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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

नवदुर्गा: माँ दुर्गा के 9 रूप ।


Shardiya Navratri 2021 : जानिए मां दुर्गा के नौ रूप और उनके नामों का रहस्य  ! | TV9 Bharatvarsh

देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है,और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है।असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है। नवरात्रि पर्व की 9  रातें देवी माँ के 9 विभिन्न रूपों को को समर्पित हैं जिसे नवदुर्गा भी कहा जाता है।

नवरात्रि उत्सव के दौरान माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान एवं पूजा की जाती है। जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री है| शैल का अर्थ है शिखर| शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है।आमतौर पर यह समझा जाता है कि देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री है। लेकिन यह बहुत ही निम्न स्तर की सोच है। किन्तु इसका योग के मार्ग पर वास्तविक अर्थ है -चेतना का सर्वोच्चतम स्थान। यह बहुत दिलचस्प है कि जब ऊर्जा अपने चरम स्तर पर है तभी आप इसका अनुभव कर सकते हैं| इससे पहले कि यह अपने चरम स्तर पर न पहुँच जाए तब तक आप इसे समझ नहीं सकते। क्योंकि चेतना की अवस्था का यह सर्वोत्तम स्थान है जो ऊर्जा के शिखर से उत्पन्न हुआ है। यहाँ पर शिखर का मतलब है,हमारे गहरे अनुभव या गहन भावनाओं का सर्वोच्चतम स्थान। जब आप 100% गुस्से में होते हैं तो आप महसूस करेंगे कि गुस्सा आपके शरीर को कमजोर कर देता है। दरअसल हम अपने गुस्से को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करते, जब आप 100 % क्रोध में होते हैं,यदि पूरी तरह से क्रोध को आप व्यक्त करें तो आप इस स्थिति से जल्द ही बाहर निकल सकते हैं। जब आप 100 प्रतिशत किसी भी चीज में होते हैं, तभी उसका उपभोग कर सकते हैं ,ठीक इसी तरह जब क्रोध को आप पूरी तरह से व्यक्त करेंगे तब ऊर्जा की उछाल का अनुभव करेंगे और साथ ही तुरंत क्रोध से बाहर निकल जाएंगे। क्या आपने देखा है कि बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं? जो भी वे करते हैं, वे 100% करते हैं।अगर वे गुस्से में हैं, तो वे उस पल में 100% गुस्से में हैं, और फिर तुरंत कुछ ही मिनटों के बाद वे उस क्रोध को भी छोड़ देते हैं।अगर वे नाराज हो जाते हैं, तो भी वे थक नहीं जाते हैं। लेकिन अगर आप गुस्सा हो जाते हैं तो आपका गुस्सा आपको थका देता है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अपना क्रोध 100% व्यक्त नहीं करते हैं। अब इसका मतलब यह नहीं है कि आप हर समय नाराज हो जाएँ। तब आपको उस परेशानी का भी सामना करना पड़ेगा। जिसकी वजह से क्रोध आता है।

माँ शैलपुत्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:  मन्त्र के जाप से आप माँ दुर्गा के पहले स्वरुप माँ शैलपुत्री की आराधना कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ शैलपुत्री का पसंदीदा रंग पीला है तो आप पीले रंग के वस्त्र में माँ शैलपुत्री की पूजा कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं

2.ब्रह्मचारिणी

 ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है – एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि तुच्छता, निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं न कि कुछ सीमित के समक्ष। वासना हमेशा सीमित बँटी हुई होती है, चेतना का मात्र सीमित क्षेत्र में संचार। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्व-व्यापक चेतना है।

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: मन्त्र के जाप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ ब्रह्मचारिणी का पसंदीदा रंग हरा है तो आप हरे रंग के वस्त्र में माँ की पूजा कर माँ ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न कर सकते हैं

चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है? चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है।

एक ऐसी स्थिति जिसमे हमारा अस्त-व्यस्त मन एकाग्रचित्त हो जाता है। अपने मन से भागे नहीं – क्योंकि यह मन एक प्रकार से दैवीय रूप का प्रतीक, अभिव्यक्ति है। यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी मौजूद है। सार यह कि सबको एक साथ लेकर चलें – चाहे ख़ुशी हो या गम – सब विचारों, भावनाओं को एकत्रित करते हुए एक विशाल घण्टे -घड़ियाल के नाद की तरह। देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है।

माँ चंद्रघंटा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:  मन्त्र के जाप से आप माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा का आवाहन कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा को भूरा रंग बहुत भाता है तो आप भूरे रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

4.कूष्माण्डा

भारतीय परंपरा के अनुसार लौकी, कद्दू का सेवन मात्र ब्राह्मण, महा ज्ञानी ही करते थे। अन्य कोई भी वर्ग इसका सेवन नहीं करता था। लौकी, कद्दू आपकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को बढ़ाते है। लौकी, कद्दू के गुण के बारे में ऐसा कहा गया है, कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखती है, और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करती है। यह इस धरती पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्ज़ी है। जिस प्रकार अश्वथ का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन देता है उसी प्रकार लौकी, कद्दू ऊर्जा को ग्रहण या अवशोषित कर उसका प्रसार करते है।

