शिव भगवान् को समर्पित परम्परा नुआला

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गद्दी समुदाय हिमाचल की संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है , अत्यधिक दुर्गम ,कठिन भोगोलिक परिस्थियों में कड़ी मेहनत करना अगर सीखनी है तो हिमाचल के गद्दी समुदाय से अच्छा कोई उदाहरण नही है | जितने सुंदर और सादे स्वभाब के गद्दी लोग होते है उतनी ही सुंदर इनकी परम्पराए और रीति रिवाज है ,ऐसी ही एक परम्परा है नुआला.

कहाँ कहां मनाया जाता है नुआला :

यू तो नुआला पुरे प्रदेश में मनाया जाता है लकिन चम्बा के सभी भागो जैसे भरमौर,चंबा ,पांगी,होली और धर्मशाला,काँगड़ा,पालमपुर आदि क्षत्रो के साथ साथ दिल्ली और चंडीगढ़ में बसे गददी समुदाय कि विभ्भिन्न कमेटियो के द्वारा इसका आयोजन किया जाता है

नुआले में गद्दी लोग भगवान शिव की पूजा करते है और भजन करते हुए रात भर नाचते है , पुराने समय में  पशु बलि की भी परम्परा थी लेकिन आजकल  पशु बलि के स्थान पर नारियल चड़ा कर  पूजा की जाती है, जिस पर जागरण होता है उसी तरह नुआला भी गद्दी समुदाय में बहूत महतवपूर्ण हैl सदियों पुराना इतिहास समेटे शिवभूमि चम्बा का भोले नाथ के साथ अनोखा साथ है। लगभग चम्बा के समस्त गांव में भोले के भगत नुआले का आयोजन करते है। कहा जाता है कि शिव सज-धज कर नुआले में आते है और चेले में शिव का संचार होने लगता है।

नुआले में इन नौ लोगों का होना जरुरी:

  • घर का मुखिया यानि आयोजक
  • जोगी
  • जजमान
  • एक कोटवाल
  • बटवाल
  • चार एचली गायक होते है।

नुआले की तेयारी

नुआले की शाम को जोगी अपनी पारपंरिक वेशभूषा में नुआले के आयोजक के घर पहुंचता है। और सबसे पहले जहा फूलमाला टाँगी जाती है उस जगह के नीचे गाय के गोबर का चोंका (पोछा) लगा कर पवित्र किया जाता है। फूलमाला को जोगी घर से तैयार कर के लाता है और उसके बाद जयकारा बोल के फूलमाला को छत के साथ टांगा जाता है।

32 कोष्ठक वाले मंडल से शिव पूजा 

अब फूलमाला के नीचे मंडल लिखा जाता है , जिसमे 32 खाने या कोष्ठक होते है ,जिनमे चावल,आटा, आदि अनाज रखे जाते है,मंडल के चारो और वेद और विच में कैलाश पर्वत बनाया  बनाया जाता है I  (मक्की के आटे से चारो तरफ लाइने और स्टार जैसे बना के लिखा जाता है) फिर मक्की के दानों का ढेर लगा के मंडल भर दिया जाता है और उसके ऊपर बबरू, बड़े आदि रख के मंडल को सजाया जाता है व दिया जलाया जाता है । दीये को पूरी रात जलाया जाता है। दीया पूरी रात जलता रखने के लिए रात भर दीये में तेल जोगी को डालना पड़ता है।शिव पूजा पारम्परिक धुप ,चावल,पुष्प टीका आदि से किया जाता है ,पूजा कि शुरुआत बैल से जो कि भगवान् शिव का वाहन माना जाता है I बाद में गोरा ,गणेश, शिव ,प्रथ्वी पूजन ,नव ग्रह आदि कि पुजा कि जाती है I

भेडू की बली या बजेरना

नुआले में भेडू कि बलि भी दी जाती है जिसमे आयोजक सबसे पहले बकरे से पैर धुलवाता है और फिर तीन बार भेडू के ऊपर पानी,चावल और पुष्प आदि छिडके जाते है , उसके बाद अन्य रिश्ते दार भी भी भेडू के ऊपर फुल आदि चढाते है I जैसे ही भेडू कांप कर अपने ऊपर चढ़ाये गये फुल आदि को निचे फेंक देता है उस प्रक्रिया को बजिरना कहा जाता है , जब भेडू बजीर जाता है तो ऐसा माना जाता है कि भोलेनाथ ने बाली सवीकार कर ली है I हालांकि कि कई बार ऐसा भी होता है कि भेडू पीठ नही झाड़ता है और उसे मनाने के लिए सभी लोग झुक कर प्राथना करते है और भूल चुक माफ़ करने कि फ़रियाद करते है I पीठ झाड़ते ही भेडू कि बलि दे दी जाती है और भेडू कि गर्दन और दायाँ बाजु मंडल में चड़ा दिया जाता है I आजकल बलि प्रथा बंद होने पर भेडू  के स्थान पर नारियल की बलि दी जाती है।

