बिलासपुर जिले के विक्टोरिया क्राॅस से सम्मानित वीर भंडारी राम

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हिमाचल के वीर सपूतों की बहादुरी के किस्से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। आज आपको ऐसी ही शख्सियत से आपको वाकिफ करा रही हूँ जिनका नाम आज कोई ही जानता हो लेकिन एक समय था जब ब्रिटिश सरकार भी उनकी बहादुरी की सराहना करती थी। जी हां तो मैं बात कर रही हूँ विक्टोरिया क्राॅस से सम्मानित वीर भंडारी राम की।

भंडारी जी का जन्म 24 जुलाई 1919 को परगणा गुगेड़ा जो कि उस समय बिलासपुर रियासत के अधीन था, में हुआ था। वो उस समय 25 वर्ष के थे और 10वें बलूच रेजिमेंट ब्रिटिश इंडियन आर्मी( जो बाद में पाकिस्तान सेना की बलूच रेजिमेंट सन गया था) के सिपाही थे। 24 जुलाई 1941 में वो सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के साथ-साथ आजादी के बाद भारतीय सेना में भी अपनी सेवाएं दी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना के विरूद्ध बर्मा कैम्पेन में भंडारी जी के अद्भुत साहस के लिए उनको सर्वश्रेष्ठ सम्मान से नवाज़ा गया था जो कि ब्रिटिश और काॅमनवैल्थ फोर्सेस को दिया जाता था।22 नवम्बर 1944 को पूर्वी मऊ, अराकन में एक जापानी सेना द्वारा हुए आक्रमण के दौरान एक बंकर को जीतना था और भंडारी जी एक टुकड़ी के हिस्सा थे। इसके लिए उनकी पलटन को एक तेज ढलान पर चढ़ना था, जो कि एक संकीर्ण नदी के किनारे के रास्ते से जाना था। करीब चोटी से पचास गज दूर जापानी सेना ने भारी मशीन गन से फायरिंग शुरू कर दी और पलटन को एक जगह बांध दिया। इस फायरिंग में तीन आदमी जख्मी हो गए जिनमें भंडारी जी को भी कंधे और टांग में चोट लगी थी।

भंडारी जी रेंगते हुए मशीन गन तक गए और करीब पंद्रह गज दूर दुश्मनों के सामने पहुंच गए। तभी दुश्मन सैनिकों ने उन पर ग्रेनेड फेंक दिए जिससे उनकी छाती और चेहरे पर गहरी चोटें आ गई। कईं चोटें और ग्रेनेड से हुए जख्मों के कारण खून से लथपथ भंडारी जी अपने अलौकिक साहस और दृढ निश्चय के साथ रेंगते हुए दुश्मन से करीब पांच गज दूरी तक पंहुच गए। तभी उन्होंने एक ग्रेनेड फेंका और तीन सैनिकों को मार गिराया। उनसे प्रभावित हो कर उनकी पलटन आगे बढी और अपनी पोजीशन ली।

उनके साहस, दुश्मन को हर कीमत पर खत्म करने की निश्चय और अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने अपनी पलटन को दुश्मन को जीतने में मदद की। यह सम्मान उनको 8 फरवरी 1945 को दिया गया। उसके साथ आजादी के बाद भी वो भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देते रहे और 1969 में वो कैप्टन के पद से रिटायर हुए।

विक्टोरिया क्राॅस सम्मान के साथ ही परम विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया है। इसके अलावा कईं सड़कों और होटलों का नाम उनक नाम पर रखा गया है। 19 मई 2002 को हिमाचल के बिलासपुर जिले में 82 वर्ष की आयु में औहर स्थित अपने आवास में उन्होंने अंतिम सांस ली।


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