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भारत में भगवान शिव के अनेक अद्भुत मंदिर है उन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है।

कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है।बिजली महादेव मंदिर, ब्यास नदी के किनारे, कुल्लू का एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल, मनाली के निकट स्थित है। हिंदुओं के विनाश के देवता, शिव, को समर्पित, यह जगह समुद्र स्तर 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर पहाड़ी, भारत के उत्तर में हिमालय की तलहटी में रहने वाले लोगों के समूहों की एक व्यापक सामान्यीकरण, स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है, अपने 60 फुट लंबा स्तंभ के लिए प्रसिद्ध है। 

कहा जाता है कि पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। इस मंदिर की खास बात ये है की जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता हैं।इस शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली क्यों गिरती है और

 इस जगह का नाम कुल्लू कैसे पड़ा इसके पीछे  है एक पौराणिक कथा है

 कुलान्त नामक दैत्य का संहार

कुल्लू घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलान्त नामक दैत्य रहता था। यह दैत्य अजगर की तरह दिखता था और बेहद विशाल भी था। कुल्लू के पास व्यास नहीं बहती है। उस दैत्य की नज़र इसी नदी पर थी। कुलान्त दैत्य का मकसद व्यास नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना था ताकि वह घाटी में रह रहे जीव-जंतुओं को मिटा सके। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल स्पीति से मथाण गांव आ गया

बड़ी कोशिश के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलान्त पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलान्त के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलान्त मारा गया। कुलान्त के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया।

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कुलांत से ही नाम पड़ा कुल्लू

उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा की पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलान्त से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है। कुलान्त दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।

शिव का इंद्र को आदेश -इस स्थान पर गिराएं बिजली

आकाशीय बिजली बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है।

बिजली शिवलिंग पर ही क्यों गिरती है

आकाशीय बिजली बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। भादों के महीने में यहां मेला-सा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

दीवारों पर हैं सबूत

इन निशानों को देखकर पता लगता है कि जब मंदिर के भीतर रखे शिवलिंग पर बिजली आकर गिरती होगी, तब उसकी कुछ चिंगारियां मंदिर के अंदर की दीवारों पर भी आ जाती होंगी। जिस कारण दीवारों पर कुछ निशान रह जाते हैं।

सर्दियों में भारी बर्फबारी

यह जगह समुद्र स्तर से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है। कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव हैं तो कहीं ब्राणी महादेव। कहीं वे जुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महत्त्व एवं इतिहास है। ऐसा लगता है मानो बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है । हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।

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