विवाह
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हिंदू धर्म में विवाह को पवित्र संस्कार कहा जाता है। विवाह को बहुत ही पवित्र बंधन माना गया है। वेदों में कहा गया है कि दो शरीर, दो मन, दो हृदय, दो प्राण और दो आत्माओं का मिलन पवित्र संस्कार है। यानी कि हिंदू धर्म में विवाह के जरिए वर-वधू का, जिनके पास दो शरीर, दो मन, दो हृदय, दो प्राण और दो आत्माएं होती हैं आपस में मिलन हो जाता है। इस मिलन को अटूट कहा गया है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि विवाह केवल शारीरिक सुख के लिए नहीं होता। बल्कि विवाह एक-दूसरे के सुख-दुख, हंसी-खुशी का हिस्सा बनना है। एक-दूसरे का जीवन भर खयाल रखना है। एक-दूसरे का सदा के लिए हो जाना है।

भारतीय संकृति के कई तरह के विवाह प्रचलित हैं। इनमें ब्रम्ह, देव, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व इत्यादि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ को शुभ तो कुछ को अशुभ भी माना गया है। गठबंधन को विवाह का प्रतीक माना जाता है। यह गठबंधन ही इस बात को दर्शाता है कि वर-वधू जीवनभर के लिए एक-दूसरे के हो गए हैं। साथ ही वर-वधू पर इस बात की जिम्मेदारी भी होती है कि वे इस गठबंधन को कभी टूटने नहीं देंगे। चाहे कुछ भी हो जाए, वे सदा एक-दूसरे का साथ देंगे।

हिंदू विवाह में गठबंधन के समय वर के पल्लू में सिक्का, हल्दी, अक्षत, पुष्प, दूब इत्यादि रखकर वधू के पल्लू से गांठ बांधी जाती है। सिक्के मतलब यह होता है कि धन पर केवल एक शख्स का ही अधिकार नहीं होगा। बल्कि घर में आने वाले धन के पति और पत्नी समान रूप से अधिकारी होंगे। फूल इस बात के प्रतीक के तौर पर रखा जाता है कि पति-पत्नी सदैव एक-दूसरे को देखकर प्रसन्न होते रहेंगे। वहीं, हल्दी सेहत, दूब हरियाली और अक्षत अन्न को दर्शाती है। ऐसी ही कुछ और परंपराओं से विवाह पवित्र संस्कार बन जाता है।

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