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कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है या हिन्दुओं का सबसे पवित्र तीर्थ सथल भी है यह एक ऐसा भव्य पर्वत शिखर है जिसके सामने सब फिक्के लगते है. आप ने जितने भी सूंदर और मनमोहक दृष्य देखें होंगे सब के सब इस कैलाश के भव्य उपस्थिति के आगे धुंदला पड़ जाता है. यहा की कठिनाइयां मांसपेशियों की पीड़ा और ख़राब मौसम एक समय तक यह यात्रा आपके लिए बहुत पीड़ा दायक बन जाती है, पर एक बार कैलाश का भव्य रूप देख लेने के बाद यह सब कुछ सामान्य लगने लगता है इन सब के बाबजूद भी कैलाश पर्वत  एक रह्स्य मय पर्वत है. जिसमे आज भी कई राज दफ़न है.

कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत माना जाता है। यहां अच्छी आत्माएं ही रह सकती हैं। इसे अप्राकृतिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है।आज तक कोई भी मनुष्य कैलाश के शिकार पर नहीं चढ़ पाया है..

यह पर्वत पिरामिडनुमा आकार का है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं।
रशिया के वैज्ञानिकों अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।

pyramid shape
कैलाश पर्वत पिरामिडनुमा आकार

कैलाश पर्वत समुन्द्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र तिब्बत में स्थित है क्युकी तिब्बत चीन के अधीन है, अतः कैलाश पर्वत चीन में आता है. जो चार धर्मो तिब्बती बौद्ध और सभी देश के बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केंद्र है

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कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिंदुओं के सामान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, पर 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट ‘यूएनस्पेशियल’ मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी।
कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्रोतों से घिरा है- सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं।

एक ओर मानसरोवर झील है तो दूसरी ओर राक्षस-ताल

कैलाश पर्वत  पर दो झीले है पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है।

मानसरोवर का महत्व

कहा जाता है कि ब्रह्मा ने अपने मन-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है। दरअसल मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रात:काल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं। ग्रंथों के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसे 51 शक्तिपीठों में से भी एक माना गया है। गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ़ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज़ भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज़ है। एक किंवदंती यह भी है कि नीलकमल केवल मानसरोवर में ही खिलता और दिखता है।

कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है. इसका मतलब कैलाश पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है. इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है. यह सदैव वर्फ से ढका रहता है। इसकी परिक्रमा का भी महत्व कहा गया है. तिब्बत के लोग मानसरोवर की 3 अथवा 13 प्रक्रिया का महत्व मानते है। और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जनम का 10 प्रक्रिमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है, जो प्राणी 108 वार परिक्रमा पूरा करता है उन्हें इस जनम और मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है, कैलाश परस्थित बुद्धभगवान के अलौकिक रूप डैमचौक बौद्ध धर्म बालो के लिए पूजनीय है. बह बुध के इस रूप को धर्मपाल की संघ्या देते है. बौद्ध धर्म बालों का मानना है की इसी स्थान पर आ कर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है. जबकि जैन धर्म की यह मान्यता है की आदिनाथ रेशव देव का यह निर्माण स्थल अष्ट पद है. कहते है रेशव देव ने 8 पग में ही कौलश की यात्रा पूरी की थी।

रहस्यमय बर्फानी ॐ का चिह्न

इसे ॐ पर्वत  इसलिए कहा जाता है क्योंकि पर्वत का आकार व इस पर जो बर्फ़ जमी हुई है वह ओउम आकार की छटा बिखेरती है तथा ओउम का प्रतिबिंब दिखाई देता है। पर्वत पर ॐ अक्षर प्राकृतिक रूप से उभरा है। ज्यादा हिमपात होने पर प्राकृतिक रूप से उभरा यह ॐ अक्षर चमकता हुआ स्पष्ट दिखाई देता है। ॐ पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर भारत-तिब्बत सीमा – लिपुलेख पास से 9 कि.मी पहले नवींढांग (नाभीढांग) नामक स्थान पर है। अप्रैल 2004 से छोटा कैलास की यात्रा शुरू हुई। तभी से इस पर्वत का महत्व भी बढ़ गया।

यहां की सबसे खास बात तो ये है की सूर्य की पहली किरणें जब कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं तो यह पूर्ण रूप से सुनहरा हो जाता है। इतना ही नहीं, कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान आपको पर्वत पर बर्फ़ से बने साक्षात ‘ॐ’ के दर्शन हो जाते हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर कदम बढ़ाने पर दिव्यता का एहसास होता है। ऐसा लगता है मानो एक अलग ही दुनिया में आ गए हों।

पौराणिक मान्यता 

पौराणिक मान्यता के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है

कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चमी को रूबी, और उत्तर को स्वर्ण रूप का मन जाता है। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यही से महा विष्णु के कर कमलो से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है। जहां भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धाराओं के रूप में प्रवाहित करते है पर कैलाश पर्वत पर कैलाश शिव सदा विराजे है।

जिसके ऊपर स्वर्ग और निचे मृत्यु लोक है। इसकी भरी परिधि 92 k.m. की है यहां मानसरोवर पहाड़ से घिरी झील है। जो पुराणों में छीरसागर के नाम से वर्णित है। छीरसागर कैलाश से 40 k.m. की दुरी पर है।जिसके बारे में यह कहा जाता है की इसी में शेष शयीया पे भगवान विष्णु व् माता लक्ष्मी विराजित हो पुरे संसार को संचालित कर रहें है। यह छीरसागर भगवान विष्णु का स्थाई निवास है। जब की हिन्द महासागर अस्थाई निवास है। ऐसा माना जाता है महाराज मानदता ने मानसरोवर झील की खोज की थी और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या भी की थी जो की इन पर्वतों की तालहटी में स्थित है।

हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की मान्यता है की कैलाश पर्वत मेरु पर्वत है जो भ्रमांड की धुड़ी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यह देवी स्ति के शरीर का दया हाथ गिरा था तथा इसी लिए यह एक पाषाण शिला को उसका रूप मान कर उसको पूजा जाता है।

कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं। मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है

कुछ लोगो का मानना यह भी है गुरुनानक देव जी ने यह कुछ दिन रुक के ध्यान किया था इसी लिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगो और ध्वनि तरंगो का अद्भुत समागम होता है. जो ॐ की प्रति-ध्वनि करता है इस पवन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है। जिसमें भारत की सभ्यता की झलक प्रतिबिम्बित होती है. कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्प बृक्ष लगा हुआ है.

बौद्ध धर्म बालो का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष मौजूद है जिसके फलों में चिकत्सीय गुण है जो सभी प्रकार के शारीरिक व् मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम है हलाकि कैलाश मानसरोवर से जुड़े हज़ारो रहस्य पुराणों में भरे पड़े है। शिव पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खुंड नाम से एक अलग ही अध्यायी है यहां की महिमा का गुणगान किया गया है यह तक पहुंच कर ध्यान करने वालो को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारतीयों का यह प्रमुख स्थल है यह की जाने वाली तपस्या तुरंत ही मोक्ष प्रदान करने वाली होती है.

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वैज्ञानिकों  का मत

कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं। यह पर्वत मानव निर्मित एक विशालकाय पिरामिड है, जो एक सौ छोटे पिरामिडों का केंद्र है। रामायण में भी इसके पिरामिडनुमा होने का उल्लेख मिलता है।
यति यानी हिम मानव को देखे जाने की चर्चाएं होती रहती हैं। इनका वास हिमालय में होता है। लोगों का कहना है कि हिमालय पर यति के साथ भूत और योगियों को देखा गया है, जो लोगों को मारकर खा जाते हैं।

कोई भी मनुष्य कैलाश के शिकार पर नहीं चढ़ पाया

आज तक कोई भी मनुष्य कैलाश के शिकार पर नहीं चढ़ पाया। जहा एक तरफ दुनिया भर के पर्वता रोहियों ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर फ़तह कर ली है. जिसकी ऊंचाई 8840 Meters है वहीं दूसरी तरफ तमाम कोशिशों के बादजूद भी आज तक कोई भी मनुष्य या पर्वता रोहि कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया। जिसकी ऊंचाई 6638 meter है जबकि माऊंट कैलाश की ऊंचाई माउंट एवेरेस्ट से 2210 Meters काम है.

माउंट कैलाश पर चढ़ने पर रोक

अब माउंट कैलाश पर चढ़ने पर रोक लगा दी गयी है। पर उस से पहले इस पर चढ़ने के कई प्रयास किये गए। पर कोई भी मनुष्य सफल नहीं हो पाया। आखिर कैलाश पर्वत पर कोण रोक देता है पर्वत रोहियों के पाऊं। आखिर क्यों घवराते है पर्वत रोहि माउंट कैलाश पर जाने से, पर्वत रोहियों का क्या का कहना है माउंट कैलाश के बारे में, कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत नहीं है, तब भी यह अजय है

 

रहस्यमयी  है कैलाश

कैलाश पर्वत के अनसुलजे रहस्यों को आज तक कोई भी सुलजा नहीं पाया है ! कई वैज्ञानिको ने भी कैलाश पर्वत के रहस्यों का पता लगाना चाहा ! लेकिन उन्हें ऐसी कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं हुयी ! जिनसे कैलाश पर्वत के राज़ खुल सके ! कैलाश पर्वत अपने आप में एक रहस्य बन चूका है ! लोगो का मानना ये भी है की क्या भगवान शिव और पार्वती आज भी कैलाश पर्वत में निवाश करते है ! ये बात सच है या झूट ये कोई नही जानता ! लेकिन कैलाश पर्वत के अन्दर ऐसा कुछ तो मोजूद है ! जिस कारण आज तक ये पर्वत एक रहस्य बना हुआ है !

माना जाता है की कैलाश पर्वत के चारो और अनेक अलोकिक शक्तिया निवाश करती है ! कई लोगो का मानना है की कैलाश पर्वत के आसपास समय की गति बढ़ जाती है ! कैलाश पर्वत की चडाई करना आम लोगो की बस की बात नहीं है ! इस लिए वहा जाने वाले लोग दूर से ही कैलाश पर्वत को नमन करते है ! कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर कदम बढ़ाने पर दिव्यता का अहसास होता है ! ऐसा लगता है मनो एक अलग ही दुनिया में आ गए हो !

सालो से लोग कैलाश पर्वत की परिक्रमा लगाने के लिए दूर-दूर आते है ! माना जाता है जो भी इस पर्वत के 108 बार परिक्रमा लगा लेता है ! उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ! लेकिन आज तक कोई भी इस पर्वत के इतने चक्कर नहीं लगा पाया है ! कैलाश पर्वत का एक चक्कर लगाना भी आसान नहीं है तो 108 तो बहुत दूर की बात है ! इस लिए तिब्बती लोग इस परिक्रमा का 3 और 13 परिक्रमा का महत्व मानते है ! तिब्बतियों का मानना है की यहाँ परिक्रमा लगाने से लोग अपने जीवन में किये गए पापो का प्राश्चित करते है !

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