होली का त्यौहार हो और बरसाना की होली की बात ना हो, भला ऐसे कैसे संभव है..कहते हैं जिसने यहां की लठ्ठमार होली नहीं खेली तो उसने कुछ नहीं खेला,ब्रज की होली (Brij Ki Holi) दुनियाभर में फेमस है। ब्रज क्षेत्र में होली पर कई परम्पराएं है। जिन्हें देखने के लिए दुनियाभर से लोग होली पर ब्रज प्रदेश में आते है।
ब्रजमण्डल भारत में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली और लीला भूमि होने से ब्रज की चौरासी कोस की भूमि अपने दिव्य आध्यात्मिक आलोक से धर्म-प्राणजनों को आत्मविभेार करती है। ब्रजमण्डल में स्थ्ति बरसाना कृष्ण नज्मस्थली मधुरा से लगभग 44 किमी. की दूरी पर है। बरसाना का प्राचीन नाम बृहत्सान या वृषभानपुर था।
जब भी होली का जिक्र आता है तो ब्रज की होली का नाम सबसे पहले लिया जाता है, क्योंकि होली की मस्ती की शुरुआत इसी ब्रज की पावन धरती से हुई थी। रास रचैया भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का मंचन भी तो यहीं हुआ था।
क्या है इसके पीछे की कहानी
दरअसल, बरसाना राधा के गांव के रूप में जाना जाता है. वहीं 8 किलोमीटर दूर बसा है भगवान श्रीकृष्ण का गांव नंदगांव. इन दोनों गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
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इसके पीछे मान्यता है कि बरसाना श्रीकृष्ण का ससुराल है और कन्हैया अपनी मित्र मंडली के साथ ससुराल बरसाना में होली खेलने जाते थे. वो राधा व उनकी सखियों से हंसी ठिठोली करते थे तो राधा व उनकी सखियां नन्दलाल और उनकी टोली (हुरियारे) पर प्रेम भरी लाठियों से प्रहार करती थीं. वहीं श्रीकृष्ण और उनके सखा अपनी अपनी ढालों से बचाव करते थे. इसी को लठमार होली का नाम दिया गया. पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। नंदगाँव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फ़िर शुरु हो जाते हैं। इस दौरान भाँग और ठंडाई का भी ख़ूब इंतज़ाम होता है। कीर्तन मण्डलियाँ “कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी”, “फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर” और “उड़त गुलाल लाल भए बदरा” जैसे गीत गाती हैं। कहा जाता है कि “सब जग होरी, जा ब्रज होरा” याने ब्रज की होली सबसे अनूठी होती है।
जेठ और भाभी की होली (Jeth Bhabhi Ki Holi)
सम्मान के वजह से जेठ यानि पति के बड़े भाई के साथ महिलाएं होली नहीं खेलती। लेकिन, मांट के गांव जाबरा में जेठ और बहु की होली काफी फेमस है। कहा जाता है कि राधा जी ने बलराम जी के संग होली खेली थी। श्रीकृष्ण के बड़े भाई और ब्रज के ठाकुर बलराम ने जेठ होकर भी राधा से भाभी और देवर के समान होली खेलने की इच्छा जताई थी। यह सुन कर राधा विचलित हो गई। तब कृष्ण ने कहा कि वे त्रेता युग में बलराम लक्ष्मण थे और आप सीता के साथ रूप में उनकी भाभी। इस नाते से भाभी कह दिया होगा। तब से यहां जेठ और भाभी के बीच होली खेलने की परम्परा चल रही है। भाभी अपने जेठ पर जमकर रंग डालती है।
माना जाता है शुभ
– लठमार होली फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है.
– मान्यता है कि बरसाने की औरतों (हुरियारिनें) की लाठी जिसके सिर पर छू जाए, वह सौभाग्यशाली माना जाता है.
– इस दौरान श्रद्धालु नेग में हुरियारिनों को रुपये और गिफ्ट भी देते हैं.
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