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महर्षि सुमंतु ने श्राद्ध से होने वाले लाभ के बारे में बताया है कि ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए

भारत में 5 सितंबर यानी कल से पितृ पक्ष की शुरूआत हो रही है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस बार पितृ पक्ष की अवधि 15 दिनों तक ही रहेगी। इस दौरान हिन्दू अपने पितरों को श्रृद्धांजलि देते हैं जिसमें मुख्य रूप से अपने पितरों को याद करते हुए खाना अर्पित किया जाता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध और कनागत भी कहा जाता है जो अक्सर भद्रापद महीने में अनंत चतुर्दशी के बाद आते हैं। इस साल श्राद्ध 5 सितंबर से शुरू होकर 19 सितंबर तक चलेंगे। हिन्दू श्राद्ध को काफी अहम मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितर मृत्यु च्रक से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। श्राद्ध कर वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों और मृत रिश्तेदारों के प्रति अपने ऋृण को चुका सकती है।

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क्या है श्राद्ध का महत्व

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, हमारी तीन पूर्ववर्ती पीढ़ियां पितृ लोक में रहती हैं, जिसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का एक क्षेत्र माना जाता है। जिस पर मृत्यु के देवता यम का अधिकार होता है। ऐसा माना जाता है कि अगली पीढ़ी में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पहली पीढ़ी उनका श्राद्ध करके उन्हें भगवान के करीब ले जाती है। सिर्फ आखिरी तीन पीढ़ियों को ही श्राद्ध करने का अधिकार होता है।

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में थी तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। हालांकि कर्ण भोजन के लिए खाना तलाश रहे थे। उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि क्यों उन्हें भोजन की जगह सोना दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। इसके बाद कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उसकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और उसे 15 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उसने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें खाना-पानी दान किया। 15 दिन की इस अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।

क्यों जरूरी है श्राद्ध देना?

मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

क्या दिया जाता है श्राद्ध में?

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध में कौओं का महत्त्व

कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

पितृ पक्ष कैलेंडर
श्राद्ध 5 सितंबर से लेकर 19 सितंबर चलेगा। पितृ पक्ष के कैलेंडर के अनुसार आप इस प्रकार इस अवधि का पालन कर सकते हैं।

5 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध
6 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध
7 सितंबर – द्वितीया श्राद्ध
8 सितंबर – तृतीया श्राद्ध
9 सितंबर – चतुर्थी श्राद्ध
10 सितंबर – महा भरानी, पंचमी श्राद्ध
11 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
12 सितंबर – सप्तमी श्राद्ध
13 सितंबर – अष्टमी श्राद्ध
14 सितंबर – नवमी श्राद्ध
15 सितंबर – दशमी श्राद्ध
16 सितंबर – एकादशी श्राद्ध
17 सितंबर – द्वादशी श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध
18 सितंबर – माघ श्राद्ध, चर्तुदशी श्राद्ध
19 सितंबर – सर्वपितृ अमावस्या

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By –प्रियंका शर्मा,बिलासपुर हिमाचल प्रदेश  ( एडमिन हिमाचली रिश्ता डॉट कॉम )

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