फिल्म Shershaah की कहानी – (Captain Vikram Batra Biopic)
शेरशाह फ़िल्म कारगिल जंग में अहम भूमिका निभाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी पर आधारित है शेरशाह’ (Shershaah) कैप्टन विक्रम बत्रा की बायॉपिक (Captain Bikram Batra Biopic) है। फिल्म करगिल युद्ध में कैप्टन बत्रा के पराक्रम और साहस के बूते देश की जीत और निजी जिंदगी से जुड़ी घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
‘शेरशाह’ (Shershaah) कैप्टन विक्रम बत्रा की बायॉपिक (Captain Vikram Batra Biopic) है। फिल्म करगिल युद्ध में कैप्टन बत्रा के पराक्रम और साहस के बूते देश की जीत और निजी जिंदगी से जुड़ी घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
समीक्षा
आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में करगिल युद्ध अब तक की सबसे मुश्किल लड़ाई थी। 17,000 फीट की ऊंचाई पर लड़े गए इस ऐतिहासिक युद्ध में देश ने बहुत कुछ खोया। बहुत कुछ दांव पर था। पाकिस्तान के सैनिकों ने कश्मीरी आतंकवादियों के वेश में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय हिस्से में घुसपैठ की थी। देश का मान दांव पर था। हमारे जाबांज सैनिकों ने जान की बाजी लगाई। उनके अतुलनीय साहस और पराक्रम के कारण ही करगिल की चोटी पर फिर से तिरंगा लहराया। इस युद्ध में देश ने अपने बहादुर बेटों को खोया। यह उनकी शहादत ही है, जिसकी वजह से देश का सिर आज गर्व और सम्मान से ऊंचा है। डायरेक्टर विष्णु वर्धन और लेखक संदीप श्रीवास्तव ने फिल्म की शुरुआत कैप्टन विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) के बचपन से की है। वह धीरे-धीरे, लेकिन असरदार तरीके से आगे बढ़ते हैं।
फिल्म का कैनवस विक्रम बत्रा के साथ-साथ बड़ा होता है। उन्हें डिम्पल चीमा (कियारा आडवाणी) में अपना प्यार मिलता है। फिर 13JAF राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर पोस्टिंग होती है। एक किरदार के तौर पर कैप्टन बत्रा को पर्दे पर स्थापित करने में राइटर-डायरेक्टर ने बहुत समय खर्च किया है। जबकि इसमें थोड़ी तेजी दिखाई जा सकती थी। यही नहीं, कियारा आडवाणी जब भी पर्दे पर आती हैं, अधिकतर वक्त रोमांटिक गानों में खर्च हो जाता है। फिल्म जिस मूल कहानी पर आधारित है, वहां तक पहुंचने में यह देरी आपको खलती है। इस कारण फिल्म की गति भी धीमी पड़ती है। फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको स्लो लग सकता है।
यह भी सच है कि कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी दिखाने का काम आसान नहीं था। कई सारे तथ्य, बहुत सारा ऐक्शन, उसमें परिवार और प्यार भी। इन सब को समेटना और करगिल युद्ध की ऐतिहासिक जीत को उसी जज्बे के साथ सिनेमाई पर्दे पर रखना। यह सब कठिन काम था। फिल्म का दूसरे भाग में अधिकतर घटनाएं होती हैं, लिहाजा फिल्म स्पीड पकड़ती है।
सिद्धार्थ मल्होत्रा (Sidharth Malhotra) के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी। कैप्टन विक्रम बत्रा के किरदार को लार्जर दैन लाइफ वाले अंदाज में पेश करना यकीनन एक मुश्किल काम था। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सिद्धार्थ मल्होत्रा की अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस है। युद्ध के सीन्स में सिद्धार्थ मल्होत्रा और निखरकर आते हैं। कियारा आडवाणी (Kiara Advani) अपने किरदार में ठीक लगी हैं। वह एक ऐसे इंसान से प्यार करती हैं, जिस दिल से भी बहादुर है। उनके किरदार में फिल्म की कहानी के हिसाब से करने को बहुत कुछ नहीं है।
शिव पंडित (Shiv Pandit) फिल्म में कैप्टन संजीव जामवाल के किरदार में हैं। एक ऐसा किरदार, जो बाहर से जितना कठोर दिखता है, अंदर से उतना ही कोमल है। निकेतन धीर मेजर अजय सिंह जसरोटिया के किरदार में अच्छे लगे हैं। कुछ ऐसा ही हाल शतफ फिगर का है। वह फिल्म में कर्नल योगेश कुमार जोशी के रोल में है और प्रभाव छोड़ते हैं। हालांकि, फिल्म में कुछ रूढ़िवादी विचार और बरसों से चली आ रही सोच भी दिखती है। खासकर पाकिस्तान को लेकर।
कुल मिलाकर ‘शेरशाह’ एक देशभक्ति फिल्म है। युद्ध के कई सीन्स दिखाए गए हैं, लेकिन उन्हें और बड़े स्तर पर फिल्माया जा सकता था। करगिल युद्ध को लेकर देश ने जो कुछ भुगता है और साहस की जो गाथा, उसको लेकर आपको बतौर दर्शक एक कमी खलती है। हालांकि, बॉलिवुड में वॉर फिल्म्स ने अब तक जिस तरह की सफलता पाई है, उसे देखते हुए ‘शेरशाह’ हालिया रिलीज इस जॉनर की कई फिल्मों से आगे है। यह आपको एक ऐसी कहानी दिखाती है जो प्रेरणा भी देती है।
फिल्म की कहानी आपको बांधती है। वर्दी में वीर सैनिकों को दुश्मनों से लड़ते देखना, अपनी मिट्टी के लिए अंतिम सांस तक डटे रहना, यह सब एक दर्शक के तौर पर आपमें भावनाएं जगाती है। ‘शेरशाह की सबसे बड़ी जीत यही है कि इसमें देश के हालिया इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक को फिर से रीक्रिएट करने की कोशिश की गई है। इसमें एक उत्साह भी है और ‘हाई जोश’ भी।
कैप्टन विक्रम बत्रा: जन्म, परिवार और शिक्षा
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में गिरधारी लाल बत्रा (पिता) और कमल बत्रा (माँ) के यहाँ हुआ था. उनके पिता गिरधारी लाल बत्रा एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे, जबकि उनकी माँ एक स्कूल टीचर थीं.
