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फिनलैंड में आयोजित पेसापालो वर्ल्ड कप में कांस्य पदक जीतने वाली टीम इंडिया की कैप्टन शालू खेतों में घास काटने को मजबूर

फोकस हिमाचल की खबर
बर्तन मांज कर परिवार का जीवन यापन करने वाले एक बाप की होनहार लाडली ने अपनी खेल प्रतिभा के दम पर टीम इंडिया की कप्तानी की। उसकी कप्तानी में टीम इंडिया ने वल्र्ड कप में ब्राउंज मेडल जीता। उसे टूर्नामेंट का बेस्ट प्लेयर घोषित किया गया, लेकिन इस चमकदार कामयाबी के बावजूद उसकी किस्मत के सितारे गर्दिश में नहीं रहे। फिनलैंड में आयोजित पेसापालो वल्र्ड कप में टीम इंडिया की कप्तान रही शालू शर्मा वर्तमान में खेल के मैदान की जगह खेतों में घास काटने को मजबूर है। बेटी के खेल कैरियर के लिए अपनी तमाम जमापूंजी लगाने और कर्ज उठाने वाले एक बाप को मलाल है कि उसकी लाडली की उपलब्धियों को सरकारी व्यवस्था ने नजरअंदाज कर दिया।

स्कूल छूटा पर खेल का जज्बा रहा बरकरार

सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र की दुर्गम पंचायत शमाह के माम राम शर्मा और कुसुमलता के घर 5 जुलाई 1995 को जन्मी शालू शर्मा नन्ही सी उम्र में ही खेलों के प्रति आकर्षित हो गई। जब तीसरी कक्षा में थी तो 100 मीटर व 200 मीटर दौड़ में अपना हुनर दिखाने लगी। लांग जंप और हाई जंप में उसका सिक्का चलने लगा। छठी कक्षा में पहुंचते बैडमिंटन और हैंडवॉल खेलना शुरू कर दिया। जमा दो तक आते आते हैंडवॅाल में नेशनल और बैडमिंटन में स्टेट तक खेल कर अपनी खेल प्रतिभा से सभी को कायल कर दिया। हालांकि आर्थिक अभाव के चलते शालू को अपनी आगे की पढ़ाई प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर करने को मजबूर होना पड़ा, लेकिन खेलों के प्रति ललक बरबरार रही।

शालू के टीम इंडिया के कैप्टन बनने की कहानी

शालू को सूचना मिली कि बिलासपुर में महिला कबड्डी और पेसापोलो के ट्रायल हो रहे हैं। बीपीएल परिवार से संबंध रखते पिता माम राम ने दोस्तों, रिश्तेदारों से राशि जुटाकर बेटी को ट्रायल के लिए बिलासपुर भेजा। शालू का चयन प्रदेश की पेसापोलो टीम में हो गया। फिर केरल भेजने की बात आई तो पिता ने कर्ज उठाकर बेटी के सपनों को उड़ान दी। केरल में एक महीने की ट्रेनिंग के बाद वह भारतीय सीनियर टीम के लिए चुन ली गई। तीन अलग-अलग कैंप में ट्रेनिंग के बाद शालू को भारतीय टीम की कप्तान के रूप में चयन हो गया।

कर्ज लेकर भेजा फिनलैंड, बेटी ने साबित की काबलियत

जुलाई में 2017 में नौवीं पेसापालो वल्र्ड कप फिनलैंड में होना था। इस कप में भाग लेने जा रही टीम इंडिया की कप्तान शालू के लिए सबसे बड़ी चिंता यह थी कि पासपोर्ट कैसे बनेगा? प्रोसेसिंग फीस का इंतजाम कैसे होगा? शालू के पिता ने ७० हजार रुपए का लोन लिया। ढाई लाख की प्रोसेसिंग फीस जुटाने के लिए पांवटा साहिब के एसडीएम एचएच राणा ने मदद की। भारतीय टीम ने वल्र्ड कप में कांस्य पदक जीता और शालू को टूर्नामेंट की बेहतरीन खिलाड़ी चुना गया। जनवरी 2018 में टीम इंडिया ने शालू की कप्तानी में एशिया कप में गोल्ड मेडल जीतकर फिर सनसनी फैला दी।

जिसे मैदान में होना था, खेतों में कर रही काम

चमकदार कामयाबी के बाद शालू का नागरिक अभिनंदन हुआ। डॉ. वाईएस परमार की जयंती पर तत्कालीन मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल ने स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित जरूर किया, लेकिन आर्थिक रूप से किसी ने शालू की कोई मदद नहीं की। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने मदद का भरोसा जरूर दिया, लेकिन मदद मिली नहीं। अन्य खेलों के खिलाडिय़ों को जहां प्रदेश सरकार ने आर्थिक मदद के साथ सरकारी नौकरी भी दी, वहीं पेसापालो की भारतीय कप्तान की खेल उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दिया गया। यही कारण है कि जिस खिलाड़ी को मैदान में होना चाहिए था, वह अपनी मां के साथ खेतों में काम करने और पशुओं के लिए घास काटने को मजबूर है।

शालू के संघर्ष को मिलेगा सम्मान?

शालू के पिता नमकीन व चाय बनाने वाली एक दुकान में काम करते हैं। चाय परोसने के अलावा जूठे बर्तन मांजना उनके काम का हिस्सा है। एक भाई टैक्सी ड्राइवर है और दूसरा पढ़ रहा है। शालू के परिवार के पास खेती भी बस नाम की है। घर की हालत दयनीय है। बेटी के चमकदार प्रदर्शन के बाद दिन फिरने की परिवार को उम्मीद जगी थी, लेकिन सरकार की बेरूखी से परिवार के सपने टूट गए हैं। एक होनहार खिलाड़ी अवसाद का शिकार होने लगी है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या एम मिस्त्री के बेटे के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार शालू के संघर्ष को देखते हुए उसके परिवार के साथ न्याय करेगी?

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