देश की बागडोर असल मायने में अफसरों के हाथ में होती है. यदि नौकरशाही दुरुस्त हो तो कानून-व्यवस्था चाकचौबंद रहती है. जिस तरह से भ्रष्टाचार का दीमक नौकरशाही को खोखला किए जा रहा है, लोगों का उससे विश्वास उठता जा रहा है. लेकिन कुछ ऐसे भी IAS और IPS अफसर हैं, जो अपनी साख बचाए हुए हैं. उनके कारनामे आज मिशाल के तौर पर पेश किए जा रहे हैं. aajtak.in ऐसे ही प्रशासनिक और पुलिस अफसरों पर एक सीरीज पेश कर रहा है. इस कड़ी में आज पेश है महिला IPS अफसर संजुक्ता पराशर की कहानी
पुरुष पुलिस अधिकारी के साथ महिला पुलिस अधिकारी भी अपनी जान की परवाह किये बगैर भारत माँ की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। हमारे समाज में कुछ ऐसी महिला पुलिस अधिकारी उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने अपनी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर नकेल कस रखी है। यहां मिलिए ऐसी ही एक बहादुर और ईमानदार महिला पुलिस अधिकारी से, जिन्होंने असम राज्य में पिछले कई सालों से आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा संभाला हुआ है और सिर्फ 15 महीने में ही 64 से ज्यादा आतंकवादियों को गिरफ्तार कर पूरे देश के सामने बहादुरी का एक नया उदाहरण पेश किया है। इतना ही नहीं इस युवा आईपीएस अधिकारी को असम राज्य की पहली महिला आईपीएस अधिकारी होने का गौरव भी प्राप्त है।
असम की आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध आईपीएस अफ़सर ‘संजुक्ता पराशर’ की बहादुरी काबिल-ए-तारीफ़ है। बचपन से ही पराशर को खेल-कूद में बेहद दिलचस्पी थी और इन्होंने कई पुरस्कार भी अपने नाम किये। अपनी शुरूआती शिक्षा असम में लेने के बाद दिल्ली के इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय में दाखिला ले कर इन्होंने राजनीती विज्ञान में स्नातक किया और दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएचडी की
संजुक्ता पराशर स्कूली दिनों से ही अपने राज्य में आतंवादियों व भ्रष्टाचारियों के कहर से बेहद चिंतित थीं, इसलिए उन्होंने अच्छी रैंक लाने के बावजूद भी असम में ही काम कर अपने राज्य की तस्वीर सुधारने का फैसला किया। संजुक्ता की 2008 में पहली पोस्टिंग माकुम में असिस्टेंट कमान्डेंट के तौर पर हुई, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उन्हें उदालगिरी में हुई बोडो और बांग्लादेशियों के बीच की जातीय हिंसा को काबू करने के लिए ट्रान्सफर कर दिया गया। अपने ऑपरेशन के महज़ 15 महीने में ही इन्होंने 16 आतंकियों को मार गिराया और 64 से ज्यादा आतंकियों को अपनी हिरासत में ले लिया। संजुक्ता के काम करने के दबंग अंदाज़ से पूरे राज्य व देश में इनकी बहादुरी के उदाहरण दिए जाते हैं।
संजुक्ता पराशर चार वर्षीय बच्चे की माँ हैं, लेकिन इसके बावजूद भी आतंकियों के छक्के छुड़ाने में माहिर हैं। हाल ही में इन्होंने एक ऑपरेशन चलाया, जिसमे वे खुद एके47 लेकर आतंकियों के खिलाफ़ मोर्चा संभालने मैदान में कूद पड़ीं। पराशर पूरी ईमानदारी के साथ पिछले कई सालों से एंटी-बोडो मिलिटेंट ऑपरेशन्स में अपना भरपूर योगदान दे रही हैं।
आतंकियों के बीच संजुक्ता पराशर की ऐसी इमेज बनी हुई है, वे इनके नाम से ही भाग खड़े होते हैं। पराशर अपने समाज को ही अपना पहला परिवार समझती हैं और कई बार वह अपना सारा समय रिलीफ कैंपों में ही व्यतित कर उन लोगों के साथ गुजरना पसंद करती हैं, जो किसी हमले में अपने घर परिवार से बिछड़ चुके हैं। संजुक्ता दो महीने में सिर्फ एक बार ही अपने पति और घरवालों से मिलने के लिए वक़्त निकाल पाती हैं, बाकि के बचा हुआ समय समाज को ही देना पसंद करती हैं।
संजुक्ता पराशर कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, धैर्य तथा बहादुरी के साथ हमारे समाज और देश के लिए जो काम कर रही हैं, उसके लिए हमें देश की इस बेटी पर गर्व करना चाहिए। आज हमारे देश को भ्रष्टाचार और आतंक से मुक्त कर विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए ऐसे ही कुछ और वीर पुलिस अधिकारियों की आवश्यकता है।
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