अर्की के ” मलौन किले ” से निकली थी दुनिया को अपने शौर्य और पराक्रम से दहला देने वाली पहली गोरखा रेजिमेंट, जिसके डेढ़ दर्जन सैनिकों ने अमर सिंह और भक्ति सिंह थापा की अगुवाई में तीन दिन चले भीषण युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।लेकिन बाद में ब्रिटिश सेना के अत्याधुनिक हथियारों और तोपों के आगे नतमस्तक होकर उन्होंने हथियार डाल दिए।अंग्रेज उनके शौर्य के आगे नतमस्तक हुए और उन्होंने नसीरी बटालियन का गठन करके इसे सेना में शामिल कर लिया।इस युद्ध में प्रयोग की गई तोप अभी भी सबाथू के गोरखा संग्रहालय में रखा है।
कारगिल युद्ध में भी गोरखा रेजिमेंट के मनोज पान्डेय जो को परमवीर चक्र प्राप्त हुआ था। गोरखा रेजिमेंट अब देश की सेना की सबसे खूंखार और खतरनाक रेजिमेंट है। गोरखों की खासियत है कि यह मौत से नहीं डरते। पहले फील्ड मार्शल माणेक शाह ने कहा था कि जो कहता है कि वो मौत से नहीं डरता वो या तो झूठ बोल रहा है या फिर वो गोरखा है। इस रेजिमेंट के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र, 33 महावीर चक्र और 82 वीर चक्र प्राप्त हए।
आज़ादी के बाद कुछ बटालियन ब्रिटिश सेना का हिस्सा बनी और वाकी सब भारतीय सेना में शामिल हुई। 1903 में मलौन किले के नाम से मलौन रेजिमेंट का गठन किया। मलौन का किला जो किसी समय शुर गाथाएं लिखता है आज खण्डहर बन चूका है। यह अब न तो पुरातत्व विभाग के पास है और न ही भाषा और संस्कृति विभाग के पास। इसके रख-रखाब का जिम्मा अब वन निगम के पास है।
इस धरोहर को सहेजने की जरूरत है जबकि यह खस्ता हाल में हो चुकी है। सरकार को चाहिए की इस बेशकीमती धरोहर को संभाल के रखे क्योंकि सेना से जुड़े कई गोरख़ा परिवार हिमाचल में बस गए हैं और उनकी आस्था के साथ कुलदेवी माँ काली का मन्दिर भी यहीं स्थित है।उसके रास्तों को पक्का करवाना चाहिए ताकि आने जाने वालों को सुगमता हो।
जय हिंद
Special thanks to Himanshu Thakur, who is native of this village Malaun.
Source – (“विनय शर्मा की टाईमलाईन के आभार से”)
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