले कलीरे नारियल (पूरा या आधा) से बनाए जाते थे,(हालंकि अभी भी हिमाचल और पंजाब में नारियल के गोले से कलीरे बनाए जाते है) जिसमें काजू और बादाम लटकाए जाते थे. जिसके पीछे मान्यता थी कि दुल्हन कभी भूखी न रहे. यानि शादी होने के बाद अगर उसे अपने पति के साथ उसके घर जाते हुए सफर में भूख लगे, तो वो इसे खा सके. लेकिन टाइम के साथ कलीरे के डिज़ाइन और रंग में काफी बदलाव आ चुका है. अब उसी आधे नारियल की शेप या गुम्बद या अम्ब्रेला जैसे शेप में लाइट रोज़ वुड या मेटल से इसे बनाया जाता है, जिसमें हर कलर के बीड्स या स्टोन्स जड़े हुए होते हैं. लेकिन आज भी गांव में कई जगह आधे नारियल को ही दुल्हन के हाथों पर बांधा जाता है
माना जाता है कि जिस लड़की के सिर पर कलीरा गिरे तो अगली शादी उसी की होगी। शादी के अगले दिन दुल्हन का एक कलीरा उतार कर मंदिर में चढा दिया जाता है और बाकी कलीरे लड़की अपने पास रखती है।
सम्बधियों की मिलणी
जब बारात शादी के स्थल पर पँहुचाते है तो इस समारोह को मिलनी कहा जाता है। जिसमें दूल्हे के तरफ से रिश्तेदारों और दुल्हन के रिश्तेदारों, एक दूसरे को अभिवादन करते है।
बारात जब आती है तो सबसे पहले दोनों तरफ से सम्बधियों की मिलणी होती है। हार पहनाकर स्वागत किया जाता है और उपहार भेंट किए जाते हैं।
रिबन काटना
जब बारात वैन्यू तक पहुचती है तो दूल्हे को वेन्यू के अंदर आने के लिए रिबन काटना होता है, रिबन काटने के लिए दूल्हन की सहेलियां दूल्हे को चाकू देती हैं, लेकिन ये चाकू दूल्हे को तब मिलता है जब वह दूल्हन की सहलियों को पैसे देता है।
रिबन काटने और थोड़ा-बहुत हंसी-मजाक के साथ जीजा से पैसे लेतीं हैं। रिबन काटने के बाद लड़की का भाई जीजा को स्नान कराता है और कपड़े पहनने को देता है।
माँग भराई
विवाह मंडप में पगफेरों के समय दूल्हा अपनी दुल्हन की माँग में लाल रंग का सिंदूर भरता है, ताकि वह सदा सुहागन रहे व समाज में उसकी पत्नी के रूप में जानी जाए। यानी प्रतीकात्मक रूप से दुल्हन द्वारा माथे पर सिंदूर लगाया जाता है कि वह शादीशुदा है।
जूते छुपाना
सालियों द्वारा जीजाजी से नेग माँगने के चक्कर में जूते छुपाना काफी पुरानी परंपरा है। जिसमें सालियाँ जूते छुपाकर अपने जीजाजी से मुँहमाँगे पैसे लेती हैं। इस रस्म से दूल्हे का मूल्यांकन भी भी किया जाता है। ये इतनी प्यारी रस्म है कि हर जाति और समाज के वर्ग में इसे जरूर पूरा किया जाता है. इस रस्म में भी जूता छुपाने वाली, वर से नेग (रुपये) मांगती हैं. वर को नेग देना भी पड़ता है. पारिवारिक जीवन में संपन्न हो रही विभिन्न रस्मों में नेग मांगे जाते हैं. वैसे तो किसी को भी किसी से पैसे मांगने में शर्म आएगी, लेकिन शादी और त्योहारों के अवसर पर बुआ, बहन और भाभियां खुलकर नेग मांगती हैं. तभी रस्म पूरी होती हैं. बड़ों को भी नेग देने में आनंद ही आता है. फिल्म हम आपके हैं कौन में तो जूते छुपाने की रस्म को जिस अंदाज में फिल्माया गया उसे आज तक आम लोग अपनी शादियों में दोहराते हैं. फिल्म का गाना जूते ले लो पैसे दे दो. सिर चढ़कर बोलता है
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