जिस व्यक्ति पर शनिदेव की कृपा हो जाती है वह रंक से राजा बन जाता है। देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं।आज हम आपको शनिदेव के ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बता रहे है जिनके दर्शन करने से व्यक्ति को शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। शनि एक ऐसा नाम है जिसे पढ़ते-सुनते ही लोगों के मन में भय उत्पन्न हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शनि की कुदृष्टि जिस पर पड़ जाए वह रातो-रात राजा से भिखारी हो जाता है और वहीं शनि की कृपा से भिखारी भी राजा के समान सुख प्राप्त करता है। यदि किसी व्यक्ति ने कोई बुरा कर्म किया है तो वह शनि के प्रकोप से नहीं बच सकता है।
दिल्ली से मथुरा जाते हुए 128 कि.मी. दूर कोसीकलां पर भगवान शनिदेव का मंदिर स्थित हैं।उत्तर प्रदेश में ब्रजमंडल के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर कोसी से 6 कि.मी. दूर अौर नंद गांव के समीप है। यह मंदिर अन्य शनिमंदिरों में से एक हैं।सके आस-पास नंदगांव, बरसाना और श्री बांकेबिहारी मंदिर भी है। कहा जाता है कि यहां की परिक्रमा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। माना जाता है कि यहां पर शनिदेव को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए थे अौर वरदान दिया था कि जो भी भक्त इस वन की परिक्रमा करेगा उसे शनिदेव कभी भी कष्ट नहीं पहुंचाएंगे। माना जाता है कि यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के समय से यहां स्थापित है।
भगवान श्रीकृष्ण के कोयल के रूप में किये थे दर्शन
एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय सभी देवतागण उनके दर्शनों हेतु आए। उनके साथ शनिदेव भी आए लेकिन मां यशोदा अौर नंदबाबा ने शनिदेव की वक्र दृष्टि के कारण उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं करवाए। जिसके कारण शनिदेव बहुत आहत हुए। भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव के दुख को समझ कर उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए अौर कहा कि नंदगांव से उत्तर दिशा में एक वन है वहां जाकर उनकी भक्ति करने पर वह उन्हें स्वयं दर्शन देंगे।शनिदेव ने वहां जाकर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की। जिससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने शनिदेव को कोयले के स्वरुप में दर्शन दिए। इसी कारण इस वन का नाम कोकिलावन पड़ा। मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा था कि वह इसी वन में विराजे अौर यहां विराजने से उनकी वक्र दृष्टि नम रहेगी। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव से कहा था कि मैं राधा जी के साथ आपके बाईं दिशा में विराजमान रहूंगा। यहां आने वाले भक्तों की परेशानियां शनिदेव को दूर करनी होंगी अौर कलयुग में उनसे अधिक शनिदेव की पूजा की जाएगी। जो भी भक्त पूरी श्रद्धाभक्ति के साथ इस वन की परिक्रमा करेगा उसे शनिदेव कभी कष्ट नहीं पहुचाएंगें। कहा जाता है कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
माना जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु शनिदेव के कोप से राहत पाते हैं। बृज प्रदेश के निवासियों के अनुसार श्री कृष्ण ने जब शनि देव को दर्शन दिया था तब आशीर्वाद भी दिया था कि यह कोकिलावन उनका है, और जो कोकिलावन की परिक्रमा करेगा, शनिदेव की पूजा अर्चना करेगा, वह मेरे साथ ही शनिदेव की कृपा भी प्राप्त कर सकेगा।
गरूड़ पुराण में व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है । तो शनिमहाराज का भी कोकिलावन में विराजना भगवान कृष्ण के समय से ही माना जाता है । बीच में कुछ समय के लिए मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया था करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व में राजस्थान में भरतपुर महाराज हुए थे उन्होंने भगवान की प्रेरणा से इस कोकिलावन में जीर्ण-शीर्ण हुए मंदिर का अपने राजकोष से जीर्णोधार कराया । तब से लेकर आज तक दिन पर दिन मंदिर का विकास होता चला आ रहा है
इसलिए हर शनिवार लाखों श्रद्धालु कोकिलावन धाम की परिक्रमा करते हैं। कहते हैं कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करनी चाहिए इससे शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि शनिधाम कोकिला वन में बने सूर्य कुंड में स्नान के बाद शनिदेव के दर्शन करने वाले को शनिदेव की काली छाया नहीं सताती।
कोकिलावन धाम का यह सुन्दर परिसर लगभग 20 एकड में फैला है। इसमें श्री शनि देव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर , श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां दो प्राचीन सरोवर और गोऊ शाला भी हैं।
अब जानिए कैसे पहुंचे| कोसीकलां जाने के लिए मथुरा सबसे आसान रास्ता है। मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां गांव पड़ता है। कोसीकलां से एक सड़क नंदगांव तक जाती है। बस यहीं से कोकिला वन शुरू हो जाता है।
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