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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि उन्हें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं.shradh 2020 date importance and shradh vidhi | जानिए कब से हैं श्राद्ध और  उससे जुड़ी सभी मान्यताएं और धारणाएं | Hindi News, धर्म

 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वी लोक के सबसे अधिक नजदीक आता है. श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है. जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं. इससे प्रसन्न होकर पितृ आशीर्वाद देकर जाते हैं. पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं. पहला तो मृत्यु या क्षय तिथि पर और दूसरा पितृ पक्ष में जिस मास और तिथि को पितर की मृत्यु हुई है अथवा जिस तिथि को उनका दाह संस्कार हुआ है

पितरों की संतुष्टि के लिए किया जाता है श्राद्ध

वर्ष में उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है. इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है. पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है. पार्वण श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है, किंतु शास्त्र किसी एक सात्विक एवं संध्यावंदन करने वाले ब्राह्मण को भोजन कराने की भी आज्ञा देते हैं.

अदृश्य जगत का हिस्सा है पितृ लोक

इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है, जैसे- रात और दिन, अंधेरा और उजाला, सफेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाए जा सकते हैं. सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक हैं. दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं. इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी एक जोड़ा है. दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता. ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं. पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है.

धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है. वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है.

श्राद्ध करने से सालभर खुश रहते हैं पितृगण

पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है. इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है. श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए. पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है.

आशीर्वाद के बजाए श्राप भी दे सकते हैं पूर्वज

श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि उन्हें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं. यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है. श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं.

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पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है. श्राद्ध या पिण्डदान दोनों एक ही शब्द के दो पहलू हैं पिण्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिण्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना. इसी को पिण्डदान कहते है दक्षिण भारतीय पिण्डदान को श्राद्ध कहते है.

 

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