सम्पूर्ण सृष्टि – प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष , अभिव्यक्त व अनभिव्यक्‍त – एक बड़ी गेंद , गोलाकार कद्दू के समान है। इसमें हर प्रकार की विविधता पाई जाता है – छोटे से बड़े तक।

‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है,जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं,देवी माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह भी है, कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं।

कुछ क्षणों के लिए बैठकर अपने आप को एक कद्दू के समान अनुभव करें। इसका यहाँ पर यह तात्पर्य है कि अपने आप को उन्नत करें और अपनी प्रज्ञा, बुद्धि को सर्वोच्च बुद्धिमत्ता जो देवी माँ का रूप है, उसमें समा जाएँ। एक कद्दू के समान आप भी अपने जीवन में प्रचुरता बहुतायत और पूर्णता अनुभव करें। साथ ही सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें। इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है।

माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नम:  के जाप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ कूष्मांडा को नारंगी रंग बहुत भाता है तो आप नारंगी रंग के वस्त्र धारण कर उनकी आराधना कर सकते हैं

5. स्कंदमाता

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी : माँ स्कंदमाता

देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति हैं , जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है.इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रोयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पड़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग करते। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविज़न ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वो खराब हो जाए तो आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविज़न ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है तो आप उसे यदि ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मात्र देवी का एक और रूप है।

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने अगर कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौनसा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।

स्कंदमाता की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमा‍तायै नम:  के जाप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ स्कंदमाता को सफ़ेद रंग बहुत भाता है तो आप सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

6. कात्यायनी

हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियां अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है।

सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।

क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है ? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। आप सिर्फ़ ऐसा मत सोचिये कि क्रोध मात्र एक नकारात्मक गुण या शक्ति है। क्रोध का अपना महत्व, एक अपना स्थान है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है,और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान, अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है अतः वह उचित है! किंतु अगर आप गहराई में, सूक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है। अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है, वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है।

आपने बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुना होगा। कुछ लोग इसे प्रकृति का प्रकोप भी कहते हैं। उदाहरणतः बहुत से स्थानों पर बड़े – बड़े भूकम्प आ जाते हैं या तीव्र बाढ़ का सामना करना पड़ता है। यह सब घटनाएँ देवी कात्यायनी से सम्बन्धित हैं। सभी प्राकृतिक विपदाओं का सम्बन्ध माँ के दिव्य कात्यायनी रूप से है। वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं। माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है,जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वो रूप है, जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

माँ कात्यायनी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:  के जाप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ कात्यायनी को लाल रंग बहुत भाता है तो आप लाल रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

7. कालरात्रि

माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि।

यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है।

माँ कालरात्रि की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:  जाप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं

ऐसा माना जाता है कि माँ कालरात्रि को नीला रंग बहुत पसंद है तो आप नीले रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

8. महागौरी

महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर या किनारे हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान है, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान,शांत है – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।क्यों है,देवियों के नौ रूप?

यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म तरह से, सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिये पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसीलिये बुद्ध ने कहा है, आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं, जरा बैठिये और ध्यान करिये। ईश्वर के विषय में न सोचिये। शून्यता में जाईये, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गये, तो अगला कदम वो है, जहां आपको सभी विभिन्न मन्त्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वो सभी जागृत होंगी।

सभी पूजा, ध्यान के साथ शुरू होती हैं, और हजारों वर्षों से इसी परम्परा या प्रथा का अनुसरण किया जाता है।ऐसा,पवित्र-आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिये, उनका आह्वान करने के लिये किया जाता है। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधताएँ हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं,और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़ी है।

इन सभी तत्वों का इस धरती पर आह्वान,जागरण और पूजन करना,यही नवरात्रि पर्व का ध्येय है।

माँ महागौरी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम  के जाप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ महागौरी को गुलाबी रंग बहुत भाता है तो आप गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर उनकी पूजा कर सकते हैं

9.सिद्धिदात्री

देवी के नवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं, ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें।

माँ सिद्धिदात्री आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं ताकि आप सबकुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का क्याअर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र, से ही, बिना किसी कार्य किये आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना यही सिद्धि है।

आपके वचन सत्य हो जाएँ और सबकी भलाई के लिए हों। आप किसी भी कार्य को करें वो सम्पूर्ण हो जाए – यही सिद्धि है। सिद्धि आपके जीवन के हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है। यही देवी सिद्धिदात्री की महत्ता है।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम  के जाप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।

ऐसा माना जाता है कि माँ सिद्धिदात्री का मनपसंद रंग बैंगनी है तो इस दिन बैंगनी रंग पहनना बहुत शुभ माना जाता है

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