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स्थानीय शिव भजन या एहचलि गायन

अब आगे बन्दे (एहचलि गायक) फूलमाला के पास ही एक तरफ एक लाइन में ढोल, नगाड़ा के साथ बैठ जाते है व उनके सर पर टोपी या कपड़ा रख उन्हें पूजा जाता है। अब एचलि गायक एचलिया गाना धीरे-धीरे शुरू करते है। एचलियों में शिव-विवाह, राम-विवाह आदि के प्रसंगो को बड़ी मस्ती से गाया जाता है और लोग भी बड़े चाव से सुनते है। कुछ समय के बाद चेला कमणे (काँपने) के लिए चोला ढोरा पहन के तैयार हो जाता है व माला के पास ही चेले के बैठने के लिए चादर रखी जाती है चेला वहां बैठ के आँखे बंद कर ध्यान लगाना शुरू करता है, नुआले के दिन चेले का व्रत होता है। एचलि चलती रहती है और अब एचलि गायक भी पुरे जोश के साथ गाते है और नगाड़े का ढ़माका पूरे गांव में गूँजता है। बीच-बीच में जयकारे बोले जाते है। पूरा परिवार धूप की बत्ती लिए व हाथ जोड़ वही चेले के पास मौजूद रहता है। थोडा समय बीतने के बाद चेले में शिव का संचार होने लगता है और चेला काँपने लगता है व पुछ देने लगता है पुछ देते वक्त एचलि चेले द्वारा रोक दी जाती है ताकि पुछ को सुना जा सके और पुछ देने के बाद चेले द्वारा ही एचलि चला दी जाती है। लगभग 20-25 मिनट के बाद अंत में चेला परिवार, जोगी, बन्दे (एचलि गायक) आदि को आशीर्वाद देकर सामन्य हो जाता है।

एह्चली पर नृत्या

अब नुआले के अन्तः में सभी एचलि पर नाटी (नृत्य) करते है और एक दूसरे कि बेला बुलाते है चम्बा के लोगो को तो पता होगा कि बेला कैसे बुलाते है बाकी लोगो की जानकरी के किये बता दू की बेला बन्दे (एचलि गायक) को अपनी इच्छा अनुसार पैसे देकर बुलाई जाती है जिसकी बेला बुलानी हो उसका नाम एचलि गायक को बताते है फिर एचलि गायक उसका नाम लेकर गाते है कि उसने इसकी बेला बुलाई है इतने पैसे कि बेला और नृत्य करते है।



हिमाचल के अन्य जिलों के लोग का भी ये कहना है की एचलि के राग पर नाटी डालने का एक अलग ही अनुभव व आनंद प्राप्त होता है। एचलि पर लगभग 2-3 घंटे तक नृत्य होता है कई बार रात भर एचलि गायी जाती है अगर घर का मुखिया और अन्य लोग चाहे तो।

नुआले के तीन दिन बाद पूरे परिवार को बुला कर फूलमाला को लाल कपडे में बाँध कर व जयकारा बोल के वही छत से टाँग दिया जाता है उस फूलमाला को अगले नुआले तक नहीं निकाला जाता है।

इन विशेष अवसरों पर होता है नुआला :

  • नए गृह प्रवेश
  • विवाह,
  • किसी धार्मिक आस्था
  • शुभः काम या किसी की सुख़ण (मन्नत) पूरी होने के दौरान किया

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नुआले के बाद धाम

नुआले के बाद धाम  का आयोजन किया जाता है ,जिसमे सबसे पहले शिव को भोग लगाया जाता है बाद में आमंत्रित लोगो को भोजन खिलाया जाता है । यह धाम स्थानीय गददी धाम कि ही तरह होती है लेकिन इसमें बस एक और मासंहारी  व्यंजन होता है भेडू का मांस जो कि बलि स्वरुप दिया जाता है I



हिमाचली गायक सुनील राणा के इस गाने में शिव नुआले को संजीव चित्रित किया गया है

 

गद्दी नुआला

विडियो आभार :JMC Cassettes

Posted by Himachali Rishta.Com on Tuesday, December 20, 2016

एक अन्य नुआले में अहनचलियो पर नाचते शिव भक्त 

 

नुआला ।गद्दी समुदाय का अभिन्न हिस्सा ।हेरि लिया तुद भी

Posted by Himachali Rishta.Com on Wednesday, December 21, 2016

 

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