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भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली, उनके दुःखों को हरने वाली, उनकी समस्त समस्याओं को दूर करके उन्हें संसार की सभी खुशियां प्रदान करने वाली ‘शेरा वाली माता’ ‘आदिशक्ति’ वैष्णो देवी मां का मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जम्मू में स्थित माता वैष्णो देवी की महिमा अपरम्पार है। माता वैष्णो देवी ‘त्रिकूट पर्वत’ पर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तीन पिंडियों के रूप में विराजमान हैं।

पूरे जगत में माता रानी के नाम से जानी जाने वाली माता वैष्णोदेवी का जागृत और पवित्र मंदिर भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के उधमपुर जिले में कटरा से १२ किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिमी हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। यह एक दुर्गम यात्रा है। किंतु आस्था की शक्ति सब कुछ संभव कर देती है। माता के भक्तों की आस्था और विश्वास के कारण ही ऐसा माना जाता है कि माता के बुलावे पर ही कोई भी भक्त दर्शन के लिए वैष्णो देवी के भवन तक पहुंच पाता है। व्यावहारिक दृष्टि से माता वैष्णो देवी ज्ञान, वैभव और बल का सामुहिक रुप है। क्योंकि यहां आदिशक्ति के तीन रुप हैं – पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी हैं, दूसरी महालक्ष्मी जो धन-वैभव की देवी और तीसरी महाकाली या दुर्गा शक्ति स्वरुपा मानी जाती है। जीवन के धरातल पर भी श्रेष्ठ और सफल बनने और ऊंचाईयों को छूने के लिए विद्या, धन और बल ही जरुरी होता है। जो मेहनत और परिश्रम के द्वारा ही संभव है। माता की इस यात्रा से भी जीवन के सफर में आने वाली कठिनाईयों और संघर्षों का सामना कर पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है।

कथा –

पौराणिक मान्यताओं में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर आदिशक्ति के सत, रज और तम तीन रुप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपनी सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की। यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी समुद्री तट रामेश्वर में पण्डित रत्नाकर की पुत्री के रुप में अवतरित हुई। लगभग ९ वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ है भगवान विष्णु ने भी इस भू-लोक में भगवान श्रीराम के रुप में अवतार लिया है। तब वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी। जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे।

तब समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रुप में स्वीकार करने को कहा। भगवान श्रीराम ने उस कन्या से कहा कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है। किंतु कलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रुप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो।

इसी प्रकार एक अन्य पुरातन कथा के अनुसार –


वर्तमान कटरा के पास हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम अनुयायी श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक बार उसने नवरात्रि पूजा में कन्या पूजन हेतु कन्याओं को बुलाया। उन कन्याओं के साथ माता वैष्णोंदेवी भी आई। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गई पर माँ वैष्णोदेवी वहीं रहीं और श्रीधर से कहा कि पूरी बस्ती को भोजन करने का बुलावा दे दो। श्रीधर ने उस कन्या रुपी माँ वैष्णवी की बात मानकर पूरे गांव को भोजन के लिए निमंत्रण देने चला गया। वहां से लौटकर आते समय बाबा भैरवनाथ और उनके शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है जो सभी को भोजन करवा रही है।

इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए एकत्रित हुए। तब कन्या रुपी माँ वैष्णोदेवी ने सभी को भोजन परोसना शुरु किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई। तब उसने कहा कि मैं तो मांस भक्षण और मदिरापान करुंगा। तब कन्या रुपी माँ ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान-बुझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। तब माँ ने उसके कपट को जान लिया। माँ ने वायु रुप में बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर चली गई। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। माना जाता है कि माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे तू एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है। इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे।

भैरवनाथ साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा के दूसरे मार्ग से बाहर निकली। यह गुफा आज भी अद्र्धकुंवारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रुप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गई। तब तक वीर हनुमान ने भैरव से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रुप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। मृत्यु के पूर्व भैरवनाथ ने माता से क्षमा मांगी। तब माता ने उसे माफ कर वर भी दिया कि मेरा जो भी भक्त मेरे दर्शन के बाद भैरवनाथ के दर्शन करेगा उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। तब से आज तक अनगिनत माता के भक्त माता वैष्णोंदेवी के दर्शन करने के लिए आते है।

 

इसी प्रकार एक अन्य पुरातन कथा के अनुसार

हिन्दू पौराणिक मान्यताओं में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर आदिशक्ति के सत, रज और तम तीन रूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने अपनी सामूहिक बल से धर्म की रक्षा के लिए एक कन्या प्रकट की। यह कन्या त्रेतायुग में भारत के दक्षिणी समुद्री तट रामेश्वर में पण्डित रत्नाकर की पुत्री के रूप में अवतरित हुई। कई सालों से संतानहीन रत्नाकर ने बच्ची को त्रिकुता नाम दिया, परन्तु भगवान विष्णु के अंश रूप में प्रकट होने के कारण वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। लगभग 9 वर्ष की होने पर उस कन्या को जब यह मालूम हुआ है भगवान विष्णु ने भी इस भू-लोक में भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लिया है। तब वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी।

जब श्रीराम सीता हरण के बाद सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे। तब समुद्र तट पर ध्यानमग्र कन्या को देखा। उस कन्या ने भगवान श्रीराम से उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा। भगवान श्रीराम ने उस कन्या से कहा कि उन्होंने इस जन्म में सीता से विवाह कर एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है। किंतुकलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा और तुम्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार करुंगा। उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत की श्रेणी में जाकर तप करो और भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर जगत कल्याण करती रहो। जब श्री राम ने रावण के विरुद्ध विजय प्राप्त किया तब मां ने नवरात्रमनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी, त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।

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