बचपन में एक बेटी को देखकर उसके माता-पिता तरह तरह के अरमान सजाते हैं, पढ़ाने लिखाने से लेकर ससुराल भेजने तक का सारा इंतजाम धीरे-धीरे करते हैं, मन में एक स्वप्न देखते हैं कि जिस दिन हमारी गुडिया दुल्हन बनेगी, कैसी लगेगी प्यारी सी। और फिर हम सबको छोड़ कर ससुराल चली जाएगी,फिर एक दिन वो घडी आ ही जाती है जिस दिन अपने जिगर के टुकड़े को विदा करना होता है,इस क्षण को शब्दों में नही लिखा जा सकता ,यह न तो वियोग होता है न ही ख़ुशी का पाल,एक तरफ वेटी को विदा करने का दुःख और दूसरी तरफ उसे उसके वास्तविक घर भेजने कि ख़ुशी
इसी मोके हिमाचल कि शादियों में दुल्हन के पक्ष में यह गीत गाया जाता है :
कजो आये सुनहरी पग बनके के असा बेटी नई भेजनी
कजो आये सुनहरी पग बनके के असा बेटी नई भेजनी
महला ऊपर रोये वापु मेरा जी रोये बापू मेरा जी डोली विच में रोंदी
महला ऊपर रोये वापु मेरा जी रोये बापू मेरा जी डोली विच में रोंदी
चुप कर के तू डोली विच वेई जा कि रोने दा रिवाज नही है
चुप कर के तू डोली विच वेई जा कि रोने दा रिवाज नही है
कजो आये सुनहरी पग बनके के असा बेटी नई भेजनी
Himachali Vidai Song : Asa Beti Nhi Bhejni Lyrics
ki asa beti nyi bhejni
mahela upar roye bapu mera ji
doli vich me rondi
chup kar ke tu doli vich veyi ja ji
doli vich veyi ja rone da riwaj nhi hai
वेटी कि विदाई कि एक विडियो :
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