Uttrakhandi Culture Nathh
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आज सुभि की पहली रसोई की रस्म थी ।और उसे बीते हुए कुछ दिन याद आ रहे थे ।
सुभि के सभी घर वाले बहुत खुश थे ।और होते भी क्यों ना आखिर इतने अच्छे घर में रिश्ता हुआ था सुभि का ,पर सुभि जितनी तेजी से सपनों को संजो रही थी ,डर उससे कहीं ज्यादा तेजी से उसके अन्दर घर करता जा रहा था ,पापा की राजकुमारी को पापा ने कभी रसोई में कदम भी रखने नहीं दिया था ,हालांकि शादी तय होने के बाद से ही मम्मी उसे अपने साथ रसोई में लगाये रखती थी।पर सिर्फ एक महीने में सुभि रसोई की ए बी सी डी भी नहीं सीख पायी थी।वैसे सुभि को कुछ ना आता हो ऐसा भी नहीं था ।वो बहुत अच्छी पेन्टर थी ,और साथ ही साथ एक सफल डॉक्टर भी , वैसे तो सुभि के होने वाले ससुराल में भी उसे रसोई के कदम रखने की जरुरत नहीं थी ,पर फिर भी वो चाहती थी कि कुछ ऐसा बनाना जरूर सीख ले ,जिससे वो सबको खुश कर सकें ।दिनों का काम था गुजरना और वो गुजर भी गये ।

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सुभी बहुत सारी दुआओं के आंचल तले अपनी ससुराल विदा हो गयी ।दो दिन तो बहुत सारी रस्मों को निभाते चुटकी में गुजर गये थे । और आज सुभि खुद को बार बार समझा रही थी ।

बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनायेगी । जैसे ही नहा कर सुभि नीचे आयी । उसकी सास ने सुभि से पूछा ।

” सुभि तुम क्या बनाने वाली हो आज ,और हाँ बिल्कुल भी चिन्ता मत करना मैं तुम्हारे साथ रसोई में रहूंगी ।और अगर तुम्हें कोई भी मदद चाहिए हो तो बता देना ।”

सासूमाँ की बात सुनकर सुभि सर झुकाते हुये बोली ।

” नहीं माँजी आप कहाँ परेशान होगी ।आप आराम से बैठिये मैं सब कुछ कर लूँगी ।”

यह कह कर सुभी रसोई में आ गयी ,और पूरे मन से सबके लिए कुछ बनाने में लग गयी । घन्टों मेहनत के बाद सुभि को लग रहा था ,जैसे वो अभी रो देगी। क्योंकि अपनी तरफ से तो उसने कोई कमी नहीं रखी थी ,पर जाने क्यों ना तो सब्जियों में रंग सही आया था ,और स्वाद में भी कुछ कमी थी ,जो वो समझ ही नहीं पा रही थी ।छोले मे नमक बेइन्तहा था ।तो गाजर के हलवे से भी वो खूशबू नहीं आ रही थी जो माँ की रसोई से आती थी ।

तभी उसकी नन्द आकर बोली ।

“भाभी जरा जल्दी से आना आपको भईया बुला रहे है ।”

नन्द की बात सुनकर उलझी उलझी सी सुभि अपने कमरे में आ गयी।कमरे में आकर वो हैरान रह गयी ।सामने उसकी बचपन की सहेली खड़ी थी । सहेली को सामने पाते ही सुभि ने उस पर तानों की बरसात कर दी । दोनों सहेलियां अपने गिले शिकवे कम कर ही रही थी की तभी सुभि के पति बोले।

” सुभि अपनी सहेली को खाना नहीं खिलाओगी क्या ।”

पति की बात पर सुभि को याद आया ।और वो खुद सें ही बोली  ।

” ओह सहेली से मिलने की खुशी में मैं तो भूल ही गयी ,की मुझे खाना ठीक करना था ।” सहेली को साथ लेकर वो नीचे आयी तो देखा उसकी नन्द ने खाना लगा दिया था ।और उनके आते ही सबने खाना शुरू कर दिया । यह देखकर तो वो पसीना पसीना हो गयी और मन ही मन सोचने लगी ,अब तो मेरे बेईज्ज़ती होने से कोई नहीं रोक सकता ।सब के सब मेरा मजाक उड़ायेंगे ।और मुझ पर हँसगें भी। सबकी बातें सुनने के लिए खुद को तैयार कर रही सुभि के कानों में सबसे पहले पतिदेव की आवाज पड़ी ।

” सुभि यह खाना तुमनें बनाया है ,लग ही नहीं रहा ।बिल्कुल माँ के हाथों का ही स्वाद आ रहा है ।

” तभी पीछे से नन्द भी चहकी ।

” भईया हलवा भी खा कर देखिये ।कितनी अच्छी इलाइची की खूशबू आ रही है ।

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”  देवर ने भी साथ में टुकड़ा लगाया ।

” नहीं मटर पनीर सबसे अच्छा बना है , अबसे मटरपनीर हमेशा भाभी ही बनायेगी ।कितना खूबसूरत लग रहा है यह ”

सुसर जी ने भी बड़े बड़े कई नोट सुभि के हाथों में पकड़ा दिये । हैरान सी सुभि ने जैसे ही सासूमाँ की तरफ देखा ।उन्होंने मुस्कुरा कर नजरें झुका दी। सबके जाते ही सुभि सासूमाँ का हाथ पकड़ते हुये बोली ।

” माँजी आज आपने मेरी इज्जत बचा ली, पर आपने यह मैजिक किया कैसे ।”

बहू की बात सुनकर सास उसके सर पर हाथ फेरते हुये बोली ।

” अब मेरी और तुम्हारी इज्जत अलग अलग तो नहीं ना और मैंने कुछ नहीं किया सब तुम्हारी ही मेहनत थी ,बस गाजर के हलवे में तुम इलाइची डालना भूल गयी थी ,तो मटर पनीर में मलाई और धनिया ,और हाँ छोले में बस आटे की बॉल डाल दी जिसने ज्यादा नमक सोख लिया ।”

सासूमाँ की बात सुनकर सुभी खुशी से बोली ।

” आज तक तो मैंने सिर्फ खाना बिगाड़ने वाली सास के बारे में सुना था ।पर आप तो मेरी सासूमाँ है ।और माँ का मतलब भी बहुत अच्छे से समझ आ गया ।माँ में चन्द्रबिन्दु ऐसे ही नहीं लगता ,ध्यान से देखिए माँ की गोद में बिन्दु की तरह ही हम भी सुरक्षित रहते है ।”                                     बहुत छोटी छोटी बातों से बड़े बड़े रिश्ते बनते और बिगड़ते है। समझदारी से उठाया गया एक छोटा सा कदम   पूरे परिवार में खुशियां ला सकता है। और लापरवाही से रखी गयी एक गलत ईंट पूरी दीवार को गिरा सकती है।

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