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भगवान शिव के सच्चे भक्तो को सावन माह की मासिक शिवरात्री की शुभ कामनाए – ॐ नमः शिवाये

baijnath shiv temple
Shiva Temple Baijnath,Kangra HP

हिन्दू कैलेण्डर के बारह मासों में से सावन का महीना अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. ऎसा लगता है मानों प्रकृति में एक नई जान आ गई है. वेदों में मानव तथा प्रकृति का बडा़ ही गहरा संबंध बताया गया है. वेदों में लिखी बातों का अर्थ है कि बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ तथा धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं. इन मंत्रों को पढ़ने से व्यक्ति को सुख तथा शांति मिलती है. सावन में बारिश होती है. इस बारिश में अनेक प्रकार के जीव-जंतु बाहर निकलकर आते हैं. यह सभी जन्तु विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालते हैं. उस समय वातावरण ऎसा लगता है कि जैसे किसी ने अपना मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरम्भ किया हो.

जीव-जन्तुओं की भाषा का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि जिस प्रकार बारिश होने पर जीव-जन्तु बोलने लगते हैं उसी प्रकार व्यक्ति को सावन के महीने से शुरु होने वाले चौमासों(चार मास) में ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ सुनना चाहिए. धर्मिक दृष्टि से समस्त प्रकृति ही शिव का रुप है. इस कारण प्रकृति की पूजा के रुप में इस माह में शिव की पूजा विशेष रुप से की जाती है. सावन के महीने में वर्षा अत्यधिक होती है. इस माह में चारों ओर जल की मात्रा अधिक होने से शिव का जलाभिषेक किया जाता है.

आज सावन मास की शिवरात्रि है।

manimahesh temple
Manimahesh Lake ,Bharmour,Chamba HP

आज सावन मास की शिवरात्रि है। आज सुबह से ही शिवालयों में लोग महादेव का जलाभिषेक कर रहे हैं। हर ओर हर हर महादेव और ओम नम: शिवाय की गूंज हो रही है। महाशिवरात्रि के बाद सावन शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए सबसे बड़ा दिन होता है। इस दिन भगवान शिव का गंगाजल और गाय के दूध से अभिषेक किया जाता है। लोग सावन शिवरात्रि का व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं। हिन्दू धर्म में दो शिवरात्रियों का बड़ा महत्व हैं। इसमें पहली महाशिवरात्रि है और दूसरी सावन शिवरात्रि। इस वर्ष सावन शिवरात्रि आज 06 अगस्त दिन शुक्रवार को है। सावन शिवरात्रि के दिन सभी शिव मंदिरों में सुबह से ही भक्त अपने आराध्य के दर्शन कर रहे हैं। शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी पत्र, मदार पुष्प और मौसमी फल आदि अर्पित किया जा रहा है। इस अवसर को कोई भी शिव भक्त गंवाना नहीं चाहेगा। हर कोई सावन शिवरात्रि पर प्रभु की कृपा प्राप्त कर स्वयं को कृतार्थ करना चाहेगा।

सावन माह की विशेषता | Speciality of Shravan Month

kathgarh mahadev temple
Kathgarh Mahadev Kangra

हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन किया जाता है. इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है. भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था. अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था.

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में जन्म लिया. इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया. यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए. भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखे जाने लगे.

शिव पूजन क्यों किया जाता है | Why Shiv Pujan is Done

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Kailash Parvat,Tibbet

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था. इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया. जिस माह में शिवजी ने विष पिया था वह सावन का माह था. विष पीने के बाद शिवजी के तन में ताप बढ़ गया. सभी देवी – देवताओं और शिव के भक्तों ने उनको शीतलता प्रदान की लेकिन शिवजी भगवान को शीतलता नहीं मिली. शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया. इससे उन्हें शीतलता मिल गई.

ऎसी मान्यता भी है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इन्द्र ने भी बहुत वर्षा की थी. इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली. इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है. सारा सावन, विशेष रुप से सोमवार को, भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद पूरे वर्ष में यह दूसरा अवसर होता है जब भग्वान शिव की पूजा बडे़ ही धूमधाम से मनाई जाती है.

कैसे की जाती है श्रावण के महीने में महादेव की पूजा | Mahadev Pujan

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Kedarnath Temple

श्रावण के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरुआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

  • महादेव का अभिषेक :- महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।
  • बेलपत्र और शमीपत्र :- भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और शमीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी- तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
  • बेलपत्र ने दिलाया वरदान : बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। श्रावण महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।

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