सड़कां हुण वणियां, पहलें रस्ते चलदे थे दिन रात।
निड़र होई जांदे थे, सियाला हो चाहे वरसात।।
हंड़दे थे लमियां वतां, चढदे उतरदे थे कुआलू।
ज़ालू थकी जांदे थे, वसोणे तांईं थे टिआलू।।
कुथी थीं घणी वसदियां, कुथी दूरा तईं नगैड़ियां।
टपणा पोंदे थे नालू, कुथी खङ्डां वड़ियां गहरियां।।
रस्ते वणाई चणाई, भले लोक पुन थे कमांदे।
प्यास बुझाने तांईँ, धरमी प्याऊ थे लगांदे।।
अज दिनां दी दूरियां घटी घंटेयां च संगड़ोईयां।
रस्ते गुआचे पगडंडियां सड़कां ने वदलोईयां।।
बोतलां दा पाणी पींदेयां, प्याऊ छुपी के टूरदे।
कुआलू पटोणा लगी पै, टिआलू किल्ले बैठी झूरदे।।
हुण पारकां च चलदे, भले ही पहले ते घट दूरी है।
पैदल चलने दी ज़रूरत, माह्नूआं दी मज़बूरी है।।

 

Article  Shared by:- Devender Sharma ,Kangra

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