एक समय ऐसा भी था कि जब इस किले में अकल्पनीय धन रखा गया था जो इस किले के अंदर स्थित बृजेश्वरी मंदिर में बड़ी मूर्ति को चढ़ाया जाता था। इसी खजाने की वजह से इस किले पर कई बार हमला हुआ था और लगभग हर शासक चाहे वो आक्रमणकारी हो या देशी शासक सभी ने कांगड़ा किले पर अपना कब्ज़ा करने की कोशिश की थी। यहाँ आने वाले पर्यटक कांगड़ा किले के इतिहास के बारे में जानने के लिए बेहद उत्सुक रहते हैं और यह किला हिमाचल में आकर्षण का एक अनूठा नमूना है। आइये आपको काँगड़ा किले के इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं।
Kangra Fort History and Unknown Facts:
कांगड़ा किला, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा शहर के बाहरी इलाके में धर्मशाला शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह किला अपनी हजारों साल की भव्यता, आक्रमण, युद्ध, धन और विकास का बड़ा गवाह है। यह शक्तिशाली किला त्रिगर्त साम्राज्य की उत्पत्ति को बताता है जिसका उल्लेख महाभारत महाकाव्य में मिलता है। बता दें कि यह किला हिमालय का सबसे बड़ा और शायद भारत का सबसे पुराना किला है, जो ब्यास और उसकी सहायक नदियों की निचली घाटी पर स्थित है।
ये किला दो प्रमुख नदियों बानगंगा और मांझी नदी के पास बना हुआ है। ये किला दो विशाल और मोटी दीवारों से घिरा है।
इस किले से धौलाधार की सुंदर पहाड़ियों का नजारा भी देखने को मिलता है, जो किले की सुन्दरता में ओर भी चार चाँद लगा देती है.किले के पिछले हिस्से में बारूदखाना, मस्जिद , फांसीघर, सूखा तालाब, कपूर तालाब , बारादरी, शिव मंदिर तथा कई कुँए आज भी मौजूद है
किले में अन्दर जाने के लिए एक छोटे-सा बरामदा है, जो दो द्वारों के बीच में है। किले के प्रवेश पर की गयी शिलालेख के अनुसार इन दो द्वारों को सिख शासनकाल के दौरान बनवाया गया था
कांगड़ा किले के समीप पहाड़ी के शिखर पर जयंती माँ का एक मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण गोरखा सेना के सेनपाति, बड़ा काजी अमर सिंग थापा द्वारा करवाया गया था
महाभारत के समय से जुड़े है तार
कांगड़ा के किले का निर्माण लगभग 3500 साल पहले कटोच वंश के महाराजा सुशर्मा चंद्रा ने करवाया था। महाराजा सुशर्मा चंद्रा ने महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के साथ लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में पराजित होने के बाद उन्होंने त्रिगर्त साम्राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया और कांगड़ा किले को बनवाया था। बृजेश्वरी के मंदिर को कांगड़ा किले के अंदर बनवाया गया था। जिसकी वजह से इस किले को भक्तों द्वारा मूल्यवान उपहार और दान में मिलते थे।
हिन्दू शाशको ,मुगलो ,गोरखों ,सिखों से लेकर ब्रिटिश सरकार तक का कब्ज़ा रहा है
इतिहास से पता चलता है कि इस किले में अकल्पनीय खजाना था और जिसकी वजह से यह किला अन्य शासकों और विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा लूट करने की एक आम जगह बन गई थी।
कांगड़ा किले पर पहला हमला कश्मीर के राजा ने 470 ईस्वी में किया था। इस किले पर पहला विदेशी आक्रमण 1009 ईस्वी में गजनी के महमूद गजनवी ने किया था। इसके बाद उनके नक्शेकदम पर चलते हुए तुर्की सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले पर कब्जा किया और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी फिरोज शाह पदभार संभाला।
यह साफ़ नज़र आता है कि सभी विदेशी आक्रमणकारियों ने खजाने की तलाश में ही कांगड़ा किले पर हमला किया था। ऐसा बताया जाता है कि महमूद गजनवी ने अपने आक्रमण के दौरान किले अंदर मौजूद सभी लोगों को मार डाला था और अंदर मौजूद खजाना लूट लिया था।
1615 में अकबर द्वारा तुर्की शासकों से कांगड़ा फॉर्ट्स को पुनर्प्राप्त करने के 52 असफल प्रयासों के बाद उसके बेटे जहांगीर 1620 में किले पर कब्जा कर लिया था।
1758 में कटोच के उत्तराधिकारी घमंड चंद को अहमद शाह अब्दाली द्वारा जालंधर का राज्यपाल नियुक्त बनाया गया था। इसके बाद उनके पोते संसार चंद ने अपनी सेना को मजबूत किया और अंत में शासक सैफ अली खान को हराया और 1789 में अपने पूर्वजों के सिंहासन को फिर से हासिल कर लिया था। इस जीत से संसार चंद ने खुद को एक शक्तिशाली शासक साबित किया और पड़ोसी क्षेत्रों के कई राज्यों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। इसके बाद पराजित राजा तब गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा से से मदद मांगी और इसके बाद सिखों और कटोचो के बीच युद्ध हुआ और 1806 में गोरखा सेना ने एक खुले द्वार से किले में प्रवेश कर इस किले पर कब्जा कर लिया।
कांगड़ा किले पर हार के बाद संसार चंद को महाराजा रणजीत सिंह के साथ गठबंधन करना पड़ा। इसके बाद 1809 में गोरखा सेना पराजित हुई और अपनी रक्षा करने के चलते युद्ध से पीछे हट गई इसके बाद 1828 तक ये किला कटोचो के अधीन रहा क्योंकि संसार चंद की मृत्यु के बाद रंजीत सिंह ने इस किले पर कब्ज़ा था।
अंत में ब्रिटिशो ने सिखों के साथ हुए युद्ध के बाद इस किले पर अपना कब्जा जमा लिया।
कांगडा किले में मौजूद लक्ष्मी मंदिर का एक फ़ोटो
कांगड़ा किले का इतिहास युद्ध, खून, छल और लूट से भरा पड़ा है। इस किले की दीवार जब तक मजबूत रही जब तक की ये 4 अप्रैल, 1905 भूकंप में नहीं डूब गया
1905 में 4 अप्रैल की सुबह भूकंप ने ऐसी तबाही बरपाई थी कि चारों ओर सिर्फ तबाही के निशान दिख रहे थे। कांगड़ा से लेकर लाहौर तक आई इस त्रासदी में 28 हजार लोगों की जान चली गई थी
भूकंप के कारण कांगड़ा किला पूरी तरह से तहस-नहस हो गया था। गिरी हुर्द दीवारे देखकर तबाही का अंदाज खुद ही लगाया जा सकता है
1905 में आए भूकंप से कांगड़ा के ज्यादातर ऐतिहासिक भवन नष्ट हो गए थे। सभी बाजार पूरी तरह से तबाह हो चुके थे। कांगड़ा किला, कांगड़ा मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गए थे जबकि बैजनाथ मंदिर को आंशिक नुकसान पहुंचा था
कांगड़ा किले के बचे हुए अवशेषों आज भी अपना इतिहास दर्शाते हैं
रणजीत सिंह गेट -KANGRA FORT,HIMACHAL PRADESH
मुख्य मंदिर के साथ किले का सुरक्षा द्वार है, जिसे अँधेरी दरवाजा ( Dark Gate) कहा जाता था
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