घर में एक चलती बोलती लक्ष्मी पानी भरती है
अन्नपूर्णा बनके भोजन बनाती है
गृहलक्ष्मी बन कर कुटुम्ब सम्भालती है
सरस्वती बन कर बच्चों को शिक्षा देती है
दुर्गा बनकर संकटों का सामना करती है
कालिका, चण्डी बन कर घर का रक्षण करती है
उसकी पूजा ना सही परंतु स्त्री होने का सम्मान ज़रूरी है
देवी को मंदिर में ही नहीं अपने मन में भी बसाइए
मूर्ति के साथ जीवित स्त्री का भी आदर करें इसी में नवरात्रि उत्सव का सही सार है
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