पराशर झील:- मंडी जिला से 49 किमी की दूरी पर
हिमाचल के झीलों की श्रृखला में आज आपको बता रही हु ,मंडी स्थित पराशर झील के बारे मेंपैगोडा शैली में तीन मंजिला एक मंदिर के साथ पराशर ऋषि को समर्पित एक मंदिर और एक प्राकृतिक झील है। यह झील समुद्र तल से 2730 मी ऊंचाई पर है। कहा जाता है इस स्थान पर पराशर ऋषि ने तपस्या की थी। यह मंदिर तेरहवीं शताब्दी में राजा बाणसेन ने बनाया था। इस झील में एक तैरता हुआ टापू है जिसे स्थानीय भाषा में टाहला कहा जाता है और इस झील की गहराई कोई नहीं माप पाया है।
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लोकल लोगों का कहना है कि कईं बार तूफान से बड़े-बड़े पेड़ झील में गिर जाते हैं और वो बिना कोई निशान छोड़े झील में गायब हो जाते हैं। यहाँ पहुंचने के लिए वैसे तो सड़क है लेकिन लोकल बसें आपको मंडी से 35 किमी बग्गी तक पहुंचा देंगी। उसके बाद या तो आप प्राइवेट गाड़ी लेकर या फिर पैदल 8-9 किमी चलकर पहुंच सकते हैं।
यहाँ दिसम्बर से मार्च तक लगभग बर्फ रहती है। मंदिर जाने वाले लोग झील के आसपास लगी घास देवता का शेष समझकरर रखते हैं जिसे बर्रे कहते हैं और छोटे पत्तों को जर्रे कहते हैं और मंदिर में भी प्रसाद के साथ यह पत्तियां दी जाती हैं। पराशर ऋषि वशिष्ठ ऋषि के पीते और मनुशक्ति के पुत्र हैं। झील के साथ बने इस मंदिर में पराशर ऋषि, भगवान शिव, विष्णु और माँ दुर्गा की पत्थर की बनी मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों के सामने लोग मनोकामना करते हैं और पुजारी चावल के दाने हाथ में लेकर खड़ा होता है। ![](https://beingpahadi.com/wp-content/uploads/2017/06/parashar-jheel-mandijpg.jpg)
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Prashar Lake:Surrounded by the Dhauladhar ranges in Kullu Valley is a blue-water lake called Prashar. Prashar Lake is a well-kept secret in the Mandi district of Himachal Pradesh. The trek follows a charming trail through a forest and several rivulets. Meanwhile, one can enjoy the local culture as the trail goes through villages as well. The trek offers a 180 degree view of the Dhauladhar, Pir Panjal and Kinnaur mountain ranges.
अगर दाने 1,3,5 आए तो मनोकामना पूरी होगी, नहीं तो नहीं होगी। मनोकामना पूरी होने पर लोग बकरे की बली देते हैं। कहा जाता है अगर इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती है तो पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं। गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ ही किलोमीटर दूर है। यह पूजा राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज कईं वर्ष बाद भी हो रही है। पराशर झील के पास हर साल आषाढ मास की संक्रांति व भाद्रपद के कृष्णपक्ष की पंचमी को मेले लगते हैं। भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
पराशर स्थल से कई किलोमीटर दूर कमांदपुरी में पराशर ऋषि का भंडार है जहां उनकी पांच मोहरे हैं। यहां भी अनेक श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते है।
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