“देखो आए गद्दी” Himachal Pradesh Poem
देखो रे भाई!
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
लेकर के अपनी काफिला,
वन,नदिया, पहाड़,
लांघते गए जो भी मिला,
मोहक ऊँचे पहाड़ों की
रोचकता संग लाए हैं.
देखो रे भाई!
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
पीठ पर लादे हुए अपना सामान,
खच्चर,घोड़े,
भेड़-बकरियों की संग लेकर
अनूठी दास्तान,
गलियों-सड़कों की रौनक बढ़ाने आए हैं..
देखो रे दोस्त !
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
भोले बाबा के दरबार में
हाथ जोड़कर,
पहाड़ी टोपी, लेकर लाठी, डालकर डोरा,
आए गर्म पट्टू ओढ़कर,
हिमाचल की संस्कृति को संजोकर रख पाए हैं,
देखो रे बंधु!
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
बारिश की न चिंता
न तूफां का डर है,
जहाँ रूक जाए काफिला,
ढले रात,
वहीं सितारों से भरे अंबर तले
इनका घर है,
दर्द और पीड़ा इन्हें देख घबराए हैं,
देखो रे साथी!
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
प्रकृति माँ की गोद में रहते,
न की कभी शिकायत जिंदगी से,
मुश्किलों का मुकाबला डट
कर करते,
फौलादी हौंसला ये पहाड़ों से
भर लाए हैं,
देखो रे मित्र!
भरमौर से गद्दी लोग आए हैं..
रचना : मनोज कुमार 'शिव'
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