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प्यार और बचपन दोनों से ज्यादा जमाने में कुछ भी पाक-साफ नहीं हो सकता है. प्यार ‘त्याग’ मांगता है. प्यार तप है, प्यार तपस्या है. यह हर इंसान पर उसकी सोच के मुताबिक अलग-अलग यानी अपने-अपने नजरिए से निर्भर करता है कि, ‘प्यार’ किसकी नजर में क्या है? इन्हीं तमाम बातों को समझने-समझाने की कोशिश में, उम्र के अंतिम पड़ाव पर आ खड़े हुए 72 साल के रिटायर्ड एमबीबीएस डॉ. राजेंद्र कंवर ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया. किसी इंसान पर नहीं, बल्कि पत्नी की खुशी के लिए ‘सरकार’ को सब कुछ दान कर दिया है

प्यार का एक खूबसूरत मामला हिमाचल प्रदेश से सामने आया है,हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के हमीरपुर (Hamirpur) जिले में एक डॉक्टर ने अपनी करोड़ों के संपत्ति सरकार के नाम कर दी है। नादौन के रहने वाले रिटायर्ड डॉक्टर की पत्नी का निधन एक साल पहले ही हो गया था। कोई भी संतान न होने के चलते उनकी पत्नी की इच्छा थी कि सारी संपत्ति सरकार को वसीयत कर दी जाए, क्योंकि जो भी कमाया है, वह सरकारी नौकरी में रहते ही कमाया है। पत्नी की इसी इच्छा को पूरी करने के लिए डॉक्टर पति ने सरकार को संपत्ति दान कर दी है।

जोलसप्पड़ के गांव सनकर के 72 साल के डॉ. राजेंद्र कंवर और उनकी पत्नी कृष्णा कंवर दोनों सरकारी नौकरी करते थे। डॉक्टर राजेंद्र स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करते थे और उनकी पत्नी शिक्षा विभाग में। रिटायरमेंट के बाद दोनों की इच्छा थी कि उनकी कोई संतान न होने के चलते वे अपनी सारी प्रॉपर्टी सरकार के नाम कर देंगे। इसी बीच पत्नी कृष्णा का एक साल पहले निधन हो गया। जिनकी तमन्ना पूरी करते हुए पति ने संपत्ति दान कर दी।

डॉ. कंवर का जन्म 15 अक्तूबर, 1952 को धनेटा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. अमर सिंह और माता का नाम गुलाब देवी था। डॉ. राजेंद्र ने 1974 में MBBS की पढ़ाई इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज तत्कालीन समय में स्नोडेन अस्पताल शिमला (Shimla) से पूरी की। 3 जनवरी, 1977 को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भोरंज मे बतौर चिकित्सक ज्वॉइन किया। नौकरी के दौरान उन्होंने सेवा भाव के जज्बे के चलते प्रमोशन भी नहीं लिया। रिटायर होने के बाद भी वे हर दिन सैकड़ों मरीजों का इलाज करते हैं। वह कांगू वाले डॉक्टर के नाम से जाने जाते हैं।

क्या कहता है नियम : नायब तहसीलदार अतर सिंह से जब इसको लेकर बात की गई तो उन्होंने बताया कि हो सकता है कि ऐसी वसीयत हुई हो, लेकिन यह व्यक्तिगत और कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट होता है। व्यक्ति की मृत्यु के बाद संबंधित पटवार सर्कल में दर्ज करवा कर बाकायदा इसके इंतकाल के बाद ही वारिस इसका मालिक बन सकता है। इसके बारे में जिस व्यक्ति ने अपनी बिल दी होती है, वही अपनी इच्छानुसार इस पर कुछ बोल सकता है।

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