हिमाचल एक विविधताओं से भरा प्रदेश है ये हम सब भलीभांति जानते हैं और हर 10 किमी बाद भाषा और रीति-रिवाजों में कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिलता है। मुझे हाॅसटल में रहते हुए अलग-अलग जिलों और अलग-अलग क्षेत्रों के दोस्तों से मिलने का मौका मिला। उनसे मैं उनके रीति-रिवाजों और भाषा के बारे में लगातार जानती रहती थी।

Being Pahadi Pictureआज एक ऐसे गांव ले चलती हूँ जो जिला कुल्लु और शिमला की सीमा पर स्थित है। कुल्लु के अंतर्गत जिला की निरमंड तहसील के डियार गांव आता है जो कि जिला मुख्यालय से काफी दूर है। यह स्थान रामपुर से लगभग 60 किमी दूर है। मेरी एक दोस्त वहां से है तो उसके घर में कोई फंक्शन था उसने बताया था, तो ऐसे ही मैंने पूछ लिया उसे। उसने बताया कि उसकी मम्मी ने कोई मन्नत रखी थी तो उसके पूरा होने पर उन्होंने फंक्शन रखा था।

देव आगमन

जैसे हम निचले क्षेत्रों में जब कोई मन्नत या जिसे हम सुखना कहते हैं पूरी होती है तो जातरा देते हैं वैसे ही उनके गांव में इसे ‘जाच देना’ कहते हैं। यह एक दिन और एक रात का फंक्शन होता है। इस फंक्शन के लिए जिन भी देवी के पास सुखना की जाती है उनको निमंत्रण देकर घर बुलाया जाता है और गांव के लोगों और रिश्तेदारों को भी बुलाया जाता है। इस प्रकार एक सामुहिक भोज का भी आयोजन होता है।

जिस दिन फंक्शन होता है उससे पिछले दिन देवी माँ ढोल नगाड़े के साथ घर आतीं हैं। आयोजक देवी माँ का स्वागत करते हैं। स्वागत से खुश होकर माता नाचती हैं और सबको आशीर्वाद देती हैं। इस प्रकार स्वागत के बाद देवी माँ को स्थान दिया जाता है। मान्यता के अनुसार जहां भी देवी माँ को स्थान दिया जाता है वहां छत पर कोई नहीं जाता है इसलिए हमेशा देवी माँ को सबसे ऊंचे स्थान पर रखा जाता है। इस पूरे आयोजन में बकरे या भेडु की बलि दी जाती है जिसे रिठ कहते हैं।

Being Pahadi Imageयह हिमाचल में आमतौर पर देखा जा सकता है कि वहां लोग देवी-देवताओं को खुश करने के लिए बलि देते हैं। हालांकि पशु बलि पर रोक होने के बाद से मंदिरो में बलि नहीं दी जाती परन्तु लोगों की मान्यता है तो इसे हम अस्विकार भी नहीं कर सकते कि हमारे यहाँ यह नहीं होता है। हिमाचल के हर क्षेत्र में बलि का प्रचलन है तो इसे गलत न समझें।

रिठ यानी उस भेडु या बकरे पर फूल रखे जाते हैं और उस पर पानी डाला जाता है। जब तक वह रिठ कांपता नहीं है जिसे बिजणा कहते हैं, तब तक बलि से माँ खुश नहीं मानी जाती हैं। देवी माँ के साथ उनका चुना हुआ व्यक्ति यानी पुजारी जिसे गुर कहा जाता है, भी आता है। साथ ही आए हुए लोगों के लिए खाना बन रहा होता है।

नगाड़े की धुन पर नाचते लोग

खाना बनाने वाले लोगों को ग्रांईं कहते हैं। खाना बनाने के लिए आम बर्तन जैसे पतीला, तवा आदि प्रयोग किए जाते हैं। खाना बनाने के लिए मिट्टी खोद कर एक गहरी और चौड़ी नाली बनाई जाती है जिसे हम चर कहते हैं लेकिन निरमंड में इसे चूल कहते हैं। खाना बनाने के लिए जो लकड़ी प्रयोग की जाती है उसे छीड़ी और दलाठ कहते हैं जिसे निचले क्षेत्रों में छेई या समदां कहा जाता है। खाने में पनीर, राजमाह, सब्जी, रोटी और चावल रहते हैं और मीठे में ब्रेड का हलवा या फिर बूंदी या आलू का हलवा बनाया जाता है। खाना बहुत ही साधारण तरीके से पत्तलों पर परोसा जाता है।

Being Pahadi Picखाना खाने के बाद सब लोग मिलकर नाटी करते हैं। उस रात जागरण होता है जिसमें भाटण (ये प्रायः पंडितों की पत्नियां होतीं हैं।) आती हैं और कीर्तन करतीं हैं। सुबह 3-4 बजे तक कीर्तन किया जाता है और फिर पूजा की जाती है। देवी माँ का चुना हुआ व्यक्ति यानी गुर दिन में पूछ देता है जिसे यहाँ गुर छेरना कहते हैं। गुर सबको चावल या राई के दाने देता है जिसे परजैवल या पजैवर कहते हैं। मान्यता है कि अगर विसम संख्या यानी 1,3,5 आदि में ये दाने मिलते हैं तो देवी माँ खुश हैं और आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी। यदि सम यानी 2,4,6 आदि संख्या में परजैवल आती है तो मतलब अभी कुछ कमी रह गई है। जिसे पांच दाने मिलते हैं यानी पंजा आता है तो उसे बहुत शुभ माना जाता है। जैसा कि बताया कि सम संख्या में अगर परजैवल आती है तो अच्छा नहीं मानते तो फिर गुर से पूछा जाता है कि क्या कमी है और उस पय गुर उसके उपाय बताता है। गांव के सभी लोग आते हैं और अपने प्रश्न पूछते हैं और श्रद्धा अनुसार चढावा चढाते हैं।

प्रसन्ता से झूमती और आशीर्वाद देती देवी माँ

इसके उपरांत ढोल नगाड़े पर नाटी की जाती है। साथ ही दिन के लिए खाना बन रहा होता है जिसमें रिठ यानी जो बलि दी गई होती है उस बकरे या भेडु को बनाया जाता है और जो शाकाहारी खाना पसंद करते हैं उनके लिए अलग से खाना बनता है। सबको खाना खिलाया जाता है और फिर विदाई का समय आता है। देवी माँ खुशी जाहिर करने के लिए नाचती हैं और सबको आशीर्वाद देतीं हैं। क्योंकि देवी माँ की पालकी पैदल ही ले जाई जाती है तो आयोजक आधे रास्ते तक देवी माँ की पालकी छोड़ने जाते हैं।

यह लेख मैंने अपनी दोस्त से हुई बातचीत के आधार पर लिखा है। अगर इसमें किसी भी प्रकार की कोई भी त्रुटि रहती है तो कृपया क्षमा कीजिए और हो सके तो उसे ठीक करके हमें अवश्य भेजें।

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