सावन की पूर्णिमा यानी राखी आते ही हिमाचल में जगह जगह हाथ में लोहे की छड़ी लिए बच्चे और बड़े दिखाई देते हैं। उस छड़ी पर कुछ रंग-बिरंगी चुन्नियां, सुहागी, धूप बत्ती लगाए हुए होते हैं और जैसे ही किसी आंगन में पहुंचते हैं जोर से जयकारा लगाते हैं “जय गुग्गा जाहर पीर”।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर भादों के शुक्ल पक्ष की दशमी तक के जो दस दिन होते हैं वो जाहर पीर गुग्गा जी को समर्पित किए जाते हैं। गुग्गा जी वैसे राजस्थान के लोक देवता हैं और उनको “गोगा वीर” “गोगा पीर” के नाम से जानते हैं। राजस्थान के हनुमानगढ जिले में गोगामढी नामक शहर है जहां भादों महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी और दशमी को मेला लगता है। राजस्थान के अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल में भी गुग्गा जी बहुत प्रसिद्ध हैं। गुग्गा जी को सांपों का देवता के रूप में पूजा करते हैं।
हिमाचल में इन दस दिनों में जगह जगह गुग्गा जी के नाम पर रात को डेरा कराया जाता है जिसमें सब लोग इक्कठा होते हैं और गुग्गा जी की गाथाएँ गाई जाती हैं। लोग एक समूह बनाकर डमरू, हारमोनियम, आदि अन्य लोकल वाद्ययंत्रों के साथ मंडली में गुग्गा जी की आरती और गाथाएँ घर घर जा कर गाते हैं। बच्चे हाथ में लोहे की छड़ लेकर घर घर गुग्गा जी की कार करते हैं और बदले में लोग उन्हें अनाज, पैसे आदि देते हैं। भादों की नवमी या दशमी को वो लोग जाकर इक्कठे हुए पैसे और अनाज में से कुछ हिस्सा गुग्गा जी को चढाया जाता है। लोग भी नवमी और दशमी को जाकर गुग्गा जी को रोट चढाते हैं और उनसे अपनी दया बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।
वीडियो देखे :हिमाचल संस्कृति की सदियों से चली आ रही परम्परा की एक झलक । जिसको ये गुग्गे वाले घर घर जा कर और गा कर सुनाते हैं और जन्माष्टमी के दिन इसका समापन हो जाता है ,अगर विडियो प्ले नही होती है तो इस लिंक पर क्लिक करे
गुग्गा छतर । जरूर देखें वीडियो -Like Pageकृष्ण जन्म की इस महीने में स्थानीय लोक कलाकार गुग्गा छत्तर को मांगने आते है। आमतौर पर इसको जोगी और डुमना समुदाय के लोग गाते है लेकिन अन्य समुदाय के लोग भी गुग्गा गाते है।आज से पांच सात साल पहले तक गुग्गा छतरी वाले छत्र और चिमटा ले कर गुग्गा गाने आते थे और इसके बदले अनाज लेते है लेकिन अब धीरे धीरे यह परम्परा लुप्त हो रही है। इस वीडियो के कलाकारों ने बताया कि अब उनके बच्चो को इन कामो में शर्म आती है लेकिन जब तक हम लोगो की सांसें है हम लोग इस कला को जिन्दा रखने के लिए संघर्षरत है ।इस विषय से जुडी कोई और जानकारी या संसोधन हो तो आप अपने कॉमेंट में दाल सकते है।हिमाचली संस्कृति से जुडी बातो को शेयर करने का हिमाचली रिश्ता का हमेशा प्रयास रहा है इस वीडियो को शेयर कर के इसमें हमारा सहयोग करें।#Gugga #chhatar #HimachaliRishta
Posted by Himachali Rishta.Com on Wednesday, 16 August 2017
मैं हिमाचल के बिलासपुर से संबंध रखती हूँ तो मैंने अपने घर में भी देखा है कि मेरी मम्मी रोट बनाकर बरमाणा के पास भटेड़ या फिर गेहड़वी में स्थित गुग्गा मंदिर में माथा टेकने जाते हैं। इसके अलावा हिमाचल के और स्थानों पर भी गुग्गा जी के मंदिर हैं।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में सुलह में गुग्गा छतरी मंदिर
रोट कबूल करयों। और इस प्रार्थना के साथ रोट, अनाज और अन्य भेंट चढाई जाती हैं।
गुग्गा जी गुरू गोरखनाथ के शिष्य थे। जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर गुग्गा जी का जन्मस्थान है और चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादों के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। उनकी जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गुग्गा जी की घोड़े पर सवार मूर्ति।
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श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गुग्गा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरखनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेकते हैं तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन से आगामी सात दिनों तक गुग्गा की कथाएं सुनने से सुख मिलता है और दुख व कष्ट दूर होते हैं. गुग्गा की इस कथा के गुणगान का यह क्रम जन्माष्टमी के अगले दिन नवमी को समाप्त होता है
![गुग्गा मन्दिर लालां दा टियाला धनेटा हमीरपुर](https://beingpahadi.com/wp-content/uploads/2017/08/गुग्गा-मन्दिर-लालां-दा-टियाला-धनेटा-हमीरपुर.jpg)
कथाओं के अनुसार गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माता बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
गुग्गा जी को हिन्दू, मुस्लिम और सिख तीनों समुदाय के लोग मानते हैं। मेले के दौरान सभी समुदायों के लोग गुग्गा जी के मंदिर पहुंच कर माथा टेकते हैं और सांप्रदायिक एकता को प्रदर्शित करते हैं।
जय गुग्गा जाहर पीरजी!
कीड़े-कंडूआं ते पैहरा रखयो।
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