कैप्टन विक्रम बत्रा पालमपुर में डीएवी पब्लिक स्कूल में पढ़े. फिर उन्होंने वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए केंद्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया. वर्ष 1990 में, उन्होंने अपने भाई के साथ अखिल भारतीय केवीएस नागरिकों के टेबल टेनिस में स्कूल का प्रतिनिधित्व किया था. कैप्टन विक्रम बत्रा कराटे में ग्रीन बेल्ट थे और मनाली में राष्ट्रीय स्तर पर खेल में भाग लिया था.
वह डीएवी कॉलेज से बीएससी चिकित्सा विज्ञान में स्नातक थे. अपने कॉलेज के दिनों में, कैप्टन विक्रम बत्रा एनसीसी, एयर विंग में शामिल हो गए. कप्तान विक्रम बत्रा को अपनी एनसीसी एयर विंग इकाई के साथ पिंजौर एयरफील्ड और फ्लाइंग क्लब में 40 दिनों के प्रशिक्षण के लिए चुना गया था. कैप्टन विक्रम बत्रा ने ‘C’ सर्टिफिकेट के लिए क्वालिफाई किया और NCC में कैप्टन विक्रम बत्रा का रैंक दिया गया.
1994 में, उन्होंने एनसीसी कैडेट के रूप में गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया और अगले दिन अपने माता-पिता को भारतीय सेना में शामिल होने की अपनी इच्छा के बारे में बताया. 1995 में अपने कॉलेज के दिनों के दौरान, उन्हें हांगकांग में मुख्यालय वाली शिपिंग कंपनी के साथ मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने अपना इरादा बदल दिया.
1995 में डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अंग्रेजी में एमए करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में दाखिला लिया. उन्होंने कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज (CDS) परीक्षा की तैयारी के लिए विषय को चुना. उन्होंने शाम की कक्षाएं लीं और दिन के दौरान चंडीगढ़ में एक ट्रैवल एजेंसी के शाखा प्रबंधक के रूप में काम किया.
1996 में उन्होंने CDS परीक्षा दी और इलाहाबाद में सेवा चयन बोर्ड (SSB) द्वारा चयन हुआ. वह चयनित होने वाले शीर्ष 35 उम्मीदवारों में से एक थे. भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में शामिल होने के लिए उन्होंने अपने कॉलेज से ड्राप आउट किया.
सेना में चयन
विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई, 1996 में उन्होंने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। 1 जून, 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून, 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया।
शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध
विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दे दी गई। अगले दिन चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम का फोटो मीडिया में आया तो हर कोई उनका दीवाना हो उठा। इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया। इसकी भी बागडोर विक्रम को सौंपी गई। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा।
कैप्टन के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाय.के.जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।
अंतिम समय
मिशन लगभग पूरा हो चुका था जब कैप्टन अपने कनिष्ठ अधिकारी लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के लिये लपके। लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे। जब कैप्टन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी की छाती में गोली लगी और वे “जय माता दी” कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुये
16 जून को कैप्टन ने अपने जुड़वां भाई विशाल को द्रास सेक्टर से चिट्ठी में लिखा –“प्रिय कुशु, मां और पिताजी का ख्याल रखना . यहाँ कुछ भी हो सकता है।”
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बत्रा
चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले कैप्टन बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया यहां से एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने और फिर कारगिल युद्ध में 13 जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का नेतृत्व किया कारगिल वॉर में उनके कभी न भूलने वाले योगदान के लिए उन्हें सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अगस्त 1999 को सम्मानित किया गया।
विजयी नारा
कारगिल युद्ध में बन गया था विजयी नारा ‘ये दिल मांगे मोर,‘ देखते ही देखते यह लाइनें कारगिल में दुश्मनों के लिए आफत बन गईं और हर तरफ बस ‘यह दिल मांगे मोर’ ही सुनाई देता था।
पाक ने दिया कोडनेम शेरशाह
जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्टन बत्रा दुश्मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्दील हो गए थे।ऐसे में पाकिस्तान की ओर से उनके लिए एक कोडनेम रखा गया और यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था। इस बात की जानकार खुद कैप्टन बत्रा ने युद्ध के दौरान ही दिए गए एक इंटरव्यू में दी थी